Dakota ने दिखाई भारतीय गौरव की झलक: पाकिस्तान को दिखाया था आसमान, बांग्लादेश को मुक्त कराने मं भी अहम रोल

राष्ट्र के लिए किए गए उत्कृष्ट योगदान की स्मृति में डकोटा को 2011 में स्क्रैप से प्राप्त किया गया था। फिर इसे यूनाइटेड किंगडम में रिफर्निश किया गया था। फिर इसका नाम पौराणिक योद्धा ऋषि 'परशुराम' कर दिया गया था। यह परियोजना देश के इलेक्ट्रॉनिक एवं आईटी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर की भारतीय वायु सेना और उनके पिता सेवानिवृत्त एयर कमोडोर एमके चंद्रशेखर को श्रद्धांजलि थी।

90th Indian Air Force Day celebrations: भारतीय वायु सेना दिवस के 90वें समारोह चंडीगढ़ में विंटेज विमान डकोटा के शौर्य का प्रदर्शन लोगों ने देखा। दरअसल, डकोटा सिर्फ एक विमान ही नहीं है बल्कि यह भारत के गौरव व प्रतिरोध का चमकता हुआ प्रतीक है। विंटेज डकोटा DC3 VP905 ने भारत के लिए कई बड़े युद्ध जीते। बड़े-बड़े तूफानों का सामना करते हुए देश की रक्षा में सहायता की है। देश की आने वाली पीढ़ियों के लिए दृढ़ संकल्प का प्रतीक यह विंटेज विमान शनिवार को भारतीय वायु सेना दिवस समारोह के दौरान गरजा। सुखना लेक कॉम्प्लेक्स में परशुराम की शानदार उड़ान सब देखते ही रहे।

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अपने पिता की ओर से केंद्रीय मंत्री ने वायुसेना को दिया गिफ्ट

डकोटा बेड़े के प्रसिद्ध दिग्गज सेवानिवृत्त एयर कोमोडोर एमके चंद्रशेखर की ओर से उनके बेटे देश के इलेक्ट्रॉनिक एवं आईटी राज्यमंत्री राजीव चंद्रशेखर ने मई 2018 में बतौर गिफ्ट भारतीय वायुसेना को दिया था। DC3 ने दशकों तक भारतीय गौरव के साथ आकाश को छुआ। राष्ट्र के लिए किए गए उत्कृष्ट योगदान की स्मृति में डकोटा को 2011 में स्क्रैप से प्राप्त किया गया था। फिर इसे यूनाइटेड किंगडम में रिफर्निश किया गया था। फिर इसका नाम पौराणिक योद्धा ऋषि 'परशुराम' कर दिया गया था। यह परियोजना चंद्रशेखर की भारतीय वायु सेना और उनके पिता, सेवानिवृत्त एयर कमोडोर एमके चंद्रशेखर को श्रद्धांजलि थी।

पहला परिवहन विमान रहा है डकोटा

डकोटा, इंडियन एयरफोर्स में शामिल होने वाला पहला प्रमुख ट्रांसपोर्ट विमान था। भारत को स्वतंत्रता मिलने के ठीक बाद 1947-48 के भारत-पाक संघर्ष में डकोटा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। जब कश्मीर के महाराजा ने 26 अक्टूबर, 1947 को विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए, तो शहर और हवाई अड्डे को पाकिस्तान समर्थित कबायली उग्रवादियों के कब्जे से बचाने के लिए श्रीनगर में सशस्त्र बलों को शामिल करने की तत्काल आवश्यकता पैदा हुई। 27 अक्टूबर 1947 को श्रीनगर में तीन डकोटा विमानों से पहली सिख रेजीमेंट के सैनिक पहुंचे थे। इसके बाद एक पूरी पैदल सेना ब्रिगेड को श्रीनगर ले जाया गया। डकोटा ने 1971 के भारत-पाक युद्ध और बांग्लादेश वायु सेना के गठन के दौरान बांग्लादेश की मुक्ति संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इन विमानों को युद्ध के दौरान बांग्लादेश के तंगेल में सैनिकों को एयरड्रॉप करने के लिए ट्रांसपोर्टर के रूप में इस्तेमाल किया गया था।

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