इस वजह से सुप्रीम कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे दी 5 एकड़ जमीन

अयोध्या में भूमि विवाद के तीन दावेजार थे एक हिंदू पक्ष, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और तीसरा निर्मोही अखाड़ा। इनमें से कोर्ट ने पहले पक्ष के के हक में फैसला दिया है। दूसरे पक्ष को जमीन देने की बात कही और तीसरे पक्ष के दावे को खारिज कर दिया। 

Asianet News Hindi | Published : Nov 10, 2019 9:30 AM IST / Updated: Nov 10 2019, 03:33 PM IST

नई दिल्ली. अयोध्या में लंबे समय से चले आ रहे भूमि विवाद मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ चुका है। इस फैसले में धारा 142 के तहत कोर्ट ने सुन्नी वक्फ बोर्ड को 5 एकड़ जमीन देने का फरमान सुनाया है। हालांकि साल 2010 में  इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बोर्ड को जमीन का तिहाई हिस्सा दिया था। इसलिए अब बहस शुरू हो गई है कि आखिर 142 धारा क्या है?

अयोध्या में भूमि विवाद के तीन दावेजार थे एक हिंदू पक्ष, दूसरा सुन्नी वक्फ बोर्ड और तीसरा निर्मोही अखाड़ा। इनमें से कोर्ट ने पहले पक्ष के के हक में फैसला दिया है। दूसरे पक्ष को जमीन देने की बात कही और तीसरे पक्ष के दावे को खारिज कर दिया।  9 नवंबर को कोर्ट ने सरकार को यह निर्देश दिया है कि वो सुन्नी सेंट्रल वक्फ़ बोर्ड को मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन दे। अब सवाल ये है कि, अगर कोर्ट ने हिंदू पक्षकारों के दावे को सही ठहराया है तो मुस्लिम पक्ष को जमीन देने का आदेश क्यों दिया गया? अदालत ने अपने फैसले में इसकी वजह साफ़ की है।

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क्या है अदालत का फैसला?

अयोध्या मामले में सुप्रीम का कोर्ट का फैसला 1,045 पन्नों का दस्तावेज है। दस्तावेज के आखिरी हिस्से में कोर्ट ने इस मामले पर अपनी राय रखी है। फैसले के पार्ट-पी के पॉइंट नम्बर 800 में कोर्ट ने लिखा है। 

"पूरी विवादित जमीन के मालिकाना हक़ के बारे में हिंदुओं की तरफ से पेश किए गए सबूतों का आधार , मुस्लिम पक्ष की तरफ से पेश किए सबूतों के मुकाबले ज्यादा मजबूत हैं। फिर भी मुसलिम पक्ष को जमीन आवंटित किया जाना जरुरी है। मुस्लिम पक्ष ने मस्जिद पर अपना दावा कभी छोड़ा नहीं, बल्कि 22/23 दिसंबर 1949 को पहले मस्जिद को खंडित किया गया और बाद में 6 दिसंबर 1992 को उसे पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया गया। भारतीय संविधान की धारा 142 इस अदालत को अधिकार देती है कि वो हर हाल में किसी अपराध का उपचार करे। मुसलमानों को मस्जिद से जिन तरीकों से से बाहर किया गया वो किसी भी ऐसे देश में जो सेक्युलर और कानून के राज के प्रति वचनबद्ध है, नहीं अपनाए जाने चाहिए। अगर यह अदालत इस चीज को नजरअंदाज कर देती है तो यह कानून की जीत नहीं होगी। संविधान सभी धर्मों की समानता को अभिगृहीत करता है। सहिष्णुता और सहअस्तित्व हमारे राष्ट्र और लोगों की धर्मनिरपेक्षता के प्रति वचनबद्धता को मजबूत करता है।

 

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अब क्या है धारा 142 -

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में संविधान की धारा 142 का हवाला दिया। यह अनुच्छेद कहता है कि सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार है कि वो ऐसा कोई भी आदेश दे सकता है या नई व्यवस्था कर सकता है जिसके बिना किसी मामले में ‘सम्पूर्ण न्याय’ नहीं होता। सुप्रीम कोर्ट का यह आदेश संसद के बनाए कानून की तरह पूरे देश में तब तक लागू होगा जब तक संसद इस मामले में नया कानून ना बना ले। सुप्रीम कोर्ट ने मुस्लिम पक्ष मस्जिद बनाने के लिए पांच एकड़ जमीन देने के पीछे ‘न्याय की संपूर्णता’ का जिक्र किया। यह माना कि 1949 और 1992 में मुसलमानों के साथ गलत हुआ है। 

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