
जयपुर (राजस्थान). जयपुर में रहने वाले एक नामी सेठ को वंश चलाने के लिए संतान चाहिए थी, डॉक्टर्स इलाज करते करते थक गए लेकिन संतान नहीं हुई...। उसके बाद एक संत ने सेठ को चम्तकारी मंदिर में मन्नत मांगने की बात कही। सेठ ने मन्नत मांगी तो उन्हें पुत्र रत्न की प्राप्ती हुई। उसके बाद जब ये चर्चा लोगों के बीच फैली तो मंदिर में भीढ़ बढ़ने लगी लोग अपनी अपनी मन्नतें लेकर मंदिर पहुंचने लगे और वहां उनकी मन्नते पूरी होने लगी। कई सालों से चल रहा यह सिलसिला इतना बढ़ गया कि इस साल पांच लाख से भी ज्यादा लोग अपनी मन्नतें लेकर इस मंदिर में पहुंच रहे हैं। हम बात कर रहे हैं जयपुर के डिग्गी कल्याण जी मंदिर की....। मंदिर के लिए आज से पदयात्रा शुरु हो गई हैं पांच दिन में 90 किलोमीटर की दूरी तय कर यह पदयात्रा रविवार को मंदिर पहुंचेगी।
इस ध्वज और पद यात्रा के पीछे सच्ची कहानी
वैसे तो डिग्गी कल्याण जी मंदिर में प्रदेश भर से लाखों लोग आते हैं और मन्नत स्वरूप हजारों ध्वज मंदिर में चढ़ाए जाते हैं । लेकिन सबसे पहला झंडा जयपुर के रामेश्वर दास लेाहे वाला के परिवार से चढता है। दरअसल इस ध्वज और पद यात्रा के पीछे सच्ची कहानी है जो कम ही लोग जानते हैं। जयपुर के एक नामी सेठ रामेश्वर दास लोहे वाला के परिवार की यह कहानी हैं।
57 साल से लगातार निकल रही ये पदयात्रा...कोरोना काल में भी नहीं हुई बंद
जयपुर के चौड़ा रास्ता में पीढ़ियों से लोहे का कारोबार करने वाले रामेश्वर दास के कोई संतान नहीं थी। ऐसे में उन्होनें अपनी बहन से उनका बेटा गोद लिया। जिनका नाम प्रहलाद था। प्रहलाद दास के भी लाख जतन करने के बाद भी सात साल तक संतान नहीं हुई। ऐसे में उन्हें दुकान पर आए एक संत ने कहा कि वे डिग्गी कल्याण धणी से संतान मांगे। सेठ प्रहलाद दाा से ऐसा ही किया। वे करीब 58 साल पहले ध्वज लेकर डिग्गी कल्याण मंदिर गए वहां जाकर मन्नत मांगी। उन्हें अगले ही साल पुत्र रत्न की प्राप्ती हुई। उसके बाद हर साल उन्होनें ये यात्रा निकालना शुरु कर दिया। उनके बेटे का नाम श्री जी रखा गया। अब 57 साल से लगातार श्रीजी ये पदयात्रा निकाला रहे हैं। पहले अपने पिता के साथ और अब अपने बेटे के साथ। कोरोना काल में भी ये सिलसिला जारी रहा था। कोरोना में पदयात्राएं बंद थी। ऐसे में श्रीजी और परिवार के चुनिंदा लोगों ने ही ये यात्रा निकाली थी।
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