SIMI क्या है? यूपी के अलीगढ़ का युवाओं व छात्रों का यह संगठन आखिर कैसे हो गया इतना खतरनाक?

पांच साल पहले यूएपीए के तहत इस पर कार्रवाई करते हुए पांच साल के लिए प्रतिबंध लगाया गया जिसे एक बार फिर बढ़ा दिया गया है।

What is SIMI: स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) वर्तमान में एक आतंकवादी संगठन के रूप में कुख्यात है। सिमी का गठन अलीगढ़ में युवाओं व छात्रों के संगठन के रूप में हुआ था लेकिन कई विरोधी गतिविधियों में सम्मिलित होने का आरोप लगने के बाद इस संगठन पर पहली बार 2001 में प्रतिबंध लगा दिया गया। हालांकि, विभिन्न तरीकों से इस पर प्रतिबंध आज भी जारी है। पांच साल पहले यूएपीए के तहत इस पर कार्रवाई करते हुए पांच साल के लिए प्रतिबंध लगाया गया जिसे एक बार फिर बढ़ा दिया गया है।

सिमी क्या है और इस पर प्रतिबंध क्यों लगाया गया है?

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स्टूडेंट्स इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया (सिमी) का गठन अप्रैल 1977 में किया गया था। इसकी स्थापना यूपी के अलीगढ़ में की गई थी। आरोप है कि सिमी का घोषित मिशन भारत को इस्लामिक भूमि में परिवर्तित करके 'भारत की मुक्ति' है। केंद्र ने पहले सुप्रीम कोर्ट से कहा था कि सिमी का उद्देश्य भारत में इस्लामिक शासन स्थापित करना है और इसे कायम रहने की इजाजत नहीं दी जा सकती। केंद्र सरकार ने कोर्ट को बताया कि प्रतिबंधित संगठन के कार्यकर्ता अभी भी विघटनकारी गतिविधियों में लिप्त हैं जो देश की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता को खतरे में डालने में सक्षम हैं।

25 अप्रैल 1977 में आया अस्तित्व में संगठन

सरकार ने कहा था कि सिमी 25 अप्रैल 1977 को उत्तर प्रदेश के अलीगढ़ में जमात-ए-इस्लामी-हिंद (जेईआईएच) में विश्वास रखने वाले युवाओं और छात्रों के एक संगठन के रूप में अस्तित्व में आया। हालांकि, 1993 में इसने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया। सिमी के संस्थापक अध्यक्ष मोहम्मद अहमदुल्ला सिद्दीकी थे। बताया जाता है कि सिद्दीकी वर्तमान में मैकोम्ब में वेस्टर्न इलिनोइस विश्वविद्यालय में अंग्रेजी और पत्रकारिता के प्रोफेसर के रूप में कार्यरत हैं।

1981 में सबसे पहले आया सुर्खियों में सिमी

सिमी नामक संगठन 1981 में सबसे पहले सुर्खियां बटोरने में सफल रहा जब सिमी कार्यकर्ताओं ने पीएलओ नेता यासर अराफात की भारत यात्रा का विरोध किया। सिमी कार्यकर्ताओं ने नई दिल्ली में काले झंडों से यासर अराफात का स्वागत किया। युवा सिमी कार्यकर्ताओं ने आरोप लगाया कि अराफात पश्चिमी देशों के कठपुतली हैं। जबकि जमात-ए-इस्लामी हिंद (जेआईएच) के वरिष्ठ नेताओं ने अराफात को फिलिस्तीनी मुद्दे के चैंपियन के रूप में देखा। इसके बाद सिमी और जेआईएच की राहें जुदा होने लगी।

2001 में पहली बार प्रतिबंध

सिमी पर पहली बार 2001 में प्रतिबंध लगाया गया था। इसके बाद से उस पर बैन को लगातार बढ़ाया जा रहा है। हालांकि, अगस्त 2008 में एक स्पेशल ट्रिब्यूनल द्वारा प्रतिबंध हटा दिया गया था, लेकिन तत्कालीन सीजेआई केजी बालाकृष्णन ने इसे बहाल कर दिया गया था। तत्कालीन सीजेआई ने 6 अगस्त 2008 को नेशनल सिक्योरिटी के आधार इसे प्रतिबंधित कर दिया गया। सिमी पर 2019 में भारत सरकार ने गैर कानूनी गतिविधियां रोकथाम अधिनियम 2019 यानी यूएपीए के तहत प्रतिबंधित किया था। यह प्रतिबंध 5 साल के लिए लगाया गया था। इसे एक बार फिर 2024 में पांच साल के लिए बढ़ा दिया गया है। 2019 में लगा प्रतिबंध फरवरी में खत्म हो रहा था लेकिन इसके पहले ही गृह मंत्रालय ने नया आदेश जारी कर प्रतिबंध की अवधि को पांच साल और बढ़ा दिया है।

प्रतिबंध के बाद इन नामों से गतिविधियां संचालन का आरोप

सिमी पर 2001 में प्रतिबंध तो लग गया लेकिन उस पर विभिन्न संगठनों का मुखौटा बनाकर अपनी देश विरोधी गतिविधियों के संचालन का आरोप लगता रहा है। आरोप है कि सिमी पर प्रतिबंध लगने के बाद खैर-ए-उम्मत ट्रस्ट, पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया, तहरीक-ए-अहया-ए-उम्मत (टीईयू), तहरीक-तलाबा-ए-अरबिया (टीटीए), तहरीक तहफ्फुज-ए-शायर-ए-इस्लाम (टीटीएसआई) और वाहदत-ए-इस्लामी के नाम से यह अपनी गतिविधियों को संचालित कर रहा है।

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