विदेशमंत्री जयशंकर ने 1998 के न्यूक्लियर टेस्ट के बाद वाजपेयी की कूटनीति को सराहा कि कैसे 2 साल में दुनिया को जोड़ लिया

विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 1998 में परमाणु परीक्षण के बाद कूटनीतिक स्थिति से निपटने में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के रवैये की सराहना करते हुए कहा कि दो साल के भीतर भारत ने दुनिया के सभी प्रमुख देशों को अपने साथ जोड़ लिया था।

Amitabh Budholiya | Published : Jan 24, 2023 12:51 AM IST / Updated: Jan 24 2023, 06:23 AM IST

नई दिल्ली(New Delh). विदेश मंत्री एस जयशंकर ने 1998 में परमाणु परीक्षण( nuclear tests in1998) के बाद कूटनीतिक स्थिति(diplomatic situation) से निपटने में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के रवैये की सोमवार को सराहना करते हुए कहा कि दो साल के भीतर भारत ने दुनिया के सभी प्रमुख देशों को अपने साथ जोड़ लिया था। जानिए क्या है आखिर ये मामला?

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1. नई दिल्ली में सिंगापुर के पूर्व राजनयिक बिलहारी कौसिकन(former Singaporean diplomat Bilahari Kausikan) द्वारा आयोजित तीसरे अटल बिहारी वाजपेयी स्मृति व्याख्यान की अध्यक्षता करते हुए जयशंकर ने विदेश मंत्री के रूप में वाजपेयी के कार्यकाल और अमेरिका तथा रूस के साथ भारत के संबंधों को मजबूत करने में उनकी भूमिका की भी सराहना की।

2. विदेश मंत्री ने कहा कि चीन के साथ आपसी सम्मान, आपसी संवेदनशीलता और पारस्परिक हित के तौर-तरीकों के संदर्भ में अब जिन बुनियादी बातों की बात की जाती है, उनमें से अधिकांश का श्रेय वाजपेयी को दिया जाता है।

3. जयशंकर ने यह कहते हुए कि वाजपेयी कभी भी आतंकवाद की चुनौतियों के लिए अभेद्य-"impervious नहीं थे, इस क्षेत्र में संबंधों के आधार को बनाने की कोशिश करने के लिए वास्तव में सभी इंस्ट्रूमेंट्स का उपयोग करने में उनके यथार्थवाद की सराहना की, जो आतंकवाद को यकीनन समाप्त कर देगा।

4. 1998 के पोखरण परमाणु परीक्षणों के बारे में बात करते हुए विदेश मंत्री ने लोगों से आग्रह किया कि वे न केवल परीक्षणों को देखें, बल्कि उसके बाद की कूटनीति को भी देखें।

5. जयशंकर ने कहा कि पोखरण परमाणु परीक्षण के दो साल के अंदर ही हमने दुनिया के सभी प्रमुख देशों को अपने साथ जोड़ लिया था, वास्तव में उन्हें अपने करीब ला लिया था।

6. जयशंकर ने तब के तत्कालीन नेताओं का जिक्र करते हुए कहा-" जब आपके पास राष्ट्रपति ( तक) क्लिंटन, पीएम (जॉन) हॉवर्ड, पीएम (योशीरो) मोरी, राष्ट्रपति (जैक्स) शिराक की यात्रा थी। यह वास्तव में परीक्षण के बाद की कूटनीति थी। जशंकर ने कहा कि जो मुझे लगता है कि जो कोई भी कूटनीति के क्षेत्र में है, उसे देखना चाहिए और सबक लेने की कोशिश करनी चाहिए।"

7. जयशंकर ने कहा-"मैं उस समय जापान में तैनात था और यह एक ऐसा रिश्ता था, जो विशेष रूप से परमाणु परीक्षणों से प्रभावित था। लेकिन हम हमेशा प्रधान मंत्री के विश्वास से प्रभावित हुए कि हम इसे सुलझाने का एक रास्ता खोज लेंगे।"

8. जयशंकर ने कहा, "जिस समझदारी और परिपक्वता से प्रधान मंत्री वाजपेयी ने हम सभी को उस विशेष चुनौती को देखने के लिए प्रेरित किया, उस पर मुझे आश्चर्य होता है।"

9. बता दें कि भारत ने मई 1998 में राजस्थान के पोखरण रेंज में एडवांस वेपन्स डिजाइन के पांच परमाणु परीक्षण किए थे। वाजपेयी ने तीन बार प्रधान मंत्री के रूप में कार्य किया-पहली बार 1996 में 13 दिनों की अवधि के लिए, फिर 1998 से 1999 तक 13 महीने की अवधि के लिए और फिर 1999 और 2004 के बीच पूरे 5 साल सरकार चलाई।

10. जयशंकर ने कहा कि वाजपेयी ने शीत युद्ध(Cold War environment) के बाद के माहौल में अमेरिका के साथ संबंधों को भी बदला। उन्होंने कहा कि वाजपेयी ने रूस के साथ हमारे संबंधों में निरंतरता और स्थिरता भी प्रदान की।

11. लेक्चर सिंगापुर के विदेश मंत्रालय के पूर्व स्थायी सचिव कौशिकन द्वारा रखा गया था। कौसिकन वर्तमान में सिंगापुर के मिडिल ईस्ट इंस्टीट्यूट नेशनल यूनिवर्सिटी के चेयरमैन के रूप में कार्यरत हैं।

12. कौसिकन ने अपने व्याख्यान में कहा, "हम सभी दो अपरिहार्य वास्तविकताओं का सामना कर रहे हैं। पहला, कोई भी देश अमेरिका और चीन दोनों के साथ उलझने से बच नहीं सकता है। और दोनों से एक साथ निपटना प्रभावी ढंग से निपटने के लिए एक आवश्यक शर्त है।"

13. उन्होंने कहा कि अमेरिका के बिना कहीं भी चीन के लिए संतुलन नहीं हो सकता। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि चीन के साथ बगैर जुड़ाव के अमेरिका हमें हल्के में ले सकता है। हालांकि उन्होंने भी यह भी जोड़ा कि भारत जैसे बड़े देश के मामले में यह संभावना कम हो सकती है, लेकिन खत्म बिलकुल नहीं।

14. कौसिकन ने कहा-"दूसरा, मैं ऐसे किसी भी देश के बारे में नहीं जानता, जो अमेरिका और चीनी दोनों के व्यवहार के किसी न किसी पहलू के बारे में चिंता के बिना हो।" कौसिकन ने कहा कि अमेरिका और चीन अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था के केंद्र में रहेंगे।

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