सबसे बड़े दानवीर : पत्नी की तमन्ना पूरी करने सरकार के नाम की बंगला, गाड़ी और बैंक बैलेंस, कुछ ऐसी लिखी वसीयत

रिटायरमेंट के बाद पति-पत्नी की इच्छा थी कि उनकी कोई संतान न होने के चलते वे अपनी सारी प्रॉपर्टी सरकार के नाम कर देंगे। इसी बीच पत्नी कृष्णा का एक साल पहले निधन हो गया। जिनकी तमन्ना पूरी करते हुए पति ने संपत्ति दान कर दी।

Asianet News Hindi | Published : Jan 14, 2022 6:25 AM IST

हमीरपुर :  हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के हमीरपुर (Hamirpur) जिले में एक डॉक्टर ने अपनी करोड़ों के संपत्ति सरकार के नाम कर दी है। नादौन के रहने वाले रिटायर्ड डॉक्टर की पत्नी का निधन एक साल पहले ही हो गया था। कोई भी संतान न होने के चलते उनकी पत्नी की इच्छा थी कि सारी संपत्ति सरकार को वसीयत कर दी जाए, क्योंकि जो भी कमाया है, वह सरकारी नौकरी में रहते ही कमाया है। पत्नी की इसी इच्छा को पूरी करने के लिए डॉक्टर पति ने सरकार को संपत्ति दान कर दी है।

सरकारी जॉब में थे पति-पत्नी
जोलसप्पड़ के गांव सनकर के 72 साल के डॉ. राजेंद्र कंवर और उनकी पत्नी कृष्णा कंवर दोनों सरकारी नौकरी करते थे। डॉक्टर राजेंद्र स्वास्थ्य विभाग में नौकरी करते थे और उनकी पत्नी शिक्षा विभाग में। रिटायरमेंट के बाद दोनों की इच्छा थी कि उनकी कोई संतान न होने के चलते वे अपनी सारी प्रॉपर्टी सरकार के नाम कर देंगे। इसी बीच पत्नी कृष्णा का एक साल पहले निधन हो गया। जिनकी तमन्ना पूरी करते हुए पति ने संपत्ति दान कर दी।

हर दिन मरीजों की सेवा करते हैं डॉ. राजेंद्र
डॉ. कंवर का जन्म 15 अक्तूबर, 1952 को धनेटा गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम डॉ. अमर सिंह और माता का नाम गुलाब देवी था। डॉ. राजेंद्र ने 1974 में MBBS की पढ़ाई इंदिरा गांधी मेडिकल कॉलेज तत्कालीन समय में स्नोडेन अस्पताल शिमला (Shimla) से पूरी की। 3 जनवरी, 1977 को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र भोरंज मे बतौर चिकित्सक ज्वॉइन किया। नौकरी के दौरान उन्होंने सेवा भाव के जज्बे के चलते प्रमोशन भी नहीं लिया। रिटायर होने के बाद भी वे हर दिन सैकड़ों मरीजों का इलाज करते हैं। वह कांगू वाले डॉक्टर के नाम से जाने जाते हैं।

क्या कहता है नियम
नायब तहसीलदार अतर सिंह से जब इसको लेकर बात की गई तो उन्होंने बताया कि हो सकता है कि ऐसी वसीयत हुई हो, लेकिन यह व्यक्तिगत और कॉन्फिडेंशियल डॉक्यूमेंट होता है। व्यक्ति की मृत्यु के बाद संबंधित पटवार सर्कल में दर्ज करवा कर बाकायदा इसके इंतकाल के बाद ही वारिस इसका मालिक बन सकता है। इसके बारे में जिस व्यक्ति ने अपनी बिल दी होती है, वही अपनी इच्छानुसार इस पर कुछ बोल सकता है। 

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