तरुण विजय ने कहा कि दिव्यांगजन सहायता राजनीतिक फायदा नहीं पहुंचाती इसलिए किसी भी राजनीतिक दल द्वारा अपने घोषणापत्र में उनके लिए किसी प्रकार के आश्वासन या चुनावी घोषणा की जरूरत नहीं समझी जाती।
देहरादून. पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती ( birth anniversary of Pandit Deendayal Upadhyaya) पर तरुण विजय (Tarun Viijay) की पहल पर प्रदेश के प्रमुख दिव्यांगजन विशेषज्ञ झाझरा वनवासी आश्रम में दिन भर के विमर्श हेतु एकत्र हुए तथा जिन क्षेत्रों में दिव्यांगजन सहायता के प्रकल्प नहीं पहुंचे हैं वहां जाने की कार्य योजना तैयार की। इस कार्यक्रम में मुख्यता विकास अधिकारी नितिका खंडेलवाल ने कहा कि पठनीय अक्षमता से प्रभावित बच्चों को स्नेह, समानता और समावेशी शिक्षा की आवश्यकता है। उनको चुनावी लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने हेतु प्रोत्साहित करना चाहिए। इस प्रथम राज्य स्तरीय विमर्श में समाज कल्याण विभाग की प्रमुख हेमलता पण्डे ने विभिन्न सरकारी योजनाओं का विवरण दिया और अपठनीय क्षमता वाले बच्चों के लिए समाज में जागरण और सहयोग की अपेक्षा की।
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किन मु्द्दों पर हुई चर्चा
प्रदेश में दिव्यांगजन सहायता केवल देहरादून तक सीमित है, यहां पृथक दिव्यांग जन विभाग तक सृजित नहीं हुआ है। पठनीय अक्षमता की जांच और उसके लिए प्रमाण पत्र देने की एकमात्र व्यवस्था देहरादून में है जो भी अत्यंत दुष्कर है। पहाड़ के निवासियों के लिए अपने दिव्यांग बच्चों हेतु सहायता और निदान हेतु कोई भी केंद्र नहीं हैं, उनको यदि प्रमाण पत्र भी लेना है तो देहरादून आना पड़ता है। पठनीय अक्षमता से प्रभावित बच्चों और उनके अभिभावकों ने भी अपने विचार साझा किये। सेरिब्रल पाल्सी से प्रभावित पूजा थापा ने शानदार भाषण दिया और अपनी चित्रकला से समस्त प्रतिभागियों को प्रभावित किया।
विशेषज्ञों ने कहा यदि बच्चों में पठनीय अक्षमता की पहचान जल्दी हो जाये तो निदान संभव हो सकता है। इसके लिए अभिभावकों में जागरूकता, स्कूलों में विशेष शिक्षकों के प्रशिक्षण और नियुक्ति को सुनिश्चित करना, बच्चों को डॉक्टरी जांच की सुविधाएं पहाड़ तक पहुंचाना जरूरी है।
ससंद या विधानसभा में नहीं होती चर्चा
वहीं, तरुण विजय ने कहा कि दिव्यांगजन सहायता राजनीतिक फायदा नहीं पहुंचाती इसलिए किसी भी राजनीतिक दल द्वारा अपने घोषणापत्र में उनके लिए किसी प्रकार के आश्वासन या चुनावी घोषणा की जरूरत नहीं समझी जाती। किसी ने प्रदेश की विधानसभा या संसद में दिव्यांगजन पर कभी किसी चर्चा या बहस को होते नहीं देखा। केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिव्यांगजनों के लिए कई बहुउद्देश्यीय एवं महत्वाकांक्षी योजनाएं बनाई गयीं हैं। उनका भी प्रदेश में क्रियान्वयन होता नहीं दिख रहा है।
देश में एक करोड़ से ज्यादा दिव्यांग हैं। उत्तराखंड में तो दिव्यांगजन की स्थ्तिति का आंकलन तक नहीं किया गया है और अनेक परेशान अभिभावक अपने दिव्यांग बच्चों को हरिद्वार और हर की पैड़ी पर छोड़ आते हैं। उन्होंने ने पर्वतीय क्षेत्रों में दिव्यांगजन सहायता के लिए योजना बनाने और उसके कार्यान्वयन हेतु विश्वास प्रकट किया। इसके साथ ही राजनीतिक दलों से अपील की कि वे अपने चुनावी घोषणा पत्र में दिव्यांगजन को सहायता के लिए आश्वासन दें। पंडित दीनदयाल के स्मरण का अर्थ है समाज के दीन-हीन जन के प्रति सहानुभूति पूर्वक व्यवहार करना। खोखली राजनीतिक और नारेबाजी करना नहीं।