NEP 2020: क्या है राष्ट्रीय शिक्षा नीति, जिसमें 10+2 की जगह लेगा नया फार्मेट; कैसे होगी फायदेमंद

केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने हाल ही में कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी-2020) का उद्देश्य डिग्री को शिक्षा और आजीविका के अवसरों से अलग करना है। आखिर क्या है नेशनल एजुकेशन पॉलिसी (NEP 2020) और क्या हैं इसके फायदे, आइए जानते हैं। 

New Education Policy 2020: केंद्रीय विज्ञान और प्रौद्योगिकी राज्य मंत्री डॉ जितेंद्र सिंह ने हाल ही में कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी-2020) का उद्देश्य डिग्री को शिक्षा और आजीविका के अवसरों से अलग करना है। उन्होंने नई शिक्षा नीति को आजादी के बाद देश में हुआ सबसे बड़ा ऐतिहासिक सुधार बताते हुए कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा शुरू की गई राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2020 वैश्विक मानकों के अनुरूप भारत की शिक्षा नीति को एक बार फिर स्थापित करेगी। आखिर क्या है नेशनल एजुकेशन पॉलिसी और क्या हैं इसके फायदे, आइए जानते हैं। 

क्या है नई शिक्षा नीति?
अब तक चली आ रही शिक्षा नीति में 6 साल के बच्चे का एडमिशन कक्षा पहली में किया जाता है। लेकिन नई शिक्षा नीति के तहत अब कक्षा दूसरी तक के बच्चों की नींव को मजबूत करने पर ज्यादा फोकस किया जाएगा। अब बच्चे 6 साल की जगह 3 साल की उम्र में फॉर्मल स्कूल में जाने लगेंगे। यानी कि प्ले स्कूल के शुरुआती साल भी अब स्कूली शिक्षा में जुड़ेंगे। हालांकि, 6 साल की उम्र में बच्चा पहले की तरह ही कक्षा 1 में होगा। लेकिन उसका बेस मजबूत रहेगा। नई शिक्षा नीति छात्रों को भविष्य के लिए ज्यादा बेहतर तरीके से तैयार करने में काफी मददगार साबित होगी। 

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किसने तैयार किया राष्ट्रीय शिक्षा नीति का ड्राफ्ट? 
बता दें कि भारत की नई शिक्षा नीति, 2020 (New Education Policy 2020) को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में कैबिनेट ने मंजूरी दी थी। इस नई शिक्षा नीति का मसौदा पूर्व इसरो प्रमुख के. कस्तूरीरंगन की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की एक समिति ने तैयार किया है। बता दें कि नेशनल एजुकेशन पॉलिसी को राजीव गांधी की सरकार ने 1986 में बनाया था। बाद में 1992 में नरसिम्हा राव की सरकार के दौरान इसमें कुछ संशोधन किए गए थे। 

10+2 खत्म, अब 5+3+3+4 फार्मेट : 
राष्ट्रीय शिक्षा नीति में 10+2 के फॉर्मेट को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है। इसे 10+2 से बांटकर 5+3+3+4 फार्मेट में बदला गया है। इसका मतलब है कि अब स्कूल के पहले पांच साल में प्री-प्राइमरी स्कूल के तीन साल और कक्षा 1 व कक्षा 2 सहित फाउंडेशन स्टेज शामिल होंगे। फिर अगले तीन साल को कक्षा 3 से 5 की तैयारी के चरण में बांटा जाएगा। इसके बाद में तीन साल मध्य चरण (कक्षा 6 से 8) और माध्यमिक अवस्था के चार साल (कक्षा 9 से 12) शामिल हैं। इसके अलावा स्कूलों में आर्ट, कॉमर्स, साइंस स्ट्रीम का कोई कठोर पालन नहीं होगा। स्टूडेंट अपनी रुचि के हिसाब से सिलेबस चुन सकेंगे। 

नई शिक्षा नीति के प्रमुख बिंदु : 
- अब पांचवी कक्षा तक की शिक्षा मातृ भाषा यानी हिंदी में होगी।
- छठी क्लास से वोकेशनल कोर्स शुरू किए जाएंगे। इसके लिए इच्छुक छात्रों को छठवीं कक्षा के बाद से ही इंटर्नशिप कराई जाएगी। 
- मानव संसाधन विकास मंत्रालय का नाम बदल कर शिक्षा मंत्रालय कर दिया गया है। 
- लॉ और मेडिकल एजुकेशन को छोड़कर समस्त उच्च शिक्षा के लिए एक एकल निकाय के रूप में भारत उच्च शिक्षा आयोग (HECI) का गठन किया जाएगा। अर्थात उच्च शिक्षा के लिए एक सिंगल रेगुलेटर रहेगा। 
- म्यूजिक और आर्ट्स को पाठयक्रम में शामिल कर इसे बढ़ावा दिया जाएगा।
- ई-सिलेबस को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय शैक्षिक टेक्नोलॉजी फोरम (NETF) बनाया गया है, जिसके लिए वर्चुअल लैब विकसित की जा रहीं हैं। 
- अगर कोई स्टूडेंट किसी कोर्स को बीच में छोड़कर दूसरे कोर्स में एडमिशन लेना चाहें तो वो पहले कोर्स से एक खास निश्चित समय तक ब्रेक ले सकता है और दूसरा कोर्स ज्वाइन कर सकता है। दूसरे कोर्स को पूरा करने के बाद वो फिर से पहले वाले कोर्स को कर सकता है। 

राष्ट्रीय शिक्षा नीति के फायदे : 
- कक्षा 5वीं तक स्टूडेंट की भाषा, गणित और सामान्य ज्ञान के साथ-साथ इंटरैक्टिव स्किल्स (Interactive Skills) बढ़ाने पर जोर दिया जाएगा। 
- क्लास 6, 7 और 8th के स्टूडेंट्स को मल्टी डिसिप्लिनरी कोर्स (Multi Disciplinary Course) के जरिए प्रतियोगी परीक्षाओं के लिए तैयार किया जाएगा। 
- क्लास  9वीं से 12वीं तक के स्टूडेंट्स को उनकी रुचि के आधार पर आगे बढ़ाने पर फोकस किया जाएगा। सिर्फ आर्ट, कॉमर्स या साइसं ही नहीं बल्कि म्यूजिक, स्पोर्ट्स या दूसरी स्किल्स को मजबूत करके उन्हें भविष्य में इन्हीं क्षेत्रों में जॉब के अवसरों के लिए तैयार किया जाएगा। 
- नई शिक्षा नीति में स्टूडेंट्स पर बोर्ड परीक्षाओं का दबाव कम होगा। इससे उनके अंदर रटने की प्रवृत्ति घटेगी, साथ ही कॉन्सेप्ट को समझने में मदद मिलेगी। विद्यार्थियों को बोर्ड परीक्षाएं पास करने के लिए कोचिंग की जरूरत नहीं होगी।

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