चंबा में यह परंपरा रियासत काल से चली आ रही है। तब यहां पर्व के दौरान मढि़यों के कब्जे को लेकर अगर मारपीट में किसी भी जान भी चली जाए तो राजा की ओर से एक खून माफ होता था। सदियों से चली आ रही खूनी लोहड़ी की परंपरा आज भी कायम है।
शिमला : मौसम में बदलाव, उमंग और उत्साह के प्रतीक के रूप में मनाए जाने वाला लोहड़ी त्योहार (Lohri 2022) इस साल 13 जनवरी गुरुवार को मनाया जाएगा। इसके अगले दिन यानी 14 जनवरी को माघ माह की शुरुआत भी हो जाएगी। देश के हर हिस्से में इस पर्व को मनाने की अलग-अलग परंपरा है। लेकिन देश का एक हिस्सा ऐसा भी है, जहां लोहड़ी बेहद अनोखे तरीके से मनाई जाती है। इस पर्व को लेकर हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) के चंबा जिले का इतिहास काफी अनोखा है। यहां इस पर्व को खूनी लोहड़ी के रूप में मनाया जाता है। यहां तक कि इस दिन एक खून माफ भी होता है। आइए आपको बताते हैं क्या है यहां की परंपरा और क्या है इसके पीछे की कहानी..
सदियों से चली आ रही परंपरा
चंबा में यह परंपरा रियासत काल से चली आ रही है। तब यहां पर्व के दौरान मढि़यों के कब्जे को लेकर अगर मारपीट में किसी भी जान भी चली जाए तो राजा की ओर से एक खून माफ होता था। सदियों से चली आ रही खूनी लोहड़ी की परंपरा आज भी कायम है। आज भी मढि़यों को लेकर मारपीट होती है, कइयों के सिर फूटते हैं, पुलिस का भी कड़ा पहरा रहता है। हालांकि, जान नुकसान का कोई मामला सामने नहीं आता है। कहा जाता है कि सदियों से सुराड़ा क्षेत्र को राज मढ़ी (पुरुष) का दर्जा है।
ऐसे शुरू होता है खूनी खेल
परंपरा के मुताबिक इस क्षेत्र में 13 अन्य मढ़ियां (महिला) हैं। मकर संक्रांति से एक रात पहले सुराड़ा क्षेत्र के लोग राज मढ़ी की प्रतीक मशाल को हर मढ़ी में लेकर जाते हैं। 18 से 20 फीट लंबी मशाल को एक के बाद एक मढ़ी में गाड़कर अपना कब्जा दर्शाया जाता है। कब्जा करने को लेकर दोनों क्षेत्रों के लोगों में जमकर मारपीट होती है। इसमें डंडों और धारदार हथियारों से एक-दूसरे पर हमला होता है। रियासत काल में इस दौरान अगर मारपीट में किसी भी जान भी चली जाए तो एक खून माफ होता था। यहां के लोग बताते हैं कि अभी भी इस परंपरा को निभाने के लिए मारपीट होती है, कई लोगों के सिर फटते हैं, कई को काफी चोटें आती हैं लेकिन इसकी शिकायत पुलिस में नहीं की जाती है।
मशाल घुमाने के पीछे यह है मान्यता
यहां के बड़े बुजुर्ग बताते हैं कि मढ़ियों में मशाल घुमाने के पीछे की कथा है कि इससे बुरी शक्तियों का खात्मा हो जाता है। राज मढ़ी के लोग इसे रूप में मानते हैं जबकि महिला मढ़ी वाले इसे कब्जे में रूप में देखते हैं। बुजुर्ग बताते हैं कि कई बार परंपरा के दौरान कुछ असामाजिक तत्व अपनी रंजिश निकालने के लिए भी दूसरों पर हमला कर देते हैं। हालांकि इन सबसे निपटने के लिए पुलिस-प्रशासन मुस्तैद रहता है।
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