
Supreme Court vs Vice President: तमिलनाडु के 10 पेंडिंग बिलों को बिना राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी के ही कानून बना देने के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद लगातार बहसबाजी शुरू है। सरकार लगातार कोर्ट पर हमलावर है। गुरुवार को उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने ज्यूडिशियरी पर हमला बोलते हुए राष्ट्रपति को निर्देश देने को असंवैधानिक करार दिया। उपराष्ट्रपति ने कहा कि हम ऐसी स्थिति नहीं बना सकते जहां अदालतें भारत के राष्ट्रपति को निर्देश दें।
राज्यसभा के इंटर्न्स के छठे बैच को संबोधित करते हुए धनखड़ ने कहा कि Article 142 अब न्यायपालिका के पास 24x7 उपलब्ध एक न्यूक्लियर मिसाइल बन गया है जो लोकतांत्रिक शक्तियों पर निशाना साध रही है। इस अनुच्छेद के तहत सुप्रीम कोर्ट को विशेष अधिकार मिलते हैं लेकिन धनखड़ ने इसे संविधान की आत्मा के विपरीत बताया।
धनखड़ ने दिल्ली हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के घर नकदी मिलने के मामले पर भी चिंता जताई। उन्होंने कहा कि 14-15 मार्च की रात एक बड़ी घटना हुई लेकिन देश को इसकी जानकारी 21 मार्च को अखबार से मिली। अगर यही घटना किसी आम नागरिक के घर हुई होती तो कार्रवाई रॉकेट की गति से होती। लेकिन अब ये भी बैलगाड़ी की रफ्तार से नहीं हो रही। उन्होंने यह भी कहा कि अब तक किसी भी जज के खिलाफ FIR दर्ज नहीं की गई जबकि संविधान में केवल राष्ट्रपति और राज्यपाल को अभियोजन से संरक्षण दिया गया है न्यायाधीशों को नहीं।
उपराष्ट्रपति ने सवाल उठाया कि जजों के खिलाफ जांच के लिए अनुमति क्यों आवश्यक है? क्या एक विशेष वर्ग ने संविधान से ऊपर जाकर खुद को अछूत बना लिया है? अगर देश का कोई आम व्यक्ति होता तो जांच में देर नहीं होती।
धनखड़ ने सवाल उठाया कि दिल्ली हाई कोर्ट के नकदी मामले में तीन जजों की जांच समिति किस कानून के तहत बनाई गई है? इस कमेटी के पास कोई कानूनी अधिकार नहीं है। सिफारिश किसे दी जाएगी? कार्रवाई तो संसद ही कर सकती है।
धनखड़ का यह बयान उस समय आया है जब सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु में राज्यपाल आरएन रवि द्वारा 10 विधेयकों को रोकने को गैरकानूनी और मनमाना करार दिया था। कोर्ट ने कहा था कि दोबारा पारित विधेयकों पर राष्ट्रपति और राज्यपाल को तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा।
धनखड़ ने कहा कि अब हमारे पास ऐसे जज हैं जो कानून भी बनाएंगे, कार्यपालिका का काम भी करेंगे, संसद से ऊपर काम करेंगे और उन पर कोई जवाबदेही नहीं होगी। यही तो न्यायपालिका का अति विस्तार (Judicial Overreach) है। धनखड़ ने Article 145(3) का हवाला देते हुए कहा कि सिर्फ संविधान की व्याख्या का अधिकार है, संविधान को फिर से गढ़ने का नहीं। उन्होंने यह भी कहा कि राष्ट्रपति को निर्देश देने की संविधान में कोई व्यवस्था नहीं है।