Gururaja Poojary: कभी डाइट के लिए जूझते थे गुरूराजा, रेसलर बनने को अखाड़े में उतरे, फिर बने स्टार पावर लिफ्टर

कर्नाटक के कुंडापुर के रहने वाले गुरूराजा पुजारी (Gururaja Poojary) ने कॉमनवेल्थ गेम्स 2022 (Commonwealth Games) में कांस्य पदक जीता है। गुरूराजा पुजारी ने 2018 के कॉमनवेल्थ गेम्स में भी सिल्वर मेडल जीता था।

Gururaja Poojary. बर्मिंघम शहर में चल रहे कॉमनवेल्थ गेम्स में छोटी कद काठी वाले गुरूराजा पुजारी ने कांस्य पदक जीतकर अपना कद काफी उंचा कर लिया है। गुरूराजा ने क्लीन एंड जर्क के तीसरे प्रयास में 151 किलो का भार उठाकर मेडल पक्का किया। 2018 के कॉमनवेल्थ गेम्स में भी गुरूराजा ने 249 किलोग्राम भार उठाकर सिल्वर मेडल पर कब्जा किया था। उनकी इस जीत से उनके परिवार और फैंस काफी खुश हैं।

पहलवान बनना चाहते थे गुरूराजा
2008 के ओलंपिक खेलों में जब सुशील कुमार के गले में मेडल देखा तो गुरूराजा ने तय कर लिया था कि वे भी पहलवान बनेंगे और मेडल जीतेंगे। उन्होंने अखाड़े में जाकर प्रैक्टिस भी शुरू कर दी। हालांकि कुछ दिनों बाद उनके टीचर ने सलाह दी कि वे कुश्ती की जगह वेटलिफ्टिंग में करियर बनाएं। फिर उन्होंने वेटलिफ्टिंग की प्रैक्टिस शुरू कर दी। उनके पिता महाबाला पुजारी के पास अच्छी डाइट देने तक के पैसे नहीं थे लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और बेटे की हरसंभव मदद करते रहे। कई बार पिता को लोगों की बुरी बातें भी सुननी पड़ी लेकिन वे लक्ष्य से नहीं डिगे।

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एयरफोर्स में मिली नौकरी
गुरूराजा ने जब वेटलिफ्टिंग शुरू की तो उन्हें धीरे-धीरे प्रसिद्धि मिलने लगी। उन्होंने जो भी पैसा कमाया, ईनाम जीता, उसे अपनी डाइट पर खर्च करने लगे। नौकरी के लिए उन्होंने सेना में भर्ती भी ट्राइ किया लेकिन कद छोटा होने की वजह से नहीं जा सके। तक वे काफी निराश हो गए। उसी दौरान उन्हें पता चला कि छोटे कद के लोग भी एयरफोर्स में भर्ती हो सकते हैं। फिर वे एयरफोर्स में ज्वाइन हो गए। फिर गुरूराजा ने पीछे मुड़कर कभी नहीं देखा और वेटलिफ्टिंग में देश का नाम रोशन करते रहे। 

 

गुरूराजा पुजारी का सफर

गुरूराजा के पिता हैं ट्रक ड्राइवर
गुरूराजा का सफर इतना भी आसान नहीं था और शुरूआती दिनों में उन्हें आर्थिक तंगी का सामना करना पड़ा। इस एथलीट के पिता कर्नाटक के कुंडापुर के रहने वाले हैं और मामूली ट्रक चालक थे लेकिन पिता ने हमेशा बेटे का साथ दिया। गुरूराजा के सामने सबसे बड़ी समस्या उनके खानपान को लेकर था लेकिन पिता ने मेहनत जारी रखी और बेटे की डाइट के लिए ओवरटाइम भी करते रहे। अंत में गुरूराजा की मेहनत और लगने ने कामयाबी दिलाई।

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