कभी धोए कोलकाता के होटलों में बर्तन, आज बेंगलुरु में है 3 पान की दुकान, पढ़ें मेहनती बिहारी की कहानी

Published : Apr 18, 2024, 03:47 PM IST
bihar migrant

सार

भारत की बात करें तो लाखों लोग छोटे शहरों निकलकर काम की तलाश में दूसरे बड़े शहरों में दो वक्त की रोटी के लिए काम करने जाते हैं। हमें ऐसे कई उदाहरण भी देखने को मिलते हैं, जो दूसरे शहरों में जाकर काम करते हैं और अपनी एक अलग पहचान बनाते हैं।

बिहारी मजदूर। ऐसा लोगों का कहना है कि दुनिया में सबसे बड़ा श्राप गरीबी है। कोई भी इंसान गरीब होकर जीना नहीं चाहता है, चाहें वो किसी भी समाज, बिरादरी या जाति से संबंध रखता हो। भारत की बात करें तो लाखों लोग छोटे शहरों निकलकर काम की तलाश में दूसरे बड़े शहरों में दो वक्त की रोटी के लिए काम करने जाते हैं। हमें ऐसे कई उदाहरण भी देखने को मिलते हैं, जो दूसरे शहरों में जाकर काम करते हैं और अपनी एक अलग पहचान बनाते हैं। ऐसा ही एक मामला कोलकाता एयरपोर्ट का है, जहां ज्ञानेश्वर जौर नाम के एक शख्स ने ऐसे व्यक्ति से मुलाकात की, जिसकी कहानी कई लोगों के लिए प्रेरणादायक साबित हो सकती है।

ज्ञानेश्वर जौर ने अपने एक्स अकाउंट पर बिहार के मधुबनी जिला के रहने वाले विद्यानंद यादव की कहानी साझा की। उन्होंने बताया कि जब वो कलकत्ता से पटना जाने वाली फ्लाइट का इंतजार कर रहे थे तो उनके सामने सर पर तेल और लगाए हुए एक शख्स को सोते देखा। कुछ देर के बाद शख्स की नींद खुली तो उसने ज्ञानेश्वर से फ्लाइट के बारे में पूछा। बातों-बातों में पता चला कि मधुबनी के रहने वाले शख्स की बेंगलुरु के विजय नगर में 3 पान की दुकान है, जिसे वो और उनके भाई मिलकर चलाते हैं। सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात ये पता चली कि हर दुकान से महीने का खर्चा काटकर 2 लाख की कमाई होती है।

 

 

होटल में बर्तन धोने का काम किया

विद्यानंद यादव ने बताया कि उन्होंने 2002 में कम उम्र में घर छोड़ दिया और कोलकाता के बड़ा बाजार के एक होटल में बर्तन धोने का काम करने लगे। उस दौरान उन्होंने मिठाई बनाना भी सीख लिया। इसके बाद वो हलवाई का काम करने लगे। चार साल तक कैटरर के साथ काम किया और औसतन महीने के 2500 कमाए। इसके बाद हलवाई का काम जारी रखते हुए लुधियाना चला गया और वहां कमाई कम होने के कारण घर पर पैसे भेजने में दिक्कत होने लगी। हालांकि, बाद में गांव वालों ने बेंगलुरु जाने का सुझाव दिया और वो चला गया। 

वहां जाने के बाद उसने  विजय नगर में अपनी पहली पान की दुकान खोली, जो चल निकली। इस सफलता से उत्साहित होकर उसने गांव से अपने दो भाइयों को बेंगलुरु बुला लिया और तरह से तीन पान की दुकान खोल ली। अब हर दुकान से महीने में 2 लाख की कमाई होती है। उसने अब बेंगलुरु में अपना मकान खरीदने के बारे में सोचना शुरू किया है।

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