SCO Summit : क्या है शंघाई सहयोग संगठन,भारत के लिए क्यों जरूरी

SCO समिट में भारत के अलावा रूस-चीन समेत 8 देशों के प्रतिनिधि शामिल हो रहे हैं। इस्लामाबाद में कड़ी सुरक्षा के इंतजाम किए गए हैं। शहर में 3 दिनों तक लॉक़डाउन लगा दिए गए हैं। यह समिट काफी महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

 

Satyam Bhardwaj | Published : Oct 15, 2024 8:17 AM IST

SCO Summit 2024 : विदेश मंत्री एस जयशंकर (S Jaishankar) शंघाई सहयोग संगठन (SCO) देशों की समिट में हिस्सा लेने आज, 15 अक्टूबर को पाकिस्तान जा रहे हैं। इस्लामाबाद में होने वाली इस बैठक में जयशंकर 24 घंटे से भी कम समय रहेंगे। इससे पहले उन्होंने कहा भी था कि उनका मकसद सिर्फ SCO की बैठक में जाना है। दोनों देशों में रिश्तों को लेकर किसी तरह की बातचीत नहीं होगी। बता दें कि इस समिट की मेजबानी कर रहे पाकिस्तान ने अगस्त 2024 में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) को न्योता भेजा था। हालांकि, उनकी बजाय विदेश मंत्री इस समिट में शामिल हो रहे हैं। ऐसे में जानिए SCO क्या है, भारत के लिए यह समिट कितना जरूरी...

SCO में कौन-कौन से देश शामिल हैं

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  1. भारत (India)
  2. चीन (China)
  3. रूस (Russia)
  4. पाकिस्तान (Pakistan)
  5. ताजिकिस्तान (Tajikistan)
  6. कजाखिस्तान (Kazakhstan)
  7. किर्गिस्तान (Kyrgyzstan)
  8. उज्बेकिस्तान (Uzbekistan)

भारत के लिए SCO कितना जरूरी है

शंघाई सहयोग संगठन में शामिल आठों देशों में दुनिया की करीब 40% आबादी रहती है। इस संगठन का मकसद मध्य एशिया (Central Asia) में शांति और सभी देशों में सहयोग बनाए रखना है। भारत को आतंकवाद से लड़ाई और सिक्योरिटी से जुड़े अहम मुद्दों पर अपनी बात मजबूती से रखने के लिए यह संगठन एक मजबूत मंच उपलब्ध कराता है, क्योंकि इसमें रूस और चीन जैसे देश शामिल हैं। इस मंच से भारत रूस के साथ अपने रिश्तों को मजबूती देता है और पाकिस्तान-चीन को उचित जवाब दे सकता है।

भारत की नजर में क्यों ज्यादा महत्वपूर्ण है SCO

एससीओ समिट के माध्यम से भारत मध्य एशियाई रिपब्लिक (CARs) के 4 मेंबर्स कजाकिस्तान, किर्गिस्तान, उज्बेकिस्तान और तजाकिस्तान से आर्थिक संबंध को अधिक मजबूत बनाने का प्रयास करता है। 2017 में SCO में शामिल होने के बाद से इन देशों के साथ भारत के व्यापार में तेजी आई है। 2017-18 में इन 4 देशों से व्यापार 11,000 करोड़ का था, जो 2019-20 में 21,000 रुपए से ज्यादा हो गया। भारतीय सरकारी और प्राइवेट कंपनियों को भी इन चारों देशों से फायदा हुआ है। उनका इन देशों में गोल्ड माइनिंग, यूरेनियम, एग्रो-प्रोसेसिंग और बिजली में निवेश बढ़ा हैं। बता दें कि मध्य एशिया में दुनिया के कच्चे तेल और गैस का करीब 45% भंडार है, जिसका अब तक इस्तेमाल नहीं हुआ है। भारत की एनर्जी जरूरतों को पूरा करने के लिए आने वाले समय में ये देश महत्वपूर्ण हो सकते हैं।

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