सिद्धू ने किया सरेंडर, भेजे गए पटियाला सेंट्रल जेल, 'गुरु' अपने कट्टर विरोधी मजीठिया के साथ एक ही जेल में...

कांग्रेस के पंजाब प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष व पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू ने पटियाला कोर्ट में शुक्रवार को सरेंडर कर दिया है। सरेंडर करने के लिए वह पूरी तैयारी के साथ कोर्ट में पेश हुए।

पटियाला। कांग्रेस के पंजाब प्रदेश के पूर्व अध्यक्ष व पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू ने पटियाला कोर्ट में शुक्रवार को सरेंडर कर दिया है। सरेंडर करने के लिए वह पूरी तैयारी के साथ कोर्ट में पेश हुए। कोर्ट में कार्रवाई पूरी होने के बाद उनको मेडिकल चेकअप के लिए भेजा गया। मेडिकल के बाद सीधे पटियाला सेंट्रल जेल भेज दिया गया। दरअसल, सुप्रीम कोर्ट ने मामले में सिद्धू को कोई राहत नहीं दी। शुक्रवार को क्यूरेटिव पेटिशन तत्काल सुनने से इनकार करने के बाद सिद्धू को सरेंडर करना पड़ा। अगर वह सरेंडर नहीं करते तो कोर्ट के आदेश पर पुलिस उनको अरेस्ट करती। 

दो कट्टर विरोधी एक ही जेल में...

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सरेंडर करने के बाद नवजोत सिंह सिद्धू को पटियाला सेंट्रल जेल भेज दिया गया। कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष नवजोत सिंह सिद्धू को कुछ दिनों तक यहीं रहना होगा। मजे कि बात यह कि सिद्धू के कट्टर विरोधी विक्रम मजीठिया भी इसी जेल में हैं। वह ड्रग केस में बंद हैं। 

क्यों नवजोत सिंह सिद्धू को करना पड़ा सरेंडर?

दरअसल, पूर्व क्रिकेटर से राजनेता बने नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Sidhu) को रोड रेज मामले में एक साल जेल की सजा सुनाई गई है। सुप्रीम कोर्ट ने एक समीक्षा याचिका में अपने 2018 के फैसले को संशोधित किया और सिद्धू को एक साल के कठोर कारावास की सजा सुनाई है। यह मामला साल 1988 का है। पटियाला में रोड रेज को लेकर हुए विवाद के दौरान सिद्धू ने 65 साल के गुरनाम सिंह नामक बुजुर्ग के सिर पर घूंसा मार दिया था, जिससे उनकी मौत हो गई थी। इस मामले में सिद्धू पर केस दर्ज हुआ। इसके बाद यह मामला अदालत के अधीन रहा। 1999 तक मामला निचली अदालत में था। निचली अदालत ने सिद्धू को बरी कर दिया था। इसके बाद उच्च न्यायालय में एक अपील दायर की गई थी, जिसने 2006 में सिद्धू को दोषी ठहराया था।

सिद्धू ने तब शीर्ष अदालत का रुख किया, जिसने 2018 में माना कि जांच में चूक हुई थी, लेकिन धारा 323 के तहत चोट पहुंचाने के अपराध के लिए उसकी सजा को केवल 1000 रुपए के जुर्माने तक कम कर दिया। परिवार ने फिर एक समीक्षा याचिका दायर की। जस्टिस एएम खानविलकर और जस्टिस एसके कौल की बेंच ने अब फैसले में बदलाव किया है।

अदालत अगर सजा नहीं देगी तो यह अन्याय होगा

पीठ ने कहा कि हम मानते हैं कि केवल जुर्माना लगाने और प्रतिवादी को बिना किसी सजा के जाने देने की आवश्यकता नहीं थी। जब एक 25 वर्षीय व्यक्ति (जो एक अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर था) अपनी उम्र के दोगुने से अधिक व्यक्ति पर हमला करता है और अपने नंगे हाथों से भी उसके सिर पर गंभीर प्रहार करता है तो नुकसान का अनपेक्षित परिणाम अभी भी उचित रूप से जिम्मेदार होगा। हो सकता है कि आपा  खो गया हो, लेकिन फिर गुस्से का नतीजा भुगतना होगा। कोर्ट ने कहा कि यदि अदालतें घायलों की रक्षा नहीं करती हैं तो समाज गंभीर खतरों के तहत लंबे समय तक नहीं टिक सकता। घायल निजी प्रतिशोध का सहारा लेंगे। इसलिए अपराध की प्रकृति और जिस तरीके से इसे निष्पादित या प्रतिबद्ध किया गया था, को ध्यान में रखते हुए उचित सजा देना हर अदालत का कर्तव्य है। 

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