सरकार बनाने से पहले अजित पवार ने विधायकों से की थी बात, पूछा था- हमारे साथ रहेंगे या चाचा के

महाराष्ट्र में हुए सियासी खेल के राज से पर्दा उठने लगा है। जिसके बाद एक एक कर बीते एक महिने से चल रहे सियासी घटनाक्रम की स्थितियां सामने आने लगी है। जिसमें अजित पवार द्वारा बीजेपी के साथ आकर सरकार बनाने के बाद सामने आया है कि किस प्रकार पर्दे के पीछे सारे खेल खेलें गए। 

Asianet News Hindi | Published : Nov 24, 2019 9:00 AM IST

मुंबई. महाराष्ट्र में जारी हाई-वोल्टेज सियासी ड्रामे ने इस बार सूबे के सबसे बड़े राजनीतिक घराने में भी दो फाड़ कर दिए हैं। एक समय महाराष्ट्र की सत्ता में शासन करने वाला पवार परिवार अब दो गुटों में बंटा हुआ है। जिसमें सत्ता के राजयोग के लिए एक दूसरे के सामने खड़े नजर आ रहे हैं। इस टूट की शुरुआत शुक्रवार शाम उस वक्त हुई, जब फिलहाल के उप मुख्यमंत्री अजित पवार ने अपने ही परिवार की पार्टी एनसीपी के एक गुट के विधायकों को तोड़ना शुरू कर दिया। पार्टी के सूत्रों की माने तो अजित पवार ने अपने दल के कुछ विश्वासपात्र विधायकों को फोन करके पूछा था कि वह किसके साथ हैं। पवार ने विधायकों से सवाल किए कि क्या वह चाचा शरद पवार के साथ जाएंगे या उनके साथ किसी गठबंधन का हिस्सा बनेंगे।

विधायकों के जवाब के बाद पहुंचे बीजेपी के पास 

एनसीपी से जुड़े सूत्रों के मुताबिक, अजित पवार ने शुक्रवार शाम करीब 8 बजे अपने ऑफिस को निर्देश दिया कि वह एनसीपी के विधायकों से उनकी बात कराएं। इसके बाद जब बातचीत शुरू हुई तो अजित पवार ने एनसीपी के अपने खास विधायकों से सवाल किया कि वह उनके साथ हैं या उनके चाचा शरद पवार के साथ। विधायकों के जवाब के बाद अजित पवार ने बीजेपी के कुछ नेताओं से बातचीत की और फिर रात करीब साढ़े 9 बजे मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने राज्यपाल के पास सरकार बनाने का दावा पेश किया।

17 नवंबर को ही दे दिए थे संकेत

पुणे में शरद पवार के घर पर 17 नवंबर को हुई एनसीपी की बैठक में अपने भविष्य के कदम के बारे में बहुत हद तक अजित पवार ने संकेत दे दिया था। बैठक में अजित ने यह कहकर सबको चौंका दिया कि एनसीपी को शिवसेना और कांग्रेस के साथ गठबंधन करने के बजाय अगली सरकार बनाने में बीजेपी की मदद करनी चाहिए। उनके इस प्रस्ताव को ठुकरा दिया गया क्योंकि तब तक एनसीपी, शिवसेना, कांग्रेस के बीच बातचीत आखिरी चरण में पहुंच चुकी थी। कहा यह भी जा रहा कि सरकार चलाने के लिए मसौदा भी तय कर लिया गया। इनके बीच दिल्ली और मुंबई में कई दौर की बातचीत हो चुकी थी।

एक हफ्ते में हुई बगावत

सरकार गठन को लेकर जारी कवायद के बीच अजित के सुझाव को शरद पवार ने भले ही उस दौरान सिरे से खारिज कर दिया लेकिन वह इस खतरे को भांपने में नाकाम हो गए। उसके एक हफ्ते के भीतर ही अजित पवार ने बगावत कर शरद पवार और एनसीपी को हक्का-बक्का कर दिया। वैसे पुणे की मीटिंग में एनसीपी नेतृत्व न सिर्फ अजित पवार के मन में क्या चल रहा है, उसे पढ़ने में असफल रहा। बानजूद इसके अन्य संकेतों को भी नहीं समझ पाया। जिसमें मुंबई में शरद पवार के घर पर भी हुई छोटी बैठकों में धनंजय मुंडे और सुनील तटकरे ने भी वैसी ही राय रखी जो अजित पवार ने पुणे बैठक में रखी थी।

फडणवीस से करते रहें बात, किसी को भनक तक नहीं लगी

सूत्रों ने बताया कि सीएम देवेंद्र फडणवीस और डिप्टी सीएम अजित पवार के बीच 10 नवंबर को पहली बार सरकार बनाने को लेकर बातचीत हुई थी। जिसके बाद से ही दोनों नेताओं में हर रोज बात हो रही थी। कई बार तो एक ही दिन में सिलसिलेवार बातचीत हो रही थी। दोनों जानते थे कि अगर उनके बीच की बात थोड़ी सी भी लीक हो गई तो उनका सारा प्लान फेल हो जाएगा। अजित पवार और देवेंद्र फडणवीस में कुछ-कुछ चल रहा है, इसकी जानकारी एनसीपी में सिर्फ धनंजय मुंडे और सुनील तटकरे को ही थी। तटकरे अजित पवार के बेहद करीबी माने जाते हैं। मुंडे का चयन इसलिए हुआ कि फडणवीस को उन पर भरोसा था।

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