क्या है नसरातुल अबरार फतवा, हिन्दु मुस्लिम एकता के लिए क्यों इतना जरूरी?

Published : Mar 02, 2023, 12:08 PM ISTUpdated : Mar 02, 2023, 12:28 PM IST
Ulema

सार

बात उस समय की है जब भारत में आजादी को लेकर शुरु हुई 1857 की बगापत थम गई थी। भारत पर अंग्रेजों का राज चल रहा था। तभी एक संगठन अस्तित्व में आय़ा। इसका नाम कांग्रेस था। 

नई दिल्ली. बात उस समय की है जब भारत में आजादी को लेकर शुरु हुई 1857 की बगापत थम गई थी। भारत पर अंग्रेजों का राज चल रहा था। तभी एक संगठन अस्तित्व में आय़ा। इसका नाम कांग्रेस था। यह संगठन पूरे देश में हर जाति, धर्म, प्रदेश और इलाके के लोगों को एक बैनर के नीचे लाना के मकसद से बनाया गया था। इसी दौरान एक शख्स थे, सर सैयद अहमद खान। यह ब्रिटिश सरकार के भरोसेमंद वकील थे। उन्होंने कांग्रेस के खिलाफ बगावत का बिगुल फूंक दिया था और 1888 को मेरठ में अपने विचार पेश किए थे।

क्या था सर सैयद का दावा?
सर सैयद एक स्कॉलर टाइप शख्स थे। उन्होंने हिन्दू-मुस्लिम को दो अलग कौम बताया था। साथ ही वह ईसाईयों को इस्लाम का ही सहयोगी मानते थे। उनकी नजरों में हिन्दू दुश्मन थे।

उन्होंने एक बार 800 लोगों से भरी सभा में कहा था कि हम सभी को एक होना चाहिए। तब उन्होंने अल्लाह का हवाला देते हुए कहा था कि मुसलमानों का कोई दोस्त नहीं है सिवाय ईसाईयों को छोड़कर। उन्होंने ब्रिटिशर्स के साथ व्यापारिक रिश्ते जोड़ने पर ध्यान दिया था।

उलेमा स्कॉलर्स का क्या रोल रहा?
1857 के बाद उलेमा जो सभी इस्लामिक स्कॉलर्स थे, उन्होंने आगे रहकर आजादी की लड़ाई लड़ी। साथ ही हिन्दू राजा, जमींदार और कारिगरों के साथ फ्री इंडिया की मुहीम को चलाया।

इधर, सर सैयद के अवाहन के बाद लुधियाना के तीन उलेमा ने इस चीज के खिलाफ फतवा जारी किया। इसमें तीन उलेमा मौलाना मोहम्मद लुधियानवी, मौलाना अब्दुल्लाह लुधियानवी और मौलाना अब्दुल अजीत लुधियानवी शामिल रहे।

सर सैयद के खिलाफ पूरे देशभर में लुधियाना के उलेमाओं ने सौ से ज्यादा लेटर लिखे। यह लेटर पूरे देश और विदेश में भेजे गए। उस समय के चर्चित स्कॉलर्स ने इस फतवे का समर्थन किया था। इसमें मौलाना राशिद अहमद गंगोही, मोहम्मद अहमद रजा खान बरेलवी समेत कई इस्लामिक स्कॉलर्स शामिल थे।

किताब की शक्ल दी, नाम रखा- नसरातुल अबरार
इन सभी फतवा को इकट्ठा कर फिर मौलाना मोहम्मद लुधियानवी और मौलाना अब्दुल अजीज लुधियानवी ने एक किताब की शक्ल में तैयार करवाया था। इसका टाइटल नसरातुल अबरार रखा था। इसका मुख्य उद्देश इस्लाम का राजनीतिक उपयोग नहीं करना था और हिन्दुस्तान की एकता बनाए रखना था।

सोर्स: Aawaz The Voice

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