दशहरे पर भगवान रघुनाथ का रथ खींचेंगे PM मोदी, 372 सालों पुराना है कुल्लू के दशहरे का इतिहास

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में ऐतिहासिक दशहरा कार्यक्रम में शामिल होंगे। कुल्लू के दशहरे के इतिहास बेहद पुराना है। दशहरे में शामिल होने के लिए यहां पंजीकृत 332 देवी-देवताओं को निमंत्रण भेजा गया है।

Ujjwal Singh | Published : Oct 5, 2022 5:52 AM IST

कुल्लू(Himachal Pradesh). प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बुधवार को हिमाचल प्रदेश के कुल्लू में ऐतिहासिक दशहरा कार्यक्रम में शामिल होंगे। कुल्लू के दशहरे के इतिहास बेहद पुराना है। दशहरे में शामिल होने के लिए यहां पंजीकृत 332 देवी-देवताओं को निमंत्रण भेजा गया है। दशहरा महोत्सव में भगवान रघुनाथ जी का दर्शन करने के बाद पीएम मोदी उनका रथ भी खींचेंगे। प्रधानमंत्री मोदी कुल्लू के दशहरे में शामिल होने वाले देश के पहले प्रधानमंत्री होंगे। 

कुल्लू का दशहरा पिछले 372 साल से मनाया जा रहा है। बताया जाता है कि इसकी शुरुआत 1660 के आसपास हुई थी। इसकी अध्यक्षता स्वयं भगवान रघुनाथ करते हैं। दशहरा उत्सव समिति ने हर साल इसके लिए देवी देवताओं को निमंत्रण पत्र भेजती है। इस उत्सव के लिए 332 देवी-देवता पंजीकृत हैं। कुल्लू के साथ खराहल, ऊझी घाटी, बंजार, सैंज, रूपी वैली के सैकड़ों देवी-देवता की दशहरे की झांकियां यहां शोभा बढ़ाने के लिए पहुंचेंगी।

ऐसे शुरू हुई थी परंपरा 
बताया जाता है कि कुल्लू दशहरा महोत्सव पहली बार 1660 में आयोजित किया गया था। उस समय कुल्लू रियासत की राजधानी नग्गर हुआ करती थी। वहां के राजा जगत सिंह के शासनकाल में मणिकर्ण घाटी के गांव टिप्परी निवासी गरीब ब्राह्मण दुर्गादत्त ने राजा की किसी गलतफहमी के कारण आत्मदाह कर लिया था। इसका दोष राजा जगत सिंह पर लगा और उन्हें एक असाध्य रोग हो गया। जिसके बाद राजा को बाबा किशन दास ने सलाह दी कि वो अयोध्या के त्रेतानाथ मंदिर से भगवान राम चंद्र, माता सीता और रामभक्त हनुमान की मूर्ति लाएं। मूर्तियों को कुल्लू के मंदिर में स्थापित कर अपना राज-पाट भगवान रघुनाथ को सौंप दें। इससे उन्हें ब्रह्महत्या के दोष से मुक्ति मिल जाएगी। 

अयोध्या से लाई गई राम-सीता और हनुमान की मूर्तियां
राजा ने बाबा किशन दास की सलाह मानकर भगवान रघुनाथ जी की मूर्ति लाने के लिए उनके शिष्य दामोदर दास को अयोध्या भेजा था। उन्होंने मूर्तियां लाकर रघुनाथ जी की मूर्ति को कुल्लू में स्थापित किया। उनके आगमन में राजा जगत सिंह ने यहां के सभी देवी-देवताओं को आमंत्रित किया। इसके बाद राजा भी सब कुछ छोड़कर रघुनाथ जी के मुख्य सेवक बन गए। तब से दशहरे की यह परंपरा आज भी चल रही है। 

रघुनाथ जी का रथ खींचकर होती है शुरुआत 
कुल्लू में दशहरा उत्सव का आयोजन ढालपुर मैदान में होता है। लकड़ी से बने फूलों से सजे रथ में रघुनाथ जी की सवारी को मोटे-मोटे रस्सों से खींचकर दशहरे की शुरआत होती है। राज परिवार के सदस्य शाही वेशभूषा में छड़ी लेकर वहां मौजूद होते हैं। इसके आसपास कुल्लू के देवी-देवता विराजमान रहते हैं। कु्ल्लू के दशहरे में रावण,मेघनाद और कुंभकरण के पुतले नहीं जलाए जाते। भगवान रघुनाथ मैदान के निचले हिस्से में नदी किनारे बनाई लकड़ी की सांकेतिक लंका जलाते हैं। इसी रथ को खींचकर आज पीएम मोदी दशहरे की शुरुआत करेंगे।

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