
बाड़मेर (राजस्थान). हर कोई अपनी पुश्तैंनी चीजों और सालों पुराने एंटिक सामान को संभाल रखता है। तो वहीं कुछ लोग इसे कबाड़ समझ फेंक तक देते हैं। लेकिन राजस्थान के बाड़मेर से एक अलग ही मामला सामने आया है। जहां एक परिवार ने अपने दादा की करीब 50 साल पुरानी झोपड़ी को सुरक्षित रखने के लिए हाइड्रा क्रेन की मदद से एक जगह से हटाकर दूसरी जगह पर शिफ्ट किया है। इतना ही नहीं इसे बचाए रखने के लिए पोतों ने करीब एक लाख रुपए तक खर्च दिए।
मरम्मत के बाद 100 साल तक इसका कुछ नहीं होगा
दरअसल, यह अनोखा मामला बाड़मेर जिले के सिणधरी उपखंड के करडाली नाडी गांव का है। जहां गांव के ही एक व्यक्ति ने एक ढाणी यानी झोपड़ीं बनाई थी। बजु्र्ग होने पर उस व्यक्ति की तो मौत हो गई, लेकिन उसके परिवार के लिए इस मकान को 100 साल तक सुरक्षित रखना चाहते हैं। क्योंकि सालों से एक जगह पर रखी होने की वजह से उसकी नींव कमजोर हो गई है। इसलिए उसकी नींव और छत की मरम्मत के लिए हाजारों रुपए खर्च कर हाइड्रा क्रेन से शिफ्ट किया है। इस दौरान क्रेन में 6 हजार रुपए का लगे हैं, जबकि उसे ठीक करने में करीब एक लाख रुपए खर्च होने का अनुमान है।
ग्रामीणों ने बताया क्यों खास है यह झोपड़ी
गांव के ही एक व्यक्ति पुरखाराम ने बताया कि अगर समय समय पर इसकी मरम्मत होती रहे तो यह सालों साल चलेगी। उन्होंने बताया कि दीमक की वजह से झोपड़ी की नींव कमजोर पड़ गई थी, जिसकी वजह से इसे शिफ्ट करना पड़ा है। मरम्मत के बाद यह एकदम नई हो जाएगी। यह झोपड़ी इस परिवार की नहीं पूरे गांव की यादगार चीज है। जिसे हम खोना नहीं चाहते हैं। गांव ही नहीं आसपास के कई गांव के लोग इसे देखने के लिए आते हैं।
45 डिग्री पार तापमान के बाद भी इसमें नहीं लगती गर्मी
युवक ने बताया कि यह झोपड़ी इसलिए और भी खास है कि इसमें गर्मी के दिनों में लोगों को एयरकंडीशन की जरूरत तक नहीं पड़ती है। जबकि गर्मी के मौसम में तो रेगिस्तान में तापमान 45 डिग्री पार कर जाता है, फिर भी इसके अंदर ठंड़क बनी रहती है। ऐसी तो ठीक है इसमें पंखे-कूलर की नहीं लगाने पड़ते हैं।
ऐसे तैयार की जाती है ये खास झोपड़ी...
परिजनों ने बताया कि आधुनिक युग में लोग करोड़ों रुपए खर्च कर महल तैयार करते हैं, ऐसी झोपड़ियां कही भी देखने को नहीं मिलती हैं। अगर कहीं होती भी हैं तो खुद परिवार के लोग उसे मिटा देते हैं। क्योंकि उनको यह कबड़ा जो लगता है। आज के समय में यह झोपड़ी लोगों को तो बनानी तक नहीं आती है। क्योंकि यह जमीन से मिट्टी खोदकर, पशुओं के गोबर को मिक्स करके इसकी दीवारें बनाई जाती हैं।
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