6 दिन नौकरी..सातवें दिन डॉक्टरी का काम, गरीबों के लिए मसीहा से कम नहीं है ये IAS

आकांक्षा अपनी हर छुट्टी गरीबों के बीच ही बिताती हैं, उनकी समस्याएं सुनती हैं और उनका इलाज करती हैं। आईएएस बनने से पहले आकांक्षा डॉक्टर थी। 
 

Asianet News Hindi | Published : Nov 2, 2019 1:13 PM IST / Updated: Nov 02 2019, 07:27 PM IST

रघुनाथपूर. पश्चिम बंगाल के रघुनाथपूर की एसडीओ आकांक्षा भास्कर इन दिनों खूब चर्चा में हैं। आकांक्षा ने आम जनता की सेवा के लिए खुद को पूरी तरह से समर्पित कर दिया है। यह आईएएस अफसर हफ्ते में 6 दिन नौकरी करती है और सातवें दिन डॉक्टर बनकर गरीबों का इलाज करती हैं। आकांक्षा अपनी हर छुट्टी गरीबों के बीच ही बिताती हैं, उनकी समस्याएं सुनती हैं और उनका इलाज करती हैं। आईएएस बनने से पहले आकांक्षा डॉक्टर थी। 

आकांक्षा से पहले तमिलनाडु के थुथुकुडी में आईएएस अफसर संदीप नंदूरी भी अपनी जनसेवा की बावना के कारण खूब चर्चा में थे। संदीप ने रोजगार मांगने पहुंचे दिव्यांगजनों के लिए कलेक्ट्रेट में ही कैफे खुलवा दिया था। 

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आईएएस बनने से पहले डॉक्टर थी आकांक्षा 
आईएएस की नौकरी ज्वाइन करने से पहले आकांक्षा डॉक्टर थी। प्रशासनिक अधिकारी बनने के बाद भी आकांक्षा अपना फर्ज नहीं भूली हैं। यह महिला अफसर अपनी हर छुट्टी गरीबों के बीच ही बिताती है। और उनकी समस्याएं सुनकर ईलाज भी करती है। हाल ही में आकांक्षा पुरुलुया के संतुरी गांव पहुंची थी, जहां के प्राथमिक चिकित्सा केन्द्र की हालत देखकर वह बहुत नाराज हुई और खुद ही स्टेथोस्कोप उठाकर मरीजों का इलाज करने लगी। 

एक साथ 40 मरीजों का किया था इलाज
संतुरी में आकांक्षा ने एक साथ 40 लोगों का इलाज किया, उनके लिए जरूरी दवाइयों का इंतजाम किया और अब यह उनकी दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। छुट्टी होने पर आकांक्षा आईएएस अफसर नहीं बल्कि क्षेत्र के गरीब और आदिवासी लोगों के लिए डॉक्टर बन जाती हैं। 

लोगों से जुड़ने का बेस्ट तरीका
खुद के स्टेथोस्कोप उठाने पर आकांक्षा भास्कर का कहना है कि "संतुरी के अस्पताल में पार्याप्त सुविधाएं नहीं थी, वहां मेडिकल स्टाफ की कमी थी। अस्पताल के कमरों का निरीक्षण करते हुए मुझे लगा कि लोगों से जुड़ने का इससे बेहतर तरीका नहीं हो सकता ।  

पहले प्रयास में पास की थी यूपीएससी की परीक्षा       
बनारस की रहने वाली आकांक्षा ने 24 साल की उम्र में अपने पहले ही प्रयास में यूपीएससी की परीक्षा पास कर ली थी। उनकी ऑल इंडिया रैंक 76वीं थी। आकांक्षा का कहना है कि डॉक्टर रहते हुए वो लोगों की बीमारी तो ठीक कर सकती थी, पर उनको जागरुक करने के लिए जिन अधिकारों की जरूरत होती है वो किसी प्रशासनिक सेवा में ही मिल सकते हैं। इसलिए उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा देन का निर्णय लिया। 

जीवन स्तर बेहतर करने के लिए कर रही काम 
आकांक्षा का मानना है कि आदिवासियों के जीवन स्तर को बेहतर बनाने के लिए स्वास्थ्य ही पहली सीढ़ी है। इसके लिए वह अक्सर गांव में हेल्थ चेकअप कैंप लगाती हैं। और उन कैम्प में वह खुद लोगों का इलाज करती हैं।

     

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