पंजाब किसान आंदोलन में धरना दे रहे 2 किसानों की मौत, पढ़िए भूखे-प्यासे अन्नदाताओं की दर्दनाक कहानी

 पंजाब में पिछले 16 दिन से कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन जारी है। भूखे-प्यासे किसान अपना हक और मांगों को लेकर धरना प्रर्दशन कर रहे हैं। इस दौरान प्रदेश के 2 बुजुर्ग किसानों की मौत हो गई। जिसमें एक पुरुष के साथ  80 वर्षीय महिला किसान शामिल है।

 

संगरूर. पंजाब में पिछले 16 दिन से कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन जारी है। भूखे-प्यासे किसान अपना हक और मांगों को लेकर धरना प्रर्दशन कर रहे हैं। इस दौरान प्रदेश के  2 बुजुर्ग किसानों की मौत हो गई। जहां एक ने तो मंच पर नारे लगाते ही दम तोड़ दिया। वहीं दूसरी महिला किसान की  रेल रोको आंदोलन में रेलवे ट्रैक पर मौत हो गई।

मंच पर लगाया नारा और आ गया हार्ट अटैक 
दरअसल, जत्थेबंदियों के धरने-प्रदर्शनों में शामिल इन दो किसानों की मौत शुकवार शाम में हुई। बताया जाता है कि जब संगरूर के बेनड़ा गांव के किसान मेघराज बावा (65) की मंच पर नार लगा रहे थे तो उस दौरान उनको हार्ट अटैक आ गया। कुछ ही देर बाद उन्होंने दम तोड़ दिया।

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रेलवे ट्रैक पर 80 वर्षीय महिला किसान ने तोड़ा दम
वहीं दूसरी जिस किसान की मौत हुई वह एक  80 वर्षीय महिला किसान तेज कौर है। मृतका मानसा जिले के बुडलाढा में किसानों के रेल रोको आंदोलन में शामिल हुई थी। अचानक इस दौरान उकी तबीयत खराब हो गई और डॉक्टर के पास पहुंचने से पहले ही उन्होंने दम तोड़ दिया।

भगत सिंह की फांसी पर लिखे गीत सुनते-सुनते मौत
संगरूर जिले के मेघराज की मौत के बाद से हर किसान की आंखों में एक तरफ गुस्सा है तो वहीं दूसरी और आंसू बह रहे हैं। उनका कहना है कि  मेघराज बावा स्वतंत्रता सेनानी परिवार से हैं। वह मंच पर गुरु गोबिंद सिंह पर लिखी कविताएं और भगत सिंह पर लिखी फांसी उते लटक जाना वीर लाडला मेरा..गीत सुनते थे।

80 की उम्र में भी रोज दे रही थीं धरना
मनसा जिले के किसानों ने बताया कि 80 वर्ष की महिला किसान तेज कौर रोज अपने हक के लिए धरने में शामिल होती थी। वह मंच पर जोर-जोर से इंकलाब जिंदाबाद के नारे लगाती थीं। वह अपन बड़ी संख्या में महिलाओं को भी धरना स्थल पर ले जा रही थीं।

सरकारों को ऐसी मौतों से डरना चाहिए
इन दो किसानों की मौत के बाद लोगों का कहना है कि सरकारों को ऐसी मौतों से डरना चाहिए। 16 दिन हो गए न सुनवाई हो रही, न समाधान निकल रहा। किसानों का दर्द ना तो राज्य सरकार सुन रही है और ना ही केंद्र सरकार, आखिर कब तक यह अन्नदाता यूं ही भूखे-प्यासे मरते रहेंगे। 
 

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