यहां किन्नर भी रखते हैं करवाचौथ व्रत: इनके नाम का मांग में भरते सिंदूर, रात को करते हैं गुप्त-विशेष साधना

करवाचौथ का व्रत हर सुहागिन महिला के लिए बेहद खास होता है। वह अपने पति की लंबी उम्र के लिए इस निर्जला व्रत को करती हैं। लेकिन राजस्थान के कई शहरों में किन्नर भी इस त्योंहार को मनाते हैं और रात को विशेष साधना भी करते हैं।
 

Arvind Raghuwanshi | Published : Oct 13, 2022 7:37 AM IST

जयपुर. करवाचौथ की धूम है देश भर में। दुनिया के अलग अलग देशों में बैठै भारतीय भी इस दिन का बेसब्री से इंतजार करते हैं देश और दुनिया में मनाए जाने वाले इस त्योंहार के बीच आपको बताते है कि क्या किन्नर भी यह त्योंहार मनाते हैं तो इसका जवाब हैं .... हां। जयपुर समेत राजस्थान के कई शहरों में किन्नर इस त्योंहार को मनाते हैं और रात का पूजा पाठ का मुख्य समय बेहद खास होता है। आपको बताते हैं किन्नरों के करवाचौथ से जुड़ी ये अहम बातें....। 

राजस्थान में करीब एक लाख किन्नर
जयपुर समेत प्रदेश भर में किन्नरों के एक बड़े समूह की गुरु पुष्षा माई है। उनके सैंकड़ों की संख्या में शिष्य हैं। उनका कहना है कि किन्नर भी त्योंहार मनाते हैं। जब सब त्योंहार होते हैं तो करवाचौथ क्यों नहीं। उनका कहना है कि रिवाज के अनुसार त्योंहार मनता है । पति के रप में गुरु की ही पूजा की जाती हैं। हमारे समाज में माता पिता, पति, बडा भाई, दोस्त सब कुछ गुरु ही होता है। अच्छी बात ये है कि सब गुरु की बात मानते हैं और इसे पत्थर की लकीर कहते हैं। राजस्थान में करीब एक लाख किन्नर वर्तमान में हैं। 

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सुबह से ही किन्नर करने लगते हैं सोलह श्रृंगार
किन्नर समुदाय में करवाचौथ से पहले की रात बेहद खास होती हैं । रात को सरगी करके सोते हैं और अगले दिन यानि करवाचौथ के दिन सुहाग के श्रृंगार का काम शुरु होता है। नहाना, धोना, सजना, सवंरना, सोलह श्रृंगार... सब कुछ किन्नर करते हैं। पूरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है और उसके बाद दोपहर से लेकर रात तक अपने गुरु के पास जाने का नियम शुरु होता हैं। कहीं भी हों दोपहर से शाम तक गुरु के पास पहुंचते हैं और उनको उपहार देकर आर्शीवाद लेते हैं। बदले में गुरु भी उपहार देते हैं। 

सब कुछ सुहागिनों की तरह करते हैं किन्नर
रात को सुहागिनों की तरह करवाचौथ का व्रत खोला जाता है चंद्रमा की पूजा करने के बाद। उसके बाद पति की जगह गुरु के दर्शन करने होते है और फिर भोजन के बाद इस व्रत का समापन होता है। अधिकतर किन्नर अपने गुरु के मान सम्मान और उनकी लंबी उम्र के लिए इस तरह का व्रत रखते हैं। यह परंपरा वर्षों से चली आ रही है।

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