दो साल पहले शहीद हुए सीआरपीएफ जवान दीपचंद वर्मा, अब वीरांगना को मिला मरणोपरांत वीरता पुरस्कार, हुई आंखें नम

आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए सीआरपीएफ जवान दीपचंद वर्मा की वीरांगना को दो साल बाद मिला मरणोपरांत वीरता पुरस्कार। उन्होने नम आंखों से कहा- गर्व का पल

सीकर. जम्मू कश्मीर के बारामुला जिले में 1 जुलाई 2020 को आतंकियों से लोहा लेते हुए शहीद हुए राजस्थान के सीकर जिले के बावड़ी गांव निवासी सीआरपीएफ जवान दीपचंद वर्मा को उनकी बहादुरी के लिए मरणोपरांत वीरता पुरस्कार से नवाजा गया है। डीजी कुलदीप सिंह ने सीआरपीएफ के शौर्य ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट में आयोजित कार्यक्रम में दीपचन्द की वीरांगना सरोज देवी को ये सम्मान दिया। जिसे पाकर वीरांगना एकबारगी भावुक हो गई। नम आंखों व भरे गले से उन्होंने इसे गर्व का पल बताया। यह कार्यक्रम 20 मई को शौर्य ट्रेनिंग इंस्टिट्यूट आयोजित किया गया जिसमें उन सभी वीरों को सम्मानित किया गया जिन्होने देश की सेवा में अपना साहसिक योगदान दिया।

सोपोरे में पेट्रोलिंग के दौरान आतंकियों ने किया था हमला

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शहीद दीपचंद वर्मा की 1 जुलाई 2020 को जम्मू कश्मीर के बारामुला जिले के सोपोर इलाके में पेट्रोलिंग के दौरान आतंकियों से मुठभेड़ हो गई थी। घात लगाकर बैठे आतंकियों ने उनके पेट्रोलिंग दल पर हमला कर दिया था। जिसमें दीपचंद ने बहादुरी से मुकाबला करते हुए आतंकियों को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था। लेकिन, इस युद्ध में वे गंभीर रूप से घायल हो गए। जिन्हें  आर्मी अस्पताल ले जाने पर उन्होंने उपचार के दौरान दम तोड़ दिया था।

सात भाई- बहनों में थे एक, 22 की उम्र में ज्वाइन की आर्मी

शहीद दीपचंद वर्मा सात भाई- बहनों में एक थे। जिनके पिता नाथूराम वर्मा और माता प्रभाती देवी ने सभी को मजदूरी करके पाला व पढ़ाया। इनमें सबसे पहले दीपचंद की ही नौकरी लगी। शहीद दीपचंद ने 22 साल की उम्र में सीआरपीएफ ज्वाइन की थी। 10 नवंबर 1981 में जन्म के बाद बचपन से ही वे देश सेवा का जज्बा पाल रहे थे। तैयारी कर उन्होंने 2003 में केंद्रीय रिजर्व पुलिस बल की 179 बटालियन में कांस्टेबल पद पर नियुक्ति हासिल कर ली। इसके बाद अजमेर व जम्मू कश्मीर सहित कई आर्मी पोस्ट पर उनकी पोस्टिंग हुई। शहादत से छह महीने पहले ही उनका प्रमोशन हुआ था। उनका एक भाई सुनील बिजली विभाग में कार्यरत है।

तीन बच्चों के पिता

शहीद दीपचंद वर्मा के तीन बच्चे हैं। सीआरपीएफ में भर्ती के एक साल बाद हुए विवाह के बाद उनके घर दो जुड़वा बेटे व एक बेटी ने जन्म लिया। जो अब वीरांगना सरोज के साथ अजमेर स्थित सेना के क्वार्टर में रहते हैं। वहीं, केंद्रीय विद्यालय में उनकी पढ़ाई चल रही है। पिता की पहले ही मौत होने के कारण घर में विधवा बुजुर्ग मां भी है। 

शहादत के दो साल बाद मिला पुरस्कार
भारत सरकार द्वारा घोषणा होने के बाद अजमेर में डीआईजी ने उनकी पत्नी सरोज को पुरस्कार देने का लेटर सौंप दिया था। जिसके बाद दिल्ली में आयोजित कार्यक्रम में सरोज देवी को यह पुरस्कार सौंपा गया। सरकार द्वारा सहायता राशि व उनकी पेंशन शहीद दीपचंद की शहादत के 6 महीने बाद ही शुरू कर दी गई थी और अब यह पुरस्कार से भी नवाजा गया है।

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