चीनी मां की बेटी होने पर ज्वाला गुट्टा को हाफ कोरोना कह रहे लोग, इंटरव्यू में सामने आया बैडमिंटन स्टार का दर्द

जहां दुनिया कोरोना से परेशान है वहीं ज्वाला गुट्टा लोगों की घटिया मानसिकता से तंग आ चुकी हैं। संकट के समय में लोग उन्हें हाफ कोरोना कहकर बुला रहे हैं, क्योंकी उनकी मां चीन से थी। 

Asianet News Hindi | Published : Apr 6, 2020 10:43 AM IST

नई दिल्ली. चीन से शुरु हुआ कोरोना वायरस अब पूरी दुनिया में अपने पैर पसार चुका है। वुहान के बाद अमेरिका और स्पेन के कई बड़े शहर इस महामारी के चलते तबाह हो चुके हैं। भारत में भी कोरोना के 4 हजार से ज्यादा मामले सामने आए हैं और 100 से ज्यादा लोगों की मौत हो चुकी है। इस बीच देश की कई बड़ी हस्तियां इस महामारी के खिलाफ जंग में सरकार का साथ दे रही हैं और लोगों की मदद कर रही हैं। खेल जगत की भी कई बड़ी हस्तियां इस जंग में शामिल हैं। हालांकि बैडमिंटन स्टार ज्वाला गुट्टा को इस बीच अलग तरह की परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। जहां दुनिया कोरोना से परेशान है वहीं ज्वाला गुट्टा लोगों की घटिया मानसिकता से तंग आ चुकी हैं। संकट के समय में लोग उन्हें हाफ कोरोना कहकर बुला रहे हैं, क्योंकी उनकी मां चीन से थी। 

यह कोई पहला मौका नहीं है जब ज्वाला गुट्टा को इस परेशानी का सामना करना पड़ा हो। इससे पहले भी उन पर नस्लीय टिप्पणियां होती रही हैं। इंडियन एक्सप्रेस से बातचीत में उन्होंने बताया कि किसी भी मुद्दे पर उनसे सहमत ना होने पर लोग उन्हें सोशल मीडिया पर भी चीन का माल, हाफ चीनी और चिंकी जैसे नामों से बुलाते हैं। 

ट्रोल करने वाले ही सेल्फी खिंचवाते हैं
ज्वाला ने बताया कि जो लोग मुझे ट्रोल करते हैं वही मिलने पर सेल्फी की मांग करते हैं। ये लोग मुझे हाफ कोरोना कहने से पहले भूल जाते हैं कि भारत में मलेरिया और टीबी के मामले बहुत ज्यादा हैं। इन्हें कैसा लगेगा अगर विदेश में कोई इन्हें मलेरिया कहकर बुलाए। ज्वाला की मां को भी उनके ससुराल वालों ने कभी पूरी तरह से स्वीकार नहीं किया। हालांकि उनकी मां ने कभी भी इस बात की शिकायत नहीं की। 

बचपन में समझ नहीं आती थी ये बातें
ज्वाला ने बताया कि बचपन से ही उन पर इस तरह की टिप्पणियां होती रहती थी। तब उनको ये बातें समझ में नहीं आती थी। उन्हें लगता था कि उनका चेहरा बड़ा है इसलिए उनकी आंखें छोटी दिखती हैं। और उनका रंग भी बाकी लोगों की तुलना में साफ है, इसलिए उन्हें ऐसा कहा जाता है। 20 साल की होने के बाद उन्हें यह समझ आया कि इसमें नस्लीय भेदभाव भी शामिल है। उन्होंने देखा कि इस वजह से नॉर्थईस्ट के लोगों को भी हिंसा का सामना करना पड़ता है। बड़े शहरों में हालात जुदा नहीं हैं, वहां भी ऐसा होता रहता है। 

रवीन्द्रनाथ टैगोर के साथ पढ़ते थे ज्वाला के परदादा 
ज्वाला गुट्टा ने साथ ही बताया कि उनके परदादा भारत आए थे और रवीन्द्रनाथ टौगोर के साथ पढ़ते थे। महात्मा गांधी ने उन्हें शातिदूत नाम दिया था। वह सिंगापुर-चाइनीज न्यूजपेपर में चीफ एडिटर थे और महात्मा गांधी की आटोबायोग्राफी का अनुवार करना चाहते थे। उन्हीं की मदद के लिए ज्वाला की मां भारत आई थी। 

इसलिए ओलंपिक में टॉप पर रहता है चीन 
ज्वाला ने बताया कि वो साल 2002 में चीन के ग्वांगझू शहर में गई थी। वहां जाकर उन्हें समझ में आया कि चीम ओलंपिक की पदक तालिका में टॉप पर क्यों रहता है। वहां सड़कों पर भी टेबल लगी रहती है। हर व्यक्ति को ज्यादा से ज्यादा शारीरिक काम कराया जाता है। यहां के लोग परिश्रमी होते हैं। खुद उनकी मां सुबह 8 बजे से शाम 6 बजे तक काम करती हैं। उनकी मां को उनके सुराल वालों ने कभी स्वीकार नहीं किया, पर उनके माता पिता हमेशा एक दूसरे के साथ खड़े रहे। 

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