वो 10 बातें...कैसे गुलाम मोहम्मद से बने गामा पहलवान, पूरी दुनिया करती थी सैल्यूट, अंत समय बेचने पड़े सभी मेडल

गामा पहलवान अपनी डाइट में देसी खानपान को रखते थे। उनके शरीर की मजबूती के हिसाब से उनकी डाइट भी हुआ करती थी। गामा पहलवान हर दिन 10 लीटर दूध पिया करते थे। उनकी डाइट में छह देसी मुर्गे शामिल थे। वे आधा लीटर घी, डेढ़ लीटर मक्खन, बादाम का शरबत और 100 रोटी खाया करते थे।
 

Asianet News Hindi | Published : May 22, 2022 6:25 AM IST / Updated: May 22 2022, 01:18 PM IST

चंडीगढ़ : आज भारत के महान पहलवान द ग्रेट गामा का 144वां जन्मदिन है। दुनिया में शायद ही कोई हो जिसने इस पहलवान के किस्से न सुने हो। कश्मीरी मुस्लिम परिवार में जन्मे गामा पहलवान को पूरी दुनिया सैल्यूट करती थी। महज 10 साल की छोटी सी उम्र में इस पहलवान को दुनिया पहचान गई थी, कि एक दिन इसके आगे बड़े से बड़ा पहलवान भी टिक नहीं पाएगा। लेकिन दुनिया के पहलवान जिस रुस्तम-ए-हिंद के आगे धूल फांकते थे, उसका आखिरी समय काफी कठिनाईयों में गुजरा। आर्थिक तंगी इस कदर थी कि 50 साल के करियर में जो मेडल जीते उन्हें तक बेचने पड़े। जानिए गामा पहलवान की लाइफ से जुड़ी 10 बातें... 

गुलाम मोहम्मद से बने गामा पहलवान
गामा पहलवान (Gama Pehalwan) का जन्म 22 मई 2022 को पंजाब (Punjab) के अमृतसर (Amritsar) के जब्बोवाल गांव में हुआ था। कई जगह यह भी कहा जाता है कि उनका जन्म मध्यप्रदेश के दतिया में हुआ था। गामा पहलवान का असली नाम ग़ुलाम मोहम्मद था। उनके वालिद मोहम्मद अजीज बक्श भी देसी कुश्ती के खिलाड़ी थे। गामा पहलवान जब छह साल के हुए तो उनके सिर से पिता का साया उठ गया। पिता के जाने के बाद उनके नाना नून पहलवान और मामा ईदा पहलवान ने उन्हें दांव-पेंच की बारीकियां सिखाईं।

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10 साल की उम्र में बना ली पहचान
गामा पहलवान महज छह साल के थे जब उनके पिता का इंतकाल हो गया। पिता के जाने के बाद उनके नाना नून पहलवान और मामा ईदा पहलवान ने उन्हें दांव-पेंच की बारीकियां सिखाईं। पहली बार गामा को लोगों ने तब जाना जब वे महज 10 साल  के थे। बात साल 1888 की है। राजस्थान के जोधपुर में सबसे ताकतवर शख्स की खोज में एक प्रतियोगिता हुई। इस प्रतियोगिता में 400 से ज्यादा पहलवान हिस्सा लेने पहुंचे। जब प्रतियोगिता समाप्त हुई तो गामा टॉप-15 पहलवानों में शामिल थे। इतनी कम उम्र में गामा की ताकत देख हर कोई हैरान रह गया। जोधपुर के महाराज ने उनकी कम उम्र को देखते हुए गामा को ही विजेता घोषित कर दिया। इसके बाद गामा भी दतिया महाराज के दरबार में पहलवानी करने लगे।

सिर्फ 5 फीट 7 इंच हाईट 
इसके बाद गामा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उनकी हाईट सिर्फ 5 फीट 7 इंच थी और उनका वजन 113 किलो। उनकी हाईट की वजह से ही साल 1910 में लंदन में हुए इंटरनेशन कुश्ती चैंपियनशिप में उन्हें शामिल नहीं किया गया। इसके बाद उन्होंने वहां मौजूद पहलवानों को चुनौती दी कि वे किसी भी पहलवान को सिर्फ 30 मिनट में ही हरा सकते हैं। हालांकि उन्हें किसी ने सीरियस नहीं लिया और उनकी चुनौती को स्वीकार नहीं किया।

एक-दो मिनट में ही बड़े-बड़े चित
जब किसी ने उनकी चुनौती को स्वीकार नहीं किया त गामा ने विश्व चैंपियन स्टैनिस्लॉस जैविस्को, फ्रैंक गॉच को चुनौती दी और कहा कि या तो वह उन्हें हरा देंगे या इनाम में जो राशि मिलेगी वो उन्हें देकर वापस लौट जाएंगे। जिसके बाद अमेरिका के पहलवान बेंजामिन रोलर ने उनकी चुनौती स्वीकार की, जिन्हें गामा ने पहली बार में ही एक मिनट 40 सेकेंट में ही धूल चटा दिया। इसके बाद दूसरे को 9 मिनट 10 सेकेंड में चारों खाने चित  कर दिया। अगले दिन उन्होंने एक के बाद एक 12 पहलवानों को मात दी और रुस्तम-ए-हिंद के नाम से प्रसिद्ध हो गए। 

पांच दशक का करियर, कई खिताब नाम
अपने पांच दशक के कुश्ती के करियर में गामा ने कई खिताब अपने नाम किया। इसमें 1910 में वर्ल्ड हैवीवेट चैम्पियनशिप, 1927 में वर्ल्ड कुश्ती चैम्पियनशिप को जीता। कोई भी पहलवान उनके सामने टिक नहीं पाता था। जहां भी वे दांव लगाते, जीत उनकी ही होती। बड़े से बड़े पहलवान को वे धूल चटा देते थे। एक के बाद एक उन्होंने कई मेडल अपने नाम किए। कहा जाता है कि एक बार तो गामा ने मार्शल आर्ट आर्टिस्ट ब्रूस ली को भी चैलेंज कर दिया था। दोनों की मुलाकात भी हुई थी। तब ब्रूस ली ने गामा पहलवान से 'द कैट स्ट्रेच' सीखा। 

जब हिंदू परिवारों की गामा पहलवान ने बचाई जान
1947 में जब बंटवारा हुआ तब गामा अमृतसर से लाहौर की मोहिनी गली में बस गए थे। बंटवारे ने हिंदू-मुसलमान के बीच बड़ी दीवार खड़ी कर दी। गामा ने गली में रहने वाले हिंदुओं परिवारों की जान बचाई। कहा जाता है कि  उन्होंने कहा, इस गली के हिंदू मेरे भाई हैं. देखें इनपर कौन सा मुसलमान आंख या हाथ उठाता है। इस तरह उनकी बहादुरी से कई परिवारों की जान बच गई थी।

तंगी में मेडल तक बेचने पड़े
गामा पहलवान जिंदगी में कभी हारे नहीं लेकिन उनकी लाइफ के आखिरी दिन काफी तंगी में गुजरे। पाकिस्तान सरकार की अनदेखी के कारण उनकी आर्थिक स्थिति बदहाल होती चली गई। कहा जाता है कि एक वक्त ऐसा भी था जब उन्हें अपने परिवार के गुजारा के लिए अपने मेडल तक बेचने पड़े थे। यह भी बताया जाता है कि जब गामा का परिवार आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा था, तब घनश्याम दास बिड़ला, जो कि कुश्ती प्रेमी थे। उन्होंने दो हजाह की एक मुश्त राशि और 300 रुपए मासिक पेंशन गामा के लिए बांधी थी। बड़ौदा के राजा भी उनकी मदद के लिए आगे आए थे। जब पाकिस्तान सरकार की किरकिरी हुई तो उसने भी गामा के इलाज के लिए पैसे दिए।

वर्ल्ड चैंपियन की आखिरी फाइट 
गामा पहलवान ने आखिरी बार 1927 में कुश्ती का दांव आजमाया। उनका मुकाबला स्वीडन के पहलवान जेस पीटरसन से था। गामा ने इसमें पीटरसन को चारों खाने चित कर दिया। हालांकि यह उनकी आखिरी फाइट थी और उन्होंने इसके बाद कुश्ती को अलविदा कह दिया। 1947 में जब भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ तो वह अपनी फैमिली के साथ लाहौर चले गए। 23 मई, 1960 को उन्होंने अंतिम सांस ली। 

ऐसी थी गामा की फैमिली
कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गामा ने दो बार निकाह किया। उनकी पहली बेगम वजीर बेगम थी और एक अन्य महिला के साथ भी उन्होंने निकाह किया। उनके पांच बेटे और चार बेटियां थी। उनकी पोती पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री नवाज शरीफ की पत्नी हैं। कुश्ती छोड़ने के बाद गामा ने अपने भतीजे भोलू पहलवान को प्रशिक्षित किया। वो 20 साल तक पाकिस्तानी कुश्ती के चैंपियन रहे। 

6 देसी चिकन, 10 लीटर दूध रोजाना पीते थे
गामा पहलवान की डाइट जान हर कोई हैरान रह जाता था। उनकी डाइट में छह देसी चिकन, 10 लीटर दूध, आधा किलो घी,  100 रोटी खाया करते थे और सवा किलो बादाम शामिल था। उनकी खुराक का पूरा खर्च राजा भवानी सिंह उठाते थे। गामा पहलवान हर दिन अपने 40 साथियों के साथ कुश्ती करते थे। अपनी रोजमर्रा की जिंदगी में वे पांच हजार दंड-बैठक, तीन हजार पुश-अप करते थे।

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