किरोड़ी सिंह बैंसला का निधन : सेना का एक सिपाही जो बाद में कर्नल बना, गुर्जर आरक्षण आंदोलन के अगुवा रहे

कर्नल बैसला लंबे समय से बीमारियों से जूझ रहे थे। पिछले साल कोरोना भी हो गया था।बैंसला को पहले भी हार्ट की बीमारी थी, उन्हें चलने में भी परेशानी होती थी। बैंसला के तीन बेटे और एक बेटी है। सबसे बड़े बेटे दौलत सिंह बैंसला कर्नल पद से रिटायर हैं।

जयपुर : गुर्जर आरक्षण आंदोलन (Gujjar Reservation Movement) के अगुवा रहे कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला (Kirori Singh Bainsla) का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया है। जयपुर के मणिपाल अस्पताल में निधन गुरुवार सुबह 6 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। वे 83 साल के थे। कर्नल बैंसला लंबे समय से बीमार चल रहे थे। तबीयत ज्यादा बिगड़ने पर उन्हें गुरुवार सुबह अस्पताल ले जाया गया, जहां इलाज के दौरान उनका निधन हो गया। बैंसला राजस्थान में गुर्जर आंदोलन का बड़ा चेहरा थे। बाद में उन्होंने बीजेपी (BJP) की सदस्यता ले ली थी।

शुक्रवार को होगा अंतिम संस्कार
कर्नल बैंसला के निधन की खबर सुनते ही समर्थक मायूस हो गए हैं। उनका अंतिम संस्कार शुक्रवार को उनके पैतृक गांव हिंडौन के पास मुड़िया में किया जाएगा। अभी उनका पार्थिव शरीर अंतिम दर्शन के लिए वैशाली नगर उनके घर पर रखा गया है। अंतिम दर्शन के लिए बड़ी संख्या में लोग पहुंच रहे हैं। कई बड़े नेता उनके निधन पर शोक जता रहे हैं।

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किरोड़ी सिंह बैंसला..एक सिपाही जो कर्नल बना
कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला का जन्म राजस्थान के करौली जिले के मुंडिया गांव में हुआ था। उन्होंने शिक्षक के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की थी। पिता के फौज में थे तो बेटे का भी रुझान उसी तरफ हो गया। उन्होंने सेना में जाने का मन बनाया और सिपाही के रुप में भर्ती हो गए। बैंसला सेना की राजपूताना राइफल्स में भर्ती हुए थे और सेना में रहते हुए 1962 के भारत-चीन और 1965 के भारत-पाकिस्तान युद्ध में बहादुरी से लड़ाई लड़ी। वे पाकिस्तान में युद्धबंदी भी रहे। सेना में उनके साथी उन्हें 'जिब्राल्टर का चट्टान' और 'इंडियन रेम्बो' कह कर बुलाते थे। अपने बहादुरी के दम पर ही किरोरी बैंसला ने सिपाही से कर्नल तक रैंक का सफर तय किया। 

गुर्जर आरक्षण आंदोलन के अगुवा रहे
कर्नल किरोड़ी सिंह बैंसला ने 2004 से गुर्जर समुदाय को अलग से आरक्षण देने की मांग करते हुए आरक्षण आंदोलन की अगुवाई की। उन्होंने रेलवे पटरी पर बैठकर आंदोलन कर खुद इस आंदोलन का सबसे बड़ा चेहरा बन गए। लंबे चले आरक्षण आंदोलन के बाद गुर्जर सहित पांच जातियों को ओबीसी के साथ पहले स्पेशल बैक वर्ड क्लास और फिर मोस्ट बैक वर्ड क्लास(एमबीसी) में अलग से आरक्षण मिला। आंदोलन को लेकर उन पर कई आरोप भी लगे। उनके आंदोलन में अब तक 70 से अधिक लोगों की मौत की भी बात कही जाती है। 

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