24 साल के लड़के ने बेबी सिटर बनकर 16 बच्चियों के शरीर से खेला, मासूम के प्राइवेट पार्ट संग की दरिंदगी

दुनिया भर में बच्चियों की  सुरक्षा चिंता का विषय है। वो अपने घर में भी सेफ नहीं होती हैं। ऑस्ट्रेलिया से बच्चियों के साथ यौन शोषण की जो खबर सामने आई है वो दहलाने वाली है। इसके साथ ही माता-पिता को अपनी बच्चियों को लेकर अतिरिक्त सुरक्षा बरतने की जरूरत है।

रिलेशनशिप डेस्क. एक दो नहीं बल्कि 16 लड़कियां जिनकी उम्र 8-9 साल के बीच थी उनको वो दर्द हैवान ने दिया जिसकी टीस वो जीवन भर महसूस करेंगी। हालांकि उस शैतान को उसके किए की सजा मिल गई है। ऑस्ट्रेलियाई कोर्ट ने उसे 18 साल की सजा सुनाई है। चलिए दिल को दहलाने वाली और माता-पिता को सतर्क करने वाली पूरी कहानी बताते हैं।

24 साल के जेरेथ हैरीस-मार्खम(Jareth Harries-Markham) ने साल 2020 में सोशल मीडिया पर बेबी सीटर के रूप में काम का विज्ञापन दिया था। जिसके बाद उसे अलग-अलग जगहों पर बेबी को संभालने का काम मिला। जब तक उसका काला चेहरा सामने नहीं आया तब तक वो मासूम बच्चियों को अपना शिकार बनाता रहा। उसने जुलाई 2020 से अगस्त 2021 तक एक नवजात बच्ची समेत 16 लड़कियों का यौन शोषण किया था।

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बच्चियों के साथ रेप का बनाता था वीडियो

इतना ही नहीं उसने बच्चियों के साथ हरकत करते हुए वीडियोज और फोटोज भी बनाया। एक बच्ची के प्राइवेट पार्ट में तो उसने एक वस्तु को डाल दिया था। इसके साथ वो बच्चियों के साथ मारपीट करता था और उनका रेप करता था। जब उनके माता-पिता को ये बात पता चली तो उन्होंने कोर्ट का रूख किया।

सोते हुए बच्चियों को बनाया था अपना शिकार

पीड़ितों की उम्र 8 महीने से 9 साल के बीच थी और 12 परिवारों में से कुछ सजा के लिए अदालत में गए थे।अदालत को बताया गया कि कुछ परिवारों ने हैरिस-मार्खम को लिव-इन के आधार पर काम पर रखा था, कुछ अपराध बच्चों के सोते समय हो रहे थे। अन्य पीड़ित उन बच्चों के दोस्त थे जिनके साथ खेलने आने के दौरान दुर्व्यवहार किया गया था।

कोर्ट ने 18 साल की सजा सुनाई

कोर्ट ने तमाम गवाहों और सबूतों को देखते हुए आरोपी को दोषी पाया। मंगलवार (27 सितंबर) को पश्चिम ऑस्ट्रेलियाई सुप्रीम कोर्ट में उसे 18 साल की सजा सुनाई। वहीं हैरिस-मार्खम ने एक मनोचिकित्सक को बताया कि जो कुछ हुआ उसे कुछ याद नहीं हैं। वह नहीं जानता कि उसने ऐसा क्यों किया।

इस तरह की घटना ना सिर्फ बच्चों को दर्द देकर जाता है, बल्कि उनके माता-पिता भी खुद को दोषी मानते हैं। उन्हें लगता है कि उन्होंने एक ऐसे इंसान पर भरोसा कैसे कर लिया और बच्चे को सौंप दिया। इतना ही नहीं वो अपने बच्चों को लेकर अधिक प्रोटेक्टिव हो जाते हैं। बच्चों को कम स्वतंत्रता देते हैं। उनमें अनिश्चितता हमेशा बनी रहती है जो काफी पीड़ा देती है। 

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