मुख्यमंत्री को चुनौती दे रहा था यह स्टार खिलाड़ी, लेकिन जब्त हो गई जमानत

भूटिया ने चुनाव से पहले कहा था कि वो राजनीति में लंबी पारी खेलना चाहते हैं, पर इन चुनावों में न सिर्फ भूटिया को हार मिली, बल्कि उनकी जमानत भी जब्त हो गई। भूटिया इससे पहले भी टीएमसी की सीट पर दो बार चुनाव हार चुके हैं।

Asianet News Hindi | Published : Oct 24, 2019 1:15 PM IST / Updated: Oct 24 2019, 08:57 PM IST

गंगटोक. भारतीय फुटबाल टीम के पूर्व कप्तान बाइचुंग भूटिया ने सिक्किम उपचुनाव में गंगटोक विधानसभा सीट पर राज्य के मुख्यमंत्री पीएस गोले को चुनौती दी थी। भूटिया और पीएस गोले के अलावा राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री पवन चामलिंग के करीबी मोजेस राई भी इसी सीट से चुनावी मैदान में थे। भूटिया और उनके समर्थकों को इस सीट पर जीत की उम्मीद थी। भूटिया ने चुनाव से पहले कहा था कि वो राजनीति में लंबी पारी खेलना चाहते हैं, पर इन चुनावों में न सिर्फ भूटिया को हार मिली, बल्कि उनकी जमानत भी जब्त हो गई। भूटिया इससे पहले भी टीएमसी की सीट पर दो बार चुनाव हार चुके हैं। भूटिया का राजनीतिक सफर भले ही असफलताओं से भरा रहा हो, पर खेल के मैदान पर उन्होंने भारत को एक अलग पहचान दिलाई थी। एक नजर डालते हैं भूटिया के अब तक के राजनीतिक सफर के बारे में... 

फुटबाल के अलावा भी कई खेलों का है हुनर 
15 दिसंबर 1976 को सिक्किम के तिनकिताम जन्में भूटिया ने फुटबॉल के अलावा भी बैडमिंटन, बास्केटबॉल और एथलेटिक्स में अपने स्कूल का प्रतिनिधित्व किया हैं। उनके दो बड़े भाई हैं, चेवांग भूटिया और बोम बोम भूटिया। बाइचुंग की कैली नाम की एक छोटी बहन भी हैं। उनके माता-पिता पेशे से किसान थे, और शुरुआत में उनके माता पिता को उनका फुटबाल खेलना पसन्द नहीं था। उनके पिता की मृत्यु होने के बाद चाचा कर्म भूटिया ने उनको प्रोत्साहन दिया और फुटबाल में आगे बढ़ने को कहा। भूटिया ने जी-जान ललगाकर मेहनत की और सिर्फ 9 साल की उम्र में उन्हें स्पोर्टस अथॉरिटी ऑफ इंडिया से स्कॉलरशिप मिलने लगी। 

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भास्कर गांगुली की मदद से मिला क्लब
भूटिया ने अपने गृह राज्य सिक्किम में कई स्कूलों और स्थानीय क्लबों के लिए खेलना शुरू कर दिया था, जिसमें गंगटोक स्थित बॉय क्लब भी शामिल था। 1992 के सुब्रोतो कप में भूटिया ने "बेस्ट प्लेयर" का पुरस्कार जीता और सभी की नजरों में आ गए। देस के पूर्व गोलकीपर भास्कर गांगुली उनकी प्रतिभा से प्रभावित हुए और उन्हें कोलकत्ता फुटबॉल में शामिल होने में मदद की।

क्लब में शामिल होने के लिए छोड़ा स्कूल 
1993 में भूटिया ने सिर्फ सोलह साल की उम्र में ईस्ट बंगाल एफ.सी., कलकत्ता में शामिल होने के लिए स्कूल छोड़ दिया। दो साल बाद भूटिया जे॰सी॰टी॰ मिल्स, फगवाड़ा में शामिल हो गए और इसी साल उनकी टीम ने इंडिया नेशनल फुटबॉल लीग जीती। लीग में भूटिया ने सबसे अधिक गोल किए थे। उन्हें नेहरू कप में नेशनल टीम से खेलने का मौका मिला। भूटिया ने "1996 में इंडियन प्लेयर ऑफ द ईयर" का ख़िताब भी अपने नाम किया। 1997 में, भूटिया फिर से ईस्ट बंगाल एफ.सी. में लौट आए। भूटिया को ईस्ट बंगाल और मोहन बागान के बीच मैच में पहली हैट्रिक लगाने का गौरव प्राप्त हुआ,और उनकी टीम ने 1997 के फेडरेशन कप सेमीफाइनल में मोहन बागान पर 4-1 से जीत दर्ज की। वह 1998-99 के सत्र में टीम के कप्तान बने। इस सीजन ईस्ट बंगाल लीग में उनकी टीम सलगावकर के बाद दूसरे स्थान पर रही। साल 1999 में भूटिया को अर्जुन अवार्ड से नवाजा गया। भूटिया यह अवार्ड जीतने वाले 19वें फुटबालर थे। 

विदेशों में भी मनवाया लोहा
भूटिया ने भारत के बाहर भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है। साल 1999 में भूटिया ने स्वतंत्र रूप से इंग्लैंड के ग्रेटर मैनचेस्टर के लिए भी पहला मैच खेला। मोहम्मद सलीम के बाद वह यूरोप में पेशेवर रूप से खेलने वाले दूसरे भारतीय फुटबॉल खिलाड़ी हैं। एक यूरोपीय क्लब के साथ तीन साल का करार करने के बाद भूटिया यूरोपीय क्लब के लिए साइन इन करने वाले पहले भारतीय फुटबॉल खिलाड़ी भी बन गए। 

तीन साल बाद की वतन वापसी 
युरोपीय क्लब में तीन साल तक खेलने के बाद भूटिया वापस अपने देश लौट आए। और एक साल मोहन बागान के लिए खेले। हालांकि यह साल उनके लिए कुछ खास नहीं रहा और चोट की वजह से उन्हें ज्यादा मैच खेलने का मौका भी नहीं मिला। इसके बाद भूटिया ईस्ट बंगाल क्लब से खेलने लगे और शानदार खेल दिखाया। 2005 में भूटिया मलेशिया के एक क्लब के लिए भी खेले पर मलेशियन क्लब के साथ उनका सामंजस्य नहीं बना और भूटिया ने जल्द ही क्लब छोड़। इसके भारत में भी उनका प्रदर्शन कुछ खास नहीं रहा। 2011 में भूटिया युनाईटेड सिक्किम में कोच और मैनेजर का पद भी संभाला। हितों के टकराव के चलते भूटिया ने यह क्लब हाल ही में बंद कर दिया है। 

2014 में शुरु हुआ राजनीतिक सफर
भूटिया ने 2014 में टीएमसी की सीट पर दार्जिलिंग से चुनाव लड़ा पर यहां उन्हें हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 2016 में उन्होंने कोलकाता से चुनाव लड़ा और यहां भी उन्हें हार ही नसीब हुई। इसके बाद उन्होंने पार्टी छोड़ दी और साल 2018 में हम्रो सिक्किम पार्टी का गठन किया। 2019 में भूटिया गंगटोक सीट से बुरी तरह हार गए और उनकी जमानत भी जब्त हो गई। 

(हाई प्रोफाइल सीटों पर हार-जीत, नेताओं का बैकग्राउंड, नतीजों का एनालिसिस और चुनाव से जुड़ी हर अपडेट के लिए यहां क्लिक करें)

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