ऐसी इंसानियत अब कहां: खुद अनपढ़..लेकिन स्कूली बच्चों में बांटे 4 करोड़..छात्रों के लिए घर-जमीन सब बेच दिया

राजस्थान में जगत मामा' के नाम से पहचाने वाले पूर्णाराम एक अलग ही महान इंसान थे। 2 दिन पहले ही उनका 90 साल की उम्र में उनका निधन हो गया है। लेकिन उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए जो किया वह शायद कभी देखने को नहीं मिला। वह एक अनपढ़ व्यक्ति होने के बावजूद बच्चों की पढ़ाई के लिए अपनी खुद की 300 बीघा पुश्तैनी जमीन बेचकर 4 करोड़ से ज्यादा रुपए गरीब छात्रों और स्कूलों में बांट दिए।

नागौर (राजस्थान). गरीब बच्चों की पढ़ाई-लिखाई के लिए कई संस्था और बहुत सारे अमीर अलग-अलग तरीके से पैसा दान करते हैं। लेकिन राजस्थान में जगत मामा' के नाम से पहचाने वाले पूर्णाराम एक अलग ही महान इंसान थे। 2 दिन पहले ही उनका 90 साल की उम्र में उनका निधन हो गया है। लेकिन उन्होंने शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए जो किया वह शायद कभी देखने को नहीं मिला। क्योंकि पूर्णाराम कभी स्कूल तक नहीं गए, वह एक अनपढ़ व्यक्ति होने के बावजूद बच्चों की पढ़ाई के लिए अपनी खुद की 300 बीघा पुश्तैनी जमीन बेचकर 4 करोड़ से ज्यादा रुपए गरीब छात्रों और  स्कूलों में बांट दिए।

पूरा प्रदेश 'जगत मामा' नामा से जानता था
दरअसल, पूर्णाराम मूलरुप से नागौर जिले के राजोद गांव के रहने वाले थे। हालांकि पूरे राजस्थान में लोग उनको  'जगत मामा' के नाम से पुकारता था। क्योंकि वह जिस भी जिले में जाते थे वहां के स्कूलों में छात्रों की पढ़ाई के लिए रुपए दान करते थे। लेकिन अब उनके चाहने वाले मायूस हैं। क्योंकि वो अब इस दुनिया में नहीं रहे। सोशल मीडिया पर उनकी इंसानियत वाली कहानी ट्रेंड कर रही है। उनके चहते उन्हें भावुक तरीके से श्रद्धांजलि दे रहे हैं। लोग उनके नाम  'जगत मामा' से स्कूल और कॉलेज का नाम करने की मांग भी कर रहे हैं।

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सीएम गहलोत सहित वसुंधरा राजे ने भी दी  श्रद्धांजलि 
बता दें कि पूर्णाराम के निधन पर राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने भी अपने सोशल मीडिया के माध्यम से उन्हें श्रद्धांजलि दी है। साथ ही प्रदेश के हजारों टीचरों ने भी उन्हें भावुक तरीके से याद किया है। बता दें कि हजारों ऐसे होनहार छात्र हैं जो उनके द्वारा दी गई किताबें और फीस भरकर  ऊंचे ऊंचे पदों पर आसीन होकर रिटायर हो चुके हैं या फिर कई जगह नौकरियां कर रहे हैं।

जिस स्कूल में रात हो जाए, वहीं रुक जाते थे...
जगत मामा के बारे में बताया जाता है कि उनका घर द्वार सब स्कूल ही था। वह 12 महीनों जिले के स्कूलों के दौरे पर रहते थे। उनका जहां भी शाम हो जाती तो वह उसी स्कूल में रात रुक जाया करते थे। वह क्लास टाइम में पहुंचकर ऐसे बच्चों को चयन करते थे जो होशियार हैं। फिर उनको 100 और 200 रुपए ईनाम में देते थे। इतना ही नहीं गरीब बच्चों के लिए तो किताबें, पेन और ड्रेस तक देते थे।

समाज सेवा के लिए नहीं की शादी तक
ग्रामीण बताते हैं कि जगत मामा ने बच्चों के लिए 300 बीघा जमीन भी बेच दी। इतना ही नहीं उन्होंने गरीब बच्चों की पढ़ाई के लिए अपना पूरा जीवन सर्मपण कर दिया था। इसी समाज सेवा के चलते शादी भी नहीं की थी। करोड़पति होने के बाद भी उनकी सादगी उनको सबसे अलग बनाती थी।  सिर पर दुधिया रंग का साफा, खाकी रंग की धोती, खाक में नोटों से भरा थैला हमेशा साथ रहता था। उनके दो भाई थे, दोनों का ही निधन हो गया था। बहन भी अब इस दुनिया में नहीं हैं। ऐसे में वह अपने परिवार के एक मात्र इंसान बचे थे।
 

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