पूरा देश आज धनतेरस का त्योहार मना रहा है। जहां लोग नई गाड़ियां और सोना-चांदी के गहने खरीद रहे हैं। इसी बीच राजस्थान में एक ऐसा इकलौता भगवान गणेश का मंदिर है। जहां धोक लगाने के लिए लग्जरी गाड़ियां पहुंचती हैं। वहीं शादीशुदा नए जोड़े भी धनतेरस के दिन पूजा करने के लिए जाते हैं।
जयपुर. राजस्थान का एक ऐसा मंदिर है जहां मान्यता है अगर नई गाड़ी और नई लाड़ी सबसे पहले यहां धोक लगाती हैं तो सब कुछ सही होता है। इसी मान्यता के तहत इस मंदिर में अक्सर नए शादीशुदा जोड़े और नए वाहन पूजा पाठ के लिए जुटते हैं। दिवाली और धरतेरस पर जब हिंदू धर्म में शादियों पर बैन होता है उस समय तो यहां पर नए वाहनों की इतनी कतार लगती है कि सड़क बंद कर दी जाती है। हम बात कर रहे हैं जयपुर के मोती डूंगरी रोड पर स्थित मोती डूंगरी गणेश जी की। डूंगरी इसलिए क्योंकि डूंगर यानि पहाड़ के नजदीक ये स्थित हैं। इस दिवाली करीब सौ करोड़ से भी ज्यादा रुपए के वाहन तीन दिन में यहां आए हैं। तीन दिन में से आज दूसरा दिन है।
तीन योग और बड़े दिवस, तीनों पर बंपर खरीदारी, चार हजार दुपहिया और एक हजार चौपहिया वाहन
इतिहासकारों के अनुसार जयपुर के मोती डूंगरी रोड पर स्थित मोती डूंगरी गणेश जी की प्रतिमा जयपुर नरेश माधो सिंह प्रथम की पटरानी के पीहर मावली से 1761 ईण् में लाई गई थी। मावली में यह प्रतिमा गुजरात से लाई गई थी। उस समय यह पांच सौ वर्ष पुरानी थी। जयपुर के नगर सेठ पल्लीवाल यह मूर्ति लेकर आए थे और इन्होंने ही मंदिर का निर्माण करवाया था। मोती डूंगरी गणपति को जयपुर का आराध्य कहा जाता है। इनके पास करोड़ों रुपयों के जेवर के अलावा चांदी और सोने के बर्तन भी हैं। हर त्योंहार पर विशेष सजावट होती है। इस बार भी मोती डूंगरी गणेश मंदिर में सजावट की गई है। 18 अक्टूबर को साल के आखिरी पुख्य नक्षत्र, उसके बाद आज धतनतेरस और कल छोटी दिवाली पर बन रहे सयोंग पर मंदिर में पांच हजार से ज्यादा नए वाहन आ रहे हैं।
खुद आर्शीवाद देते हैं गणपति
मंदिर पुजारी कमेटी से जुड़े पुजारियों ने बताया कि तीन दिन के दौरान करीब चार हजार दुपहिया और तिपहिया नए वाहनों के अलावा एक हजार करीब चौपहिया वाहन आने को हैं। दो 18 अक्टूबर और आज भारी भीड़ रही है। कल भी बड़ी संख्या में नए वाहनों के साथ लोग आने हैं। पुजारी ने बताया कि भगवान की मूर्ति पर लगाए गए सिंदूर से नए वाहनों की पूजा की जाती है और उसी सिंदूर से स्वास्तिक बनाया जाता है। मान्यता है कि इसके बाद सब कुछ अच्छा होता है। चार हजार वाहनों की कीमत सत्तर हजार रुपए प्रति वाहन के हिसाब से करीब 28 करोड़ रुपए है और एक हजार चारपहिया वाहनों की औसत आठ लाख रुपए प्रति वाहन की कीमत से अस्सी करोड़ रुपए के करीब है।