ट्रक ड्राइवर का बेटा बना IAS अफसर, दादी के एक मूलमंत्र ने दिलाई UPSC में सफलता...स्कूल फीस के भी नहीं थे पैसे

देश की सबसे बड़ी परीक्षा संघ लोक सेवा आयोग (UPSC 2021) का रिजल्ट सोमवार को जारी कर दिया गया। एक बार फिर राजस्थान के छोरे ने कर दिखाया कि अगर हौसले बुलंद हो और मेहनत की जाए तो कुछ भी संभव हो सकता है। क्योंकि ट्रक ड्राइवर का बेटा अब आईएएस अधिकारी बन गया है। 

Asianet News Hindi | Published : May 31, 2022 12:36 PM IST / Updated: May 31 2022, 06:17 PM IST

जयपुर (राजस्थान). कहते हैं कि कुछ करने का जज्बा और मन में विश्वास हो तो आप कठिन से कठिन परिस्थिति में भी सफलता के शिखर तक पहुच ही जाते हैं। कुछ ऐसा राजस्थान के एक ट्रक ड्राइवर के बेटे ने असंभव को संभव कर दिखाया है, जिसने कड़ी मेहनत करके देश की सबसे बड़ी परीक्षा यूपीएससी पास कर ली है। यानि ट्रक ड्राइवर का बेटा अब आईएएस अधिकारी बन गया है। देशभर में 551वीं रैंक में चयन हुआ है। बता दें कि संघ लोक सेवा आयोग ने सिविल सेवा परीक्षा 2021 का फाइनल रिजल्ट सोमवार को जारी कर दिया है।

 पिता ट्रक ड्राइवर से पहले मिट्टी के बर्तन बनाते थे
दरअसल, कामयाबी के झंडे गाड़ने वाला यह होनहार स्टूडेंट पवन कुमार कुमावत हैं। जिनका देशभर में 551वीं रैंक में चयन हुआ है। पवन मूल रूप से नागौर जिले के सोमणा के रहने वाले हैं। उनके पिता रामेश्वरलाल ने ट्रक की ड्राइवरिंग करके अपने बेटे को पढ़ाया-लिखाया है। पवन की शुरुआत शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल में हुई थी। पिता ट्रक ड्राइवर से पहले गांव में ही मिट्टी के बर्तन बनाने का काम करते थे। उन्होंने अपने बेटे को पढ़ाने के लिए गांव छोड़ दिया और नागौर में आकर रहने लगे। जब कोई काम नहीं मिला तो वह ड्राइविंग करने लगे। यहीं से पवन ने अपनी आग की पढ़ाई पूरी की। हालांकि आगे की पढ़ाई के लिए वह राजधानी जयपुर भी गए थे।

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दादी के एक मूलमंत्र ने दिला दी सफलता
पवन ने बताया कि मैं बहुत ही  भाग्यशाली हूं कि मुझे ऐसे माता-पिता मिले। जिन्होंने मेरे करियर को बनाने के लिए दिन रात एक कर दिया। उन्होंने ही मेरी कामयाबी का सपना देखा था। जिसे अब मैंने पूरा कर दिया है। घर पर लाइट का कनेक्शन नहीं था। कभी पड़ोस से कनेक्शन लेते थे। कभी लालटेन या चिमनी से पढ़ते थे। मेरे परिवार के सपोर्ट से मैंने मेरी पढ़ाई को प्रायोरिटी दी थी। दादी कहती थी कि भगवान के घर में देर होती है अंधेरे नहीं होती है। आप कर्म करों और फल की चिंता नहीं करो। मैंने इसी को मूलमंत्र बनाकर निरंतर प्रयास जारी रखा।

झोपड़ी में रहता था परिवार, जहां नहीं रहती थी लाइट तक
पवन ने बताया कि जब हम गांव से नागौर आए थे तो उस वक्त पिता को चार हजार सैलरी मिलती थी। जिसमें मेरी पढ़ाई और घर का खर्चा चलता था। लेकिन मैंने कभी पिता को इस बात के लिए टेंशन में नहीं देखा कि वह मुझे कैसे पढाएंगे। वह कहते थे कि तुम मन लगाकर पढ़ो, जो चाहिए वो मिल जाएगा। हमारी चिंता मत करना। हम एक झोंपड़ी में रहते थे, जहां कभी लाइट रहती तो कभी नहीं रहती थी।  घर पर लाइट का कनेक्शन नहीं था। कभी पड़ोस से कनेक्शन लेते थे। कभी लालटेन या चिमनी से पढ़ते थे। पवन ने बताया कि पिता जी आठवीं तक पढ़ें हैं, लेकिन मुझे पढ़ाने में कोई कसर नहीं छोड़ी।

अखबार की एक हेडालइन देख आईएएस बनने का ठाना
बता दें कि पवन की इस सफलता के पीछे उनका आत्मविश्वास और संकल्प है। उन्होंने बताया कि बात साल 2006 में एक रिक्शा चालक का बेटा गोविंद जैसवाल आईएएस अधिकारी बने थे। अखबार में उनकी खबर आई थी, मैंने तभी उनकी हेडलाइन देखी और ठान लिया था कि अब मैं भी आईएएस बनूंगा। उनके बताए मंत्रों पर चला और पूरी लगन-मेहनत से तैयारी की, जिसका परिणाम सुखद रहा। पवन ने कहा कि  ऐसा भी कई बार हुआ कि पढ़ाई लिखाई के लिए पिता जी को कर्ज भी लेना पड़ा था। कोचिंग के लिए भी कर्जा लिया था। कई बार तो ऐसा वक्त आया कि स्कूल की फीस भरने के लिए भी पैसे नहीं होते थे।

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