अहमदाबाद सीरियल ब्लास्ट केस: 13 साल बाद 38 दोषियों को फांसी, 11 को उम्रकैद, जानें केस की पूरी कहानी

26 जुलाई 2008 का वो काला दिन। शाम को बाजार गुलजार थे और लोग अपनी रोजमर्जा की जिंदगी में व्यस्त। हर कोई अगले ही पल होने वाले खतरे से अंजान था। शाम के साढ़े 6 बजे होंगे कि तभी बाजार में अचानक जोरदार धमाका हुआ, लोग कुछ समझ पाते कि तब तक एक के बाद एक सिलसिलेवार 21 धमाके हुए।

Asianet News Hindi | Published : Feb 18, 2022 2:55 AM IST / Updated: Feb 18 2022, 12:23 PM IST

अहमदाबाद : 2008 में हुए अहमदाबाद सीरियल बम ब्लास्ट केस (Ahmedabad Serial Blast Case) में 13 साल बाद सजा का ऐलान हो गया है। कोर्ट ने IPC 302 और UAPA (Unlawful Activities Prevention Act) के तहत 38 आरोपियों को फांसी की सजा सुनाया है, जबकि 11 आरोपियों को उम्रकैद की सजा सुनाई गई है। कुल 7015 पेज का फैसला है। इससे पहले सत्र न्यायालय के न्यायाधीश एआर पटेल ने 8 फरवरी को फैसला सुनाते हुए 49 आरोपियों को दोषी करार दिया था। अदालत ने 77 में से 28 आरोपियों को बरी कर दिया था। 13 साल पहले हुए इस ब्लास्ट ने पूरे हिंदुस्तान को अंदर तक हिला कर रखा दिया था। आइए आपको बताते हैं उस काले दिन की खौफनाक कहानी और तब से अब तक क्या-क्या हुआ..

26 जुलाई 2008 का वो काला दिन
26 जुलाई 2008 का वो काला दिन। शाम को बाजार गुलजार थे और लोग अपनी रोजमर्जा की जिंदगी में व्यस्त। हर कोई अगले ही पल होने वाले खतरे से अंजान था। शाम के साढ़े 6 बजे होंगे कि तभी बाजार में अचानक जोरदार धमाका हुआ, लोग कुछ समझ पाते कि तब तक एक के बाद एक सिलसिलेवार 21 धमाके हुए। 45 मिनट में सबकुछ तबाह हो गया था, 56 लोग मारे जा चुके थे, 260 लोग जिंदगी और मौत के बीच जूझ रहे थे और जो जिंदा बच गए थे उनके सामने था मौत का खौफनाक मंजर और कभी न भूल पाने वाली खौफनाक दास्तां।

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भीड़-भाड़ वाली जगहों पर प्लांट किए गए थे बम
ये ब्लास्ट भीड़-भाड़ वाली जगहों पर दहशत फैलाने के इरादे से किए गए थे। विस्फोट से कुछ मिनट पहले, टेलीविजन चैनलों और मीडिया को एक ई-मेल मिला था, जिसे कथित तौर पर 'इंडियन मुजाहिदीन' (Indian Mujahideen) ने धमाकों की चेतावनी दी थी। ब्लास्ट के बाद गुजरात (Gujrat) की सूरत पुलिस ने 28 जुलाई और 31 जुलाई 2008 के बीच शहर के अलग-अलग इलाकों से 29 बम बरामद किए। जांच से पता चला कि गलत सर्किट और डेटोनेटर की वजह से इन बमों में विस्फोट नहीं हुआ था। गुजरात पुलिस के सामने चुनौती बहुत बड़ी थी, क्योंकि उसी दौरान आतंकवादी समूह 'इंडियन मुजाहिदीन' के हस्ताक्षर वाले सीरियल विस्फोटों की कई घटनाओं का पता नहीं चला था, जिसमें बेंगलुरु (Bengaluru), जयपुर (Jaipur), मुंबई (Mumbai), वाराणसी (Varanasi)में विस्फोट शामिल थे। जांच गुजरात में हुए इन विस्फोटों के मामलों को डिटेक्शन ऑफ क्राइम ब्रांच, अहमदाबाद सिटी की विशेष टीमों को क्राइम ब्रांच पुलिस कमिश्नर आशीष भाटिया की अध्यक्षता में सौंपा गया। 

विशेष जांच टीम बनी
अहमदाबाद में सीरियल ब्लास्ट और सूरत से बिना फटे बमों की बरामदगी में निर्दोष लोगों की जान गई। गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी (Narendra Modi) और गृहमंत्री अमित शाह (Amit Shah) ने इस मामले को गंभीरता से लिया। उन्होंने गुजरात ही नहीं देश से आतंकी गतिविधियों को खत्म करने पर विचार किया। गुजरात सरकार के नेतृत्व में मामलों का पता लगाने और इन आतंकियों को गिरफ्तार करने के लिए एक विशेष पुलिस टीम बनाया गया। तत्कालीन जेसीपी क्राइम के नेतृत्व में अहमदाबाद क्राइम ब्रांच की एक विशेष टीम का गठन किया गया। आशीष भाटिया ने इसमें मदद की। इस टीम का हिस्सा थे अभय चुडास्मा (डीसीपी क्राइम) और हिमांशु शुक्ला (एएसपी हिम्मतनगर)। इन मामलों की जांच तत्कालीन डीएसपी राजेंद्र असारी, मयूर चावड़ा, उषा राडा और वीआर टोलिया को सौंपी गई थी। अहमदाबाद क्राइम ब्रांच की इस विशेष टीम ने 19 दिनों में मामले का पर्दाफाश किया था और 15 अगस्त 2008 को गिरफ्तारी का पहला सेट बनाया था। 

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11 लोग पुलिस के हत्थे चढ़े और खुलने लगी जांच की परतें
15 अगस्त 2008 को गुजरात पुलिस ने 11 लोगों को गिरफ्तार किया, जिससे इन घटनाओं के लिए जिम्मेदार आतंकवादी संगठन इंडियन मुजाहिदीन की साजिश का पता चला। सिमी के तत्कालीन सदस्यों ने पाकिस्तान (Pakistan) में मौजूद एजेंसियों और अंडरवर्ल्ड की मदद से भारत में सिलसिलेवार विस्फोटों को अंजाम दिया था। जांच में आगे पता चला कि अहमदाबाद विस्फोटों की योजना बनाने वाले इंडियन मुजाहिदीन के सदस्यों ने मई 2008 के दूसरे हफ्ते में अहमदाबाद के वटवा इलाके में एक घर किराए पर लिया था। इसे अहमदाबाद के रहने वाले जाहिद शेख ने किराए पर लिया था। इस घर का इस्तेमाल मुख्यालय के रूप में किया जाता था, जहां मुफ्ती अबू बशीर और मोहम्मद कयामुद्दीन अब्दुल सुभान उर्फ तौकीर समेत अन्य सदस्य इस ब्लास्ट की योजना बनाने और उन्हें अंजाम देने के लिए रुके थे। धमाके के एक दिन पहले 25 जुलाई 2008 को घर खाली कर दिया गया था। जांच से पता चला कि लगभग 40 मुस्लिम लड़के, जिनमें से 23 गुजरात के थे, सभी ने मई 2008 में मध्य गुजरात में ट्रेनिंग ली थी। इन धमाकों में पकड़े गए आरोपियों से पूछताछ में ISI के हाथ होने के भी सबूत मिले। पुलिस का मानना था कि IM के आतंकियों ने 2002 में गोधरा कांड के बाद हुए दंगों के जवाब में ये धमाके किए। इस मामले के एक अन्य आरोपी यासिन भटकल पर पुलिस नए सिरे से केस चलाने की तैयारी में है।

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साइकिल पर टिफिन बॉक्स में रखे गए थे ज्यादातर बम
ज्यादातर बम साइकिल पर टिफिन बॉक्स में रखे गए थे जबकि जयपुर ब्लास्ट में इस्तेमाल नीले पॉलीथिन बैग में रखे गए थे। एलजी और सिविल अस्पतालों में बम गैस सिलेंडर से भरी गाड़ियों में रखे गए थे ताकि ज्यादा से ज्यादा लोग इसकी चपेट में आ सके। सभी बम टाइमर के जरिए सेट किे गए थे। इनमें अमोनियम नाइट्रेट का इस्तेमाल किया गया था। अहमदाबाद के सिलसिलेवार विस्फोटों के मामलों की सुनवाई और सूरत से बमों की बरामदगी को एक साथ मिला कर अहमदाबाद शहर के अतिरिक्त जिला सत्र न्यायालय के विशेष न्यायालय में सुनवाई हुई। एक फरवरी 2022 को विशेष अदालत में फैसला सुनाया जाना था लेकिन जज के कोरोना संक्रमित होने से इसे 8 फरवरी को सुनाया गया। 

82 आरोपी गिरफ्तार और केस आगे बढ़ा
इस मामले में कुल 82 आरोपी गिरफ्तार किए गए। केस चलने के दौरान दो की मौत हो गई थी। चार के खिलाफ अभी आरोप दायर करना बाकी है। कुल 76 आरोपियों की सुनवाई हो चुकी है। सूरत में बमों की बरामदगी मामले में कुल 71 आरोपी गिरफ्तार किए गए। दो की केस चलने के दौरान मौत हुई। तीन के खिलाफ अभी आरोप दायर किए जाने हैं जबकि 66 की सुनवाई हो चुकी है। इन मामलों में गिरफ्तार किए गए कुल आरोपियों में से नावेद नईमुद्दीन कादरी को मानसिक बीमारी के आधार पर जमानत पर रिहा कर दिया गया है और अयाज रजाकमिया सैय्यद मामले में सरकारी गवाह बन गया है, जिसे और गुजरात हाईकोर्ट ने जमानत दे दी है। 

1100 लोगों की गवाही, मिला इंसाफ
कोर्ट ने इस मामले की सुनवाई पिछले साल सितंबर में पूरी कर ली थी। दिसंबर 2009 में शुरू हुए इस मुकदमे में 1100 लोगों की गवाही हुई। सबूत नहीं मिलने की वजह से 28 लोगों को बरी कर दिया गया। सरकारी वकीलों में एचएम ध्रुव, सुधीर ब्रह्मभट्ट, अमित पटेल और मितेश अमीन ने दलीलें दीं, जबकि बचाव पक्ष से एमएम शेख और खालिद शेख आदि ने दलील दीं। करीब 13 साल तक इस मामले की जांच और सुनवाई चली है। लॉकडाउन के दौरान भी इस मामले की सुनवाई लगातार चलती रही। देश में पहली बार एक साथ 49 आरोपियों को आतंकवाद के गुनाह में दोषी ठहराया गया है। मामले की पूरी सुनवाई में अब तक सात जज बदल गए। अब आज इस केस के गुनहगारों को सजा दी जाएगी।

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