ईद पर कश्मीर नहीं आ सकती थी नातिन, कड़े सुरक्षा के बीच बेंगलोर पहुंचे 83 साल के नाना जी

धारा 370 कश्मीर में हटाने के बाद से कश्मीर पूरी दुनिया से कटा हुआ है। वहां से किसी भी तरह की कोई जानकारी लोगों को नहीं मिल रही है। वहीं राज्य से बाहर रह रहे कश्मीरी लोगों ने इस बार अपने घर से दूर ईद का त्यौहार मनाया।

Asianet News Hindi | Published : Aug 13, 2019 11:39 AM IST / Updated: Aug 13 2019, 05:16 PM IST

बेंगलुरू. धारा 370 कश्मीर में हटाने के बाद से कश्मीर पूरी दुनिया से कटा हुआ है। वहां से किसी भी तरह की कोई जानकारी लोगों को नहीं मिल रही है। वहीं राज्य से बाहर रह रहे कश्मीरी लोगों ने इस बार अपने घर से दूर ईद का त्यौहार मनाया। लेकिन एक कश्मीरी बुजुर्ग ने इस ईद पर अपनी 22 साल की नातिन को दुखी नहीं होने दिया। उन्होंने इतने कड़े सुरक्षा पहरे के बाद सरप्राइज विजिट कर अपनी नातिन को ईद का गिफ्ट दिया। 

बिना बताए घर से बेंगलुरू के लिए निकल गए थे अब्दुल

दरअसल, श्रीनगर के रहने वाले 83 साल के मोलवी अब्दुल पेशे से टीचर हैं। उनकी नातिन बेंगलोर में पढ़ाई कर रही है। इस बार वो ईद पर घर नहीं आ सकती है और न ही किसी भी तरह से घर पर संपर्क कर सकती थी। दादा अब्दुल को यह बात अच्छे से मालूम थी। इसलिए उन्होंने तय किया कि वो अपनी नातिन से मिलने बेंगलुरु जाएंगे। अब्दुल बिना बताए घर से बेंगलुरू के लिए निकल गए। उन्हें उनके एक स्टूडेंट ने एयरपोर्ट तक छोड़ा। अब्दुल जल्दबाजी में  बैग लॉक करना भूल गए थे। जिस वजह से उनके बैग में रखा जरूरी सामान गायब हो गया। उन्हें फ्लाइट के दौरान एक कश्मीरी महिला भी मिली थी। जिसकी मां का निधन हो गया था। लेकिन उस महिला को निधन के कुछ दिन बाद इसकी जानकारी मिली थी। अब्दुल ने बताया कि महिला को नहीं पता था कि उसकी मां को दफना दिया गया है या नहीं। 

अब्दुल जब कैंपेगोड़ा एयरपोर्ट पर पहुंचे तो उन्होंने अपनी नातिन दानिया को बताया कि वो बेंगलोर एयरपोर्ट पर खड़े हैं। दानिया को विश्वास नहीं हुआ। 22 साल की दानिया अपने नाना जी से मिलकर बहुत खुश थीं। दानिया का कहना है- 'जब से कश्मीर से धारा 370 हटाई गई है, तब से घर से संपर्क नहीं हो पाया है।' अब्दुल का कहना है- 'दानिया कश्मीर नहीं आ सकती थी, इसलिए मैं उसके साथ ईद मनानें बेंगलुरू आ गया। '


मैंने कश्मीर में कभी शांति नहीं देखी
अब्दुल बताते हैं कि उन्होंने हरि सिंह का शासनकाल देखा है। 1947, 1965 और 1972 का समय देखा है।  जब 1953 में शेख अब्दुल्ला को गिरफ्तार कर लिया था तो वे अनंतनाग से श्रीनगर पैदल गए था। लेकिन इन सभी सालों में कभी कश्मीर में शांति नहीं देखी है। अब्दुल बताते हैं, कि उनके पिताजी भी शिक्षक थे। उनको 7 रुपए मासिक तनख्वाह मिलती थी। उनके पास अपने बच्चों को पढ़ाने के लिए रुपए नहीं थे, इसलिए वह घर पर ही हम लोगों को पढ़ाते थे। अब्दुल ने ट्रिपल पीएचडी की है। वह एनसीईआरटी विभाग में कार्य भी कर चुके हैं। इसके बाद उन्होंने जम्मू में अपना खुद का इंस्टीट्यूट भी खोला । अब्दुल बताते हैं, हम चाय पीने से लेकर कपड़े तक भारत से आए पहनते हैं। वो लोग मूर्ख हैं जो हमें भारतीय नहीं मानते। 

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