5 कारण से समझें 18 साल के करियर में क्यों हार गए नवजोत सिंह सिद्धू

पंजाब की अमृतसर ईस्ट सीट (Amritsar East Assembly seat) से कांग्रेस के उम्मीदवार नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Siddhu)चुनाव हार गए हैं। कांग्रेस के लिए ये एक बड़ा झटका है। यहां से आम आदमी पार्टी की उम्मीदवार जीवनजौत कौर (jeevanjot kaur) ने सीट पर कब्जा किया है।


पंजाब से मनोज ठाकुर

अमृतसर ईस्ट. ओवर कॉन्फीडेंस ने नवजोत सिंह सिद्धू (Navjot Singh Siddhu) के राजनीतिक करियर पर पहला विराम लगा दिया है। कांग्रेस पार्टी की तरफ से अमृतसर सीट (Amritsar East Assembly seat) पर चुनाव लड़ रहे सिद्धू के सामने मजीठिया (BIKRAM SINGH MAJITHIA) और आप उम्मीदवार जीवनजौत कौर (JEEVAN JYOT KAUR)    थी। लेकिन दोनों दिग्गजों को कौर से हार का सामना करना पड़ गया। उनके मित्र और मुखालफत करने वाले कम से कम एक बात पर तो सहमत है, वह बात है, कि सिद्धू को तो खुद सिद्धू भी नहीं समझ पाता कि अगले क्षण वह करेंगे क्या? उनकी यही खूबी उनके लिए सबसे बड़ी खामी बन गई। एमपी और MLA के तौर पर 18 साल के राजनीतिक करियर में कोई उन्हें मात नहीं दे पाया था, अफसोस इसबार वो भी मिथ टूट गया।
 

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सिद्धू के लिए यह हार उनके करियर की पहली हार है। कहां तो वह खुद को सीएम फेस घोषित कराने के चक्कर में थे। और जब चुनाव परिणाम आया तो वह आसमान से एक दम जमीन पर आ गए हैं। उनकी हार की सबसे बड़ी वजह रही, उनका अपना काम करने का तरीका। मतदाताओं से लगातार दूरी। सेलिब्रिटी वाली छवि से वह बाहर निकल ही नहीं पाए। इसके साथ ही चुनाव प्रचार में भी वह आक्रामक नहीं दिखी, जिस तरह की आक्रामकता मजीठिया ने दिखाई। 

बीजेपी के टिकट पर 2004 में लड़ा था पहला चुनाव 
सिद्धू ने 2004 में अमृतसर सीट से भाजपा के टिकट पर पहला लोकसभा चुनाव लड़ा था। हत्या का एक आरोप उन पर लगा, इस वजह से उन्हें दो साल बाद ही 2006 में पद छोड़ना पड़ गया था। 2009 में उन्होंने कांग्रेस के सुरिंदर सिंगला को 77626 मतों से हराया था। 2014 का चुनाव लड़ा नहीं। भाजपा सरकार ने उन्हें राज्यसभा में भेज दिया। यहां उन्होंने सितंबर 2016 में रिजाइन कर दिया था। भाजपा को छोड़ सिद्धू ने आवाज ए पंजाब नाम का एक संगठन बनाया। 2017 में वह कांग्रेस में शामिल हो गए। अमृतसर ईस्ट से वह विधायक चुने गए। 2021 में वह कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष बने। इस पद पर भी एक बार रिजाइन कर चुके हैं।

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चाहने वालों के साथ साथ विरोधियों की भी लंबी फेहरिस्त
सिद्धू के समर्थकों की कमी नहीं है। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि उनके विरोधी नहीं है। उनकी अपनी पार्टी में उनका जबरदस्त विरोध था। हालांकि वह अपने जोरदार तर्कों से विरोधियों का मुंह अक्सर बंद कर देते थे। वह जब भी बोलते हैं, आक्रामक तरीके से अपनी बात रखते हैं। बात को सही साबित करने के लिए तथ्यों का सहारा लेते हैं। जब वह बोलते हैं तो मजाल है कोई दूसरा उनके सामने बोल जाए। वह अक्सर कहते हैं, पंजाब को विकास के पथ पर ले जाना है। इसे वह अपना सपना करार देते हैं, लेकिन सिद्धू को इस बार सामने वाले का जबरन मुंह बंद करना भारी पड़ गया।

सिद्धू से लोग नाराज इसलिए...
1- सेलिब्रेटी वाली छवि से बाहर नहीं निकले। विधानसभा हलके में विकास नहीं हुआ।
2- सिद्धू दंपती लोगों को आसानी से उपलब्ध नहीं है। वह कुछ लोगों तक सीमित रहे।
3- रही-सही कसर कांग्रेस की ओर से सीएम फेस न बनाए जाने से पूरी हो गई।
4- सिद्धू के पास एरिया में प्रचार के लिए न टीम है और न रणनीति बनाने वाले लोग।
5- इलाके का वोटर भी समझ रहा है कि ये लोग 5 साल बाद सिर्फ वोट मांगने आते हैं।

अमृतसर ईस्ट सीट का इतिहास
- अमृतसर ईस्ट सीट पर 2017 में सिद्धू ने BJP कैंडिडेट राजेश हनी को 42809 वोटों से हराया।
- अमृतसर ईस्ट विधानसभा सीट पर पहला चुनाव 1951 में हुआ जिसमें सरूप सिंह ने जीत दर्ज की।
- 1957, 1962 और 1967 में लगातार 3 बार भारतीय जनसंघ के बलदेव प्रकाश यहां से MLA बने।
- 1969 और 1972 में यह सीट कांग्रेस के कब्जे में चली गई।
- 2012 में इस विधानसभा क्षेत्र में वेरका और शहर के कुछ इलाके मिला दिए गए।
- 2012 में BJP ने अकाली दल से यह सीट लेते हुए सिद्धू की पत्नी नवजोत कौर को टिकट दिया जो जीतीं।

2017 में यह रहा अमृतसर ईस्ट का रिजल्ट
कुल मतदाता : 1,53,288
वोट पोल हुए : 99306 (64.78%)
नवजोत सिद्धू (कांग्रेस) को वोट मिले : 60447
राजेश हनी (BJP) को वोट मिले : 17668
सर्बजोत सिंह धांजल (AAP) को वोट मिले : 14715
सिद्धू ने जीत दर्ज की : 42809

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