विक्रम बेताल के कार्टूनिस्ट का निधन

मशहूर कार्टूनिस्ट के.सी. शिव शंकर ने लोकप्रिय मैग्जीन चंदामामा के लिए आकर्षक कार्टून बनाए थे। उन्हीं कार्टूनों की वजह से उन्होंने नाम कमाना शुरू कर दिया था। चंदामामा मैग्जीन में छपी विक्रम बेताल की कहानियों और कार्टूनों को बच्चों,बूढ़ो से लेकर सभी लोगों ने खूब पसंद किए ।

मुंबई. भारत के मशहूर कार्टूनिस्ट के.सी. शिवशंकर का मंगलवार रात निधन हो गया है। शिवशंकर 97 वर्ष के थे और उन्होंने मुंबई में अपनी अंतिम सांसें ली। के.सी. शिव शंकर ने लोकप्रिय मैग्जीन चंदामामा के लिए आकर्षक कार्टून बनाए थे। उन्हीं कार्टूनों की वजह से उन्होंने नाम कमाना शुरू कर दिया था। चंदामामा मैग्जीन में छपी विक्रम बेताल की कहानियों और कार्टूनों को बच्चों,बूढ़ो से लेकर सभी लोगों ने खूब पसंद किए । सोशल मीडिया पर जैसे ही उनके निधन की खबरें आईं, तो लोग चंदामामा और विक्रम बेताल पढ़ने लगे। इसे पढ़कर कई लोगों को अपना बचपन याद आ गया और इसी तरह लोगों ने उनकी मैग्जीन और कहानियों को पढ़कर अपने पसंदीदा कार्टूनिस्ट श्रद्धांजलि दी है। 

राजा विक्रम को अपने कंधे पर बेताल को ले जाता कार्टून बनाया था

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के.सी . शिवशंकर का जन्म चेन्नई में हुआ था। सन् 1927 में जन्मे कार्टूनिस्ट शिवशंकर का बचपन चेन्नई में ही बीता। स्कूल के दिनों से ही वे काफी प्रतीभाशाली थे। स्कूली शिक्षा पूरी होने के बाद उन्होने अपनी इसी कलाकारी को रोजगार का जरिया बनाया। शिवशंकर को 1952 में नागी रेड्डी ने काम पर रखा था और उन्होंने राजा विक्रम को साठ के दशक के आस-पास अपने कंधे पर बेताल की लाश को ले जाते हुए एक तस्वीर बनाई थी। चंदामामा से मिली ख्याति के बाद ही उनका नाम 'चंदामामा' पड़ गया था।

2012 में आखिरी बार प्रकाशित हुई थी चंदामाामा

साल 2012 में चंदामामा का आखिरी बार प्रकाशन हुआ था। शिव शंकर अपने आखिरी वक्त तक मैग्जीन के लिए काम करते रहे थे।  सोशल मीडिया पर पंकज शुक्ला ने कमेंट करते हुए लिखा कि अगर आपने बच्चों की प्रसिद्ध पत्रिका ‘चंदामामा’ पढ़ी है तो इसकी विक्रम-बेताल वाली सीरीज भी ज़रूर याद होगी। लगभग 50 सालों तक इस सीरीज के लिए चित्र बनाते रहे वरिष्ठ चित्रकार के सी शिवशंकर (97) अब नहीं रहे। नमन और श्रद्धांजलि.!!  चंदामामा की संकल्पना अन्य प्रचलित बाल चित्रकलाओं से अलग और भारतीय संस्कृति से जुड़ी हुई थी। बहुत सारी ऐतिहासिक, पौराणिक कथाओं को लोगों ने पहली बार चंदामामा के जरिए ही जाना था।

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