अकाली ने 97 सीट जबकि बसपा ने 20 सीटो पर अपने प्रत्याशी उतारे। लेकिन मात्र एक सीट पर बसपा को संतोष करना पड़ा। बसपा की कोशिश थी कि पंजाब में अपना सियासी आधार मजबूत किया जाए। बसपा प्रमुख मायावती ने पार्टी का प्रचार भी किया। इसके बाद भी मतदाता पर पार्टी पकड़ बनाने में चूक गई।
पंजाब से मनोज ठाकुर की रिपोर्ट
चंडीगढ़ : पंजाब (Punjab) से बहुजन समाज पार्टी (BSP) की शुरुआत हुई थी। कांशीराम (Kanshi Ram) के नेतृत्व में बाद बसपा का जनाधार मजबूत हुआ। लेकिन बसपा इसे बरकरार नहीं रख पाई। परिणाम यह रहा कि पिछली विधानसभा में बसपा का एक भी MLA नहीं है। जबकि अकाली दल 2017 में 15 सीटों पर जीत दर्ज की थी। 2022 के चुनाव में शिरोमणि अकाली दल (Shiromani Akali Dal) के साथ मिल बसपा ने खुद को मजबूत करने की कोशिश की। अकाली ने 97 सीट जबकि बसपा ने 20 सीटो पर अपने प्रत्याशी उतारे। लेकिन मात्र एक सीट पर बसपा को संतोष करना पड़ा। बसपा की कोशिश थी कि पंजाब में अपना सियासी आधार मजबूत किया जाए। बसपा प्रमुख मायावती (Mayawati) ने पार्टी का प्रचार भी किया। इसके बाद भी मतदाता पर पार्टी पकड़ बनाने में चूक गई।
वह कारण जिस वजह से पिछड़ गई बसपा
1 - मजबूरी का गठबंधन है
अकाली दल भाजपा (BJP) से अलग हुआ। उन्हें कोई ऐसा साथी चाहिए था जो गैर सिख वोटर को भी अकाली दल से जोड़ सके। इसलिए उन्होंने बसपा को साथ मिलाया। कोई वैचारिक तालमेल नहीं था। जिस पर चल कर दोनों दल नया प्रयोग करते।
2 - बसपा ने शेड्यूल वोटर से पकड़ खो दी
बसपा की मजबूती दलित वोटर था। लेकिन पंजाब में लंबे समय से बसपा इस वर्ग से पूरी कटी रही। चुनाव के मौके पर इस वर्ग को जोड़ने की कोशिश की। लेकिन तब तक वक्त निकल चुका था।
3 - अकाली समर्थकों ने वोट ही नहीं दिया
जो सीट बसपा के पास गई, वहां अकाली दल ने बसपा को वोट नहीं दिया। क्योंकि पंजाब का सिख वोटर बसपा को वोट करना पसंद नहीं करता। इसका कारण यह रहा कि अकाली वोटर दूसरी पार्टियों की ओर चले गए।
4 - डेरा फैक्टर
डेरा सच्चा सौदा (Dera Sacha Sauda) के अनुयायियों में बड़ी संख्या शेड्यूल वोटर की है। क्योंकि चुनाव से ऐन पहले गुरमीत राम रहीम (Gurmeet Ram Rahim Singh) को पैरोल मिल गई थी। डेरा का झुकाव बीजेपी की ओर रहा। इस वजह से भी बसपा का वोट कट गया।
5 - बेमेल गठबंधन रहा
अकाली दल और बसपा का ज्यादा वोटर गांव का है। अकाली दल का सिख वोटर और शेड्यूल वोटर के बीच यूं ही टकराव चलता रहता है। अब जब चुनाव में दोनों पार्टियों ने गठबंधन तो कर लिया, लेकिन यह एक तरह से बेमेल ही रहा।
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