सिंधु जल समझौता: भारत ने भेजा पाकिस्तान को नोटिस, संधि का लगातार उल्लंघन कर रहा है पाक

करीब 9 साल की वार्ता के बाद सिंधु जल समझौता हुआ था। इस समझौता के दौरान भारत-पाकिस्तान के दोनों पक्षों के अलावा विश्व बैंक भी सिग्नेचर करने वालों में शामिल था।

Indus water treaty: सिंधु जल संधि यानी इंडस वाटर ट्रिटी में संशोधन के लिए पाकिस्तान को भारत सरकार ने नोटिस भेजा है। 25 जनवरी को जारी किए गए नोटिस में पाकिस्तान पर संधि को लागू करने में हड़बड़ी का आरोप है। सिंधु जल संधि (आईडब्ल्यूटी) 1960 में भारत-पाकिस्तान के बीच हुआ था।

करीब 9 साल की वार्ता के बाद सिंधु जल समझौता हुआ था। इस समझौता के दौरान भारत-पाकिस्तान के दोनों पक्षों के अलावा विश्व बैंक भी सिग्नेचर करने वालों में शामिल था। इस समझौता के अनुसार पूर्वी नदियों का पानी भारत बिना रोकटोक के इस्तेमाल कर सकता है। भारत से जुड़े प्रावधानों के तहत रावी, सतलुज और ब्यास नदियों के पानी का इस्तेमाल परिवहन, बिजली और कृषि के लिए करने का अधिकार भारत को दिया गया।

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यह संधि कई नदियों के जल के उपयोग के संबंध में दोनों देशों के बीच सहयोग और सूचना के आदान-प्रदान के लिए एक सिस्टम तय करती है। इस समझौता के तहत भारत को तीन पूर्वी नदियों ब्यास, रावी और सतलज के पानी पर नियंत्रण का अधिकार देता है तो तीन पश्चिमी नदियों सिंधु, चिनाब और झेलम के पानी के उपयोग का अधिकार पाकिस्तान को देता है।

सिंधु नदी प्रणाली से लिए जाने वाले पानी का 20 प्रतिशत उपयोग भारत करता है तो 80 प्रतिशत उपयोग पाकिस्तान करता है। यह संधि भारत को सीमित सिंचाई उपयोग और बिजली उत्पादन, नेविगेशन, संपत्ति के फ्लोटिंग, मछली पालन आदि जैसे काम के लिए पश्चिमी नदियों के पानी के उपयोग की अनुमति देती है।

क्यों दिया नोटिस...

सिंधु जल संधि पर भारत ने पाकिस्तान को नोटिस 25 जनवरी को संबंधित आयुक्तों के माध्यम से भेजी है। आरोप है कि पाकिस्तान ने सिंधु जल समझौता और उसकी भावना को अक्षरश: लागू नहीं किया है। इससे समझौता पर प्रतिकूल असर पड़ा है। समझौता का पालन नहीं होने पर भारत नोटिस दिया है।

पाकिस्तान डाल रहा है अड़ंगा...

करीब सात साल पहले भारत ने किशनगंगा और रातले हाइड्रो इलेक्ट्रिक प्रोजेक्ट्स का शुरू किया था। लेकिन पाकिस्तान ने टेक्निकल आपत्तियां लगाते हुए इसकी तटस्थ जांच के लिए थर्ड पार्टी स्पेशलिस्ट की नियुक्ति की मांग कर रहा है। लेकिन वर्ष 2016 में पाकिस्तान इस आग्रह से एकतरफा ढंग से पीछे हट गया और फिर इन आपत्तियों को मध्यस्थता कोर्ट में ले जाने का प्रस्ताव किया। पाकिस्तान का यह एकतरफा कदम संधि के अनुच्छेद 9 में विवादों के निपटारे के लिए बनाए गए सिस्टम का उल्लंघन है।

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