कारगिल जंग के हीरो: 6 गोलियां लगने के बाद भी नहीं रूके थे दिगेन्द्र सिंह, तबाह कर दिए थे 18 पाकिस्तानी बंकर

कारगिल के युद्ध में राजस्थान के कई सैनिकों ने अपने प्राणो की आहुति देते हुए देश की रक्षा की थी। दिगेंन्द्र सिंह गंभीर रूप से घायल होने के बाद भी पीछे नहीं हटे थे। उनकी बहादुरी के लिए उन्हें महावीर चक्र प्रदान किया गया है। 

सीकर. कारगिल युद्ध में देश की रक्षा के लिए शहीद हुए भारत के बहादुर सैनिकों को शहादत हम सभी को याद है। इस लड़ाई में हमारी सेना के कई जवान ऐसे भी थे जिन्होंने अपनी जान की परवाह किए बगैर लगातार लड़ाई की। गोलियों से बुरी तरह से जख्मी हुए। लेकिन उसके बाद भी उनके मन में सपना केवल देश सेवा और दुश्मनों को देश से निकालना था। इसी लक्ष्य को लेकर वह लगातार डटे रहे और खुद भी सीने पर गोलियां खाने के बाद भी दुश्मनों को देश से बाहर निकाला और तिरंगा फहराया और सुरक्षित बचे। कारगिल विजय दिवस के मौके पर हम आपको एक ऐसे ही बहादुर सिपाही की कहानी बता रहे हैं। जो राजस्थान के सीकर जिले के रहने वाले हैं। नाम है दिगेंन्द्र सिंह।

सीकर जिले के नीमकाथाना के दयाल की नांगल के रहने वाले दिगेंद्र सिंह ने अपना नाम कारगिल की लड़ाई में स्वर्णिम अक्षरों में लिखा हुआ है। कारगिल की लड़ाई में ट्रोलोलिंक पर दुश्मनों से लड़ाई के दौरान पाकिस्तानी सेना के द्वारा की गई जवाबी हमले में दिगेंद्र को 6 गोलिंयां लगी थीं। एक गोली तो उनके सीने को पार कर गई थी। लेकिन इसके बाद भी वह पीछे नहीं हटे और अपनी बंदूक से लगातार पाकिस्तानियों के सीने पर धड़ाधड़ फायर करते रहे। इतना ही नहीं दिगेंद्र सिंह ने पाकिस्तानियों के अट्ठारह बंकर भी तबाह किए थे। 

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आज भी एक युवा जैसा जोश
कारगिल की लड़ाई में अपने अदम्य साहस के लिए परमवीर चक्र पाने वाले दिगेंद्र सिंह का हौसला आज भी वैसा का वैसा ही है। आज भी उनमें उतना ही जोश है। कारगिल दिवस के मौके पर वह इसका जश्न हर बार वह अपने साथियों के साथ मनाते हैं। कारगिल की लड़ाई में ट्रोलोलिंक पर तीन बार भारतीय सेना के अटैक विफल हो चुके थे। तो सेना के अधिकारी ने जवानों से पूछा कि पाकिस्तानी सेना के कब्जे से इस चोटी को कौन छुड़ाएगा तो दिगेंद्र सिंह ने पूरे जोश से साथ कहामैं इस काम को करूंगा।

राजस्थान राइफल्स के थे सैनिक
3 जुलाई 1969 को राजस्थान को जन्में दिगेंद्र 1985 में राजस्थान राइफल्स 2 में भर्ती हुए। कारगिल युद्ध में तोलोलिंग पर कब्जा करने की जिम्मेदारी उनकी यूनिट को मिली थी। उन्होंने घायल होने के बाद भी पाकिस्तान सेना पर जमकर हमला बोला था।

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