आप की आंधी में उड़ गए 94 साल के अनबिटेबल प्रकाश सिंह बादल, ये थे देश के सबसे बुजुर्ग कैंडीडेट

पंजाब विधानसभा (Punjab Vidhan Sabha 2022 Result) की लंबी विधानसभा सीट से प्रकाश सिंह बादल (Parkash Singh Badal) हार गए हैं। ये देश के सबसे बुजुर्ग कैंडीडेट थे। ये शिरोमणी अकाली दल से प्रत्याशी थे
 

लंबी. इस बार देश के सबसे बुजुर्ग, 94 वर्षीय कैंडिडेट प्रकाश सिंह बादल (Parkash Singh Badal) ने लंबी विधानसभा सीट (Lambi assembly seat) गंवा दी। उन्हें आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) के गुरमीत सिंह खुड़िया (Gurmeet Singh Khudia) ने हरा दिया। वह बीमार थे, इसलिए चुनाव  प्रचार की कमान उनकी पुत्रवधू और पूर्व केंद्रीय मंत्री हरसिमरत कौर बादल (Former Union Minister Harsimrat Kaur Badal) ने संभाली। प्रकाश सिंह बादल का पोता और सुखबीर बादल का बेटा अनंत वीर सिंह बादल भी अपने दादाजी का चुनाव प्रचार करते रहे। लेकिन आज जब चुनाव परिणाम सामने आया तो वह सीट गंवा चुके थे। बादल पांच बार पंजाब के सीएम रह चुके हैं। 

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राजनीति में प्रकाश सिंह बादल के नाम कई रिकॉर्ड है। देश में सबसे युवा सीएम बनने का रिकॉर्ड भी उनके नाम है। जब वह पहली बार 1970 में सीएम बने थे तो उनकी उम्र 43 साल थी। वहीं जब 2012 में पांचवी बार सीएम बने तो देश के सबसे उम्रदराज सीएम बनने का रिकॉर्ड भी उनके नाम है।
अभी विधानसभा सीट पर लंबी में उनका एकछत्र राज रहा है। उन्हें हरान तो दूर की बात है, प्रतिद्वंद्वी उनके नजदीक भी नहीं पहुंचे थे। इस सीट पर कुल 13 बाद चुनाव हुआ। जिसमें से 5 बार 1997 से अभी तक तो प्रकाश सिंह बादल ही विधायक चुने गए। 
जबकि बादल से पहले तीन बार कांग्रेस और दो बार कम्यूनिस्ट पार्टी ऑफ इंडिया ने भी इस सीट पर राज किया है। प्रकाश सिंह बादल से पहले बादल के ही बड़े भाई गुरदास सिंह बादल अकाली दल के टिकट पर 1977 से 1980 तक इस सीट से विधायक रह चुके हैं। वहीं 1997 से पहले गुरनाम सिंह कांग्रेस के टिकट पर इस सीट से विधायक थे। 2017 में कैप्टन अमरिंदर सिंह यहां से प्रकाश सिंह बादल को चुनौती देने के लिए आए, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। इस चुनाव में प्रकाश सिंह बादल को 66,375 और कैप्टन अमरिंदर सिंह को 43,605 वोटें मिली थी। 
 

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इस बार लंबी सियासी फिजा में कुछ बगावती सुर परवान हो रहे थे। इस बार उन्हें युवाओं की मुखालफत का सामना करना पड़ रहा है। उनका स्वास्थ्य भी ठीक नहीं है। यह मान लिया जाना चाहिए कि बादल का सियासी दुर्ग कमजोर हो गया है। आम आदमी पार्टी के गुरमीत सिंह खुड़िया ने बादल को हराया है। कांग्रेस जगपाल सिंह अबूल खुराना को उतारा, तो पहली बार भाजपा भी इस सीट से अपनी किस्मत आजमा रही है।

ये हैं बादल की हार की वजह... 

1 - अकाली दल का पंजाब में वर्चस्व खत्म हो रहा है। 2017 में जो अकाली दल पर बेअदबी के आरोप लगते रहे इन आरोपों से अकाली दल अभी तक खुद को मुक्त नहीं करा पाया। अकाली दल की ओर से इस तरह की कोशिश ही नहीं की गई।

2 - विरोध को समझने में नाकामयाब रहे प्रकाश सिंह उनका अपना गांव बादल है, इस गांव में ही प्रकाश सिंह बादल का विरोध था। पर क्योंकि बादल को लगता था कि वह अपने गांव में खासे लोकप्रिय है। इसलिए वह हार नहीं सकते। कहना गलत नहीं होगा कि प्रकाश सिंह बादल अति आत्मविश्वास का शिकार होगा। 

3 - भाजपा का साथ छूट गया। इस बार भाजपा का साथ भी अकाली दल के साथ नहीं था। इसका असर यह पड़ा कि वोट बंट गए। भाजपा अलग चुनाव लड़ रही थी, इस वजह से बादल के वोट में सेंध लगी। जो उनकी हार की वजह बन गई। 

4 - युवा बदलाव का मन बनाए हुए थे। वह बार बार बदलाव की बात करते रहे। उनका मानना था कि एक ही नेता को बार बार जीताना सही नहीं है। इसलिए किसी दूसरे को भी यह मौका मिलना चाहिए। 

5 - मतदाता के विश्वास पर खरे नहीं उतरे 2012 के चुनाव में प्रकाश सिंह बादल ने ऐलान किया था कि यह उनका आखिरी चुनाव है। लेकिन वह 2017 का चुनाव भी लड़े। इस तरह से मतदाता का उनके साथ जो इमोशनल अटैचमेंट थी, वह किसी न किसी स्तर पर कम हुई है।

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