अक्सर देखा जाता है कि जरा-जरा सी जमीन के चलते सगे भाइयों में खूनी संघर्ष हो जाता है। लेकिन राजस्थान के सीकर से दो किसान भाइयों ने एक अनोखी मिसाल पेश की है। दोनों ने सरकारी अस्पताल के लिए 70 लाख रुपए की जमीन दान की है।
सीकर. शेखावाटी शिक्षा के साथ सेठ, साहुकारों, शूरवीरों व दानवीरों की धरती कही जाती है। जहां के उद्योगपतियों ने देश- दुनिया को बड़े उद्योगों के साथ रोजगार दिया तो यहां के किसान व मजदूर वर्ग ने भी जरूरत पडऩे पर अपनी जमीन व जान तक देने में कभी संकोच नहीं किया। ऐसा ही ताजा मामला सीकर जिले के खंडेला कस्बे के नीमेड़ा गांव से सामने आया है। जहां सरकार को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र के लिए जमीन नहीं मिली तो दो किसान भाइयों ने मिलकर अपने खेत की पांच बीघा जमीन अस्पताल के नाम कर दी। खास बात ये है कि किसान सांवरमल व सीताराम गढ़वाल ने जमीन भी मुख्य मार्ग पर स्थित दान की है। जिसकी कीमत करीब 70 लाख रुपए है।
2013 में मिली थी अस्पताल को स्वीकृति
खंडेला के नीमेड़ा गांव में चिकित्सीय सुविधा का अभाव ग्रामीणों के लिए बड़ी परेशानी का सबब था। ऐसे में ग्रामीणों की लंबी मांग के बाद सरकार ने 2013 में गांव में प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र को मंजूरी दी। लेकिन, इसके बाद अस्पताल के लिए जमीन नई परेशानी बन गई। हालांकि गांव से डेढ़ किमी दूर जोहड़ी में सिवायचक जमीन भूमी का आवंटन हुआ, लेकिन दूरी की वजह से उसका विरोध शुरू हो गया। पूरे गांव में भी तलाशने पर जब जमीन की समस्या हल नहीं हुई तो ग्रामीणों ने सांवरमल व उसके छोटे भाई सीताराम से बात की। जिस पर दोनों भाइयों ने गांव की भलाई को ध्यान में रखते हुए ये जमीन अस्पताल के नाम कर दी।
2.25 करोड़ से बनेगा भवन, 10 गांवों को मिलेगा फायदा
नीमेड़ा में जमीन मिलने पर अब स्वास्थ्य विभाग 2.25 करोड़ की लागत से उस पर भवन निर्माण करेगा। जिसका भूमि पूजन रविवार को विधायक महादेव सिंह खंडेला के मुख्य अतिथ्य में किया गया है। विभाग के अधिकारियों के अनुसार जल्द ही भवन निर्माण के साथ अस्पताल शुरू हो जाएगा। जिसके बाद आसपास के करीब दस गांवों के मरीजों को इससे फायदा होगा।
परिवार में दान की पुरानी परंपरा
सांवरमल का परिवार इससे पहले भी जनहित में भूमि दान कर चुका है। बकौल सांवरमल उनके पिता भोलूराम, पूर्व सरपंच ताऊ हरदेवाराम गढ़वाल व सुरेंद्र गढ़वाल ने सलेदीपुरा गांव में एक अनुसुचित जाति क परिवार को आवास के लिए पांच व एक अन्य परिवार को तीन बीघा जमीन दी थी। जिसकी गंाव में आज भी दुहाई दी जाती है।