राजस्थान में पहले करौली और अब जोधपुर में दो समुदायों के बीच हुए तनाव और हिंसा के बाद माहौल बेहद तनावपूर्ण हो गया। एक तरफ मजहब के नाम पर मार काट मची हुई है, वही दूसरी तरफ इसी राजस्थान में एक गांव ऐसा भी है, जहां गंगा-जमुनी तहजीब की अनूठी मिसाल देखने को मिलती है।
सीकर. राजस्थान के सीकर जिले का थोरासी गांव सांप्रदायिक सौहार्द की नायाब नजीर है। जहां एक भी मुस्लिम परिवार नहीं है। फिर भी यहां एक पीर बाबा की मजार है। जिसकी सेवा- पूजा-बंदगी सब हिंदु परिवारों द्वारा की जाती है। यही नहीं पीर बाबा के नाम पर यहां हर साल एक विशाल उर्स का आयोजन भी ग्रामीणों द्वारा किया जाता है। जो जिले का सबसे बड़ा उर्स होता है। जिले के अलावा बाहरी राज्यों के भी लाखों लोग इस उर्स में शिरकत करते हैं।
मजार से जुड़ा खेल, कई खिलाडिय़ों को मिली सरकारी नौकरी
पीर बाबा की मजार के चढ़ावे से ही ग्रामीण गांव का विकास कर रहे हैं। इसके लिए एक कमेटी बना रखी है। जो ग्रामीण विकास के साथ मेले की जिम्मेदारी संभालती है। खास बात ये भी है कि यहां जन सहयोग से ही पीर बाबा के नाम से फुटबॉल व अन्य खेलों के मैदान तैयार कर लिए गए हैं। जहां राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं का आयोजन भी होता है। गांव में खेल का इतना विकास हो चुका है कि यहां हर घर में खिलाड़ी है। खेल कोटे से सैंकड़ों युवा सरकारी नौकरी भी हासिल कर चुके हैं।
500 साल पुरानी है मजार
गांव के पूर्व सरपंच जयप्रकाश ने बताया कि गांव करीब 500 साल पुराना है। तभी से ये मजार यहां स्थित है। शुरू में तो लोग यहां केवल साफ सफाई करते थे। लेकिन धीरे धीरे ये आस्था व ग्रामीणों की एकजुटता का प्रतीक बन गया। करीब 27 साल पहले इसका जीर्णोद्धार कर यहां व्यायामशाला बनाई गई। जिसके बाद स्टेडियम व खेलों के विकास पर बल दिया गया।
हर साल लगता है उर्स, अनिवार्य है उपस्थिति
पीर बाबा की मजार पर हर साल उर्स भी लगता है। जिसमें सभी धर्मों के लोग शामिल होते हैं। उर्स के दौरान फुटबॉल, कबड्डी व कुश्ती सहित अन्य प्रतियोगिता का आयोजन होता है। खास बात ये है कि गांव के प्रवासी लोग भी होली- दिवाली भले ही गांव में ना आए लेकिन इस उर्स में शामिल होने अनिवार्य रूप से पहुंचते हैं। मजार पर ग्रामीणों ने सीसीटीवी कैमरे व एयर कंडिशनर की व्यवस्था भी कर रखी है।