हिंदुओं की तुलना में मुसलमानों में बाल विवाह और प्रेग्नेंसी 30 प्रतिशत ज्यादा, पढ़ें हैरान करने वाली खबर

कभी हिजाब विवाद, तो कभी ट्रिपल तलाक अब बाल विवाह पर बहस छिड़ गई है। ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के तहत यहां 15 साल की उम्र में मुस्लिम लड़की निकाह के योग्य हो जाती है। जिसकी वजह से यहां की बच्चियों की स्थिति हिंदू लड़कियों की तुलना में काफी बदतर है।

Nitu Kumari | Published : Oct 20, 2022 5:54 AM IST

रिलेशनशिप डेस्क. मुस्लिम महिलाओं की स्थिति हिंदू महिलाओं की तुलना में ज्यादा खराब है इससे कोई इंकार नहीं कर सकता है। पढ़ाई से लेकर शादी तक में इनकी मर्जी नहीं जानी जाती है, बस कर दी जाती है कुछ एक अपवाद को छोड़ दें तो। यहीं वजह है कि इस समुदाय में बाल विवाह और किशोरावस्था में गर्भवती (Child marriages and teenage pregnancies ) होना हिंदुओं की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा है। हाल ही में बाल विवाह को लेकर एक मामला पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में पहुंचा था। जिसमें कोर्ट ने ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ का हवाल देकर इस शादी के लिए सुरक्षा दी थी। लेकिन अब सुप्रीम कोर्ट इस मामले में हस्तक्षेप करने को तैयार हो गया है। मुस्लिम लड़कियों के निकाह की उम्र को लेकर देश की सर्वोच्च अदालत में  9 नवंबर 2022 को बहस होगी।

क्या है पूरा मामला

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दरअसल, जून 2022 में  16 साल की नाबालिग मुस्लिम लड़की और 21 साल के मुस्लिम लड़के ने परिवार के खिलाफ निकाह कर ली थी। वो फैमिली की सुरक्षा की मांग को लेकर  पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट में पहुंचे। उन्होंने याचिका में कहा कि  उनके परिवार इस शादी के खिलाफ हैं ऐसे में उन्हें सुरक्षा दी जाए।सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने कहा, ‘कानून के मुताबिक मुस्लिम लड़कियों की शादी ‘मुस्लिम पर्सनल लॉ’ के तहत होती है। ऐसे में 15 साल की उम्र में मुस्लिम लड़की निकाह के योग्य हो जाती है।’ जस्टिस जे एस बेटी की सिंगल बेच ने इस पर फैसला सुनाते हुए सुरक्षा दी थी।

9 नवंबर को सुप्रीम कोर्ट में होगी सुनवाई

लेकिन यह बात राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग (एनसीपीसीआर) को रास नहीं आई।पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट के इस फैसले को उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी।17 अक्टूबर यानी सोमवार के दिन सुप्रीम कोर्ट के जज एस के कौल और अभय एस ओका की दो सदस्यीय पीठ ने इस मामले में नोटिस जारी किया। जिस पर सुनवाई 9 नवंबर को होगी।NCPCR ने कहा कि यह POCSO अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करता है, और नाबालिगों के यौन उत्पीड़न के बराबर है।

34 नाबालिग की हर दिन अपरहण करके की जाती है शादी

हर किसी की नजर अब सुप्रीम कोर्ट की तरफ टिकी है। लोगों का मानना है कि सुप्रीम कोर्ट का निर्णय समान नागरिक संहिता की दिशा में एक कदम होगा। कम उम्र में विवाह को कतई जायज करार नहीं दिया जाता है। भारत में तमाम कानून के बाद भी बाल विवाह नहीं रुक रहा है। हिंदू हो या फिर मुस्लिम दोनों ही जगह ये मौजूद है। हालांकि मुस्लिमों में यह प्रतिशत ज्यादा है।  राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-V (NFHS 2019-21) के अनुसार, 20-24 आयु वर्ग की 23.3 प्रतिशत महिलाओं की शादी 18 वर्ष की होने से पहले ही कर दी गई। साथ ही  NCRB-2021 की रिपोर्ट के अनुसार, कम से कम 34 नाबालिग लड़कियों की हर दिन अपहरण करके शादी कर दी जाती है।

मुस्लिम में प्रेग्नेंसी दर 30 प्रतिशत ज्यादा

एनएफएचएस के आंकड़े बताते हैं कि भारत में 15 से 19 साल की उम्र में 7 प्रतिशत महिलाएं प्रेग्नेंट हो रही हैं। मुसलमानों में यह अनुपात 8.4 प्रतिशत है जो बाकि समुदाय से ज्यादा है। ईसाइयों में यह 6.8 प्रतिशत और हिंदुओं के लिए 6.5 प्रतिशत है। जिसका अर्थ है कि मुसलमानों में किशोर गर्भधारण हिंदुओं की तुलना में 30 प्रतिशत अधिक है। आंकड़े यह भी बताते हैं कि मुसलमानों में गर्भ निरोधकों का प्रयोग काफी कम है।

हिंदुओं में बाल विवाह के लिए सजा का प्रावधान है। लेकिन मुसलमानों पर यह कानून लागू नहीं होता है, क्योंकि वो मुस्लिम पर्सनल लॉ को मानते हैं। एनसीपीसीआर चाहती हैं कि सभी बच्चे पोक्सो एक्ट के तहत आए। नाबालिगों को सुरक्षित रखने के लिए धर्मनिरपेक्ष काम हो।

ग्रामीण इलाकों की स्थिति भयावह

ग्रामीण इलाकों में अशिक्षा और गरीबी की वजह से किशोर गर्भावस्था अधिक है। 15-19 आयु वर्ग की लगभग 53 प्रतिशत विवाहित महिलाओं ने पहले ही प्रसव शुरू कर दिया है। त्रिपुरा (22%), पश्चिम बंगाल (16%), आंध्र प्रदेश (13%), असम (12%), बिहार (11%) और झारखंड (10%) में किशोर गर्भावस्था के उच्चतम स्तर हैं। पहले ही बढ़ते जनसंख्या से परेशान देश में नाबालिगों की शादी और प्रेग्नेंसी दर एक चिंता का विषय है। एनएफएचएस के आंकड़ों के अनुसारहिंदुओं और ईसाइयों में 1.9 की तुलना में मुसलमानों में प्रजनन दर 2.4 है।

बाल विवाह के मामलों में 222 प्रतिशत की वृद्धि

एनसीआरबी के आंकड़े बताते हैं कि भारत में बाल विवाह के मामलों में केवल पांच सालों में 222 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। जबकि 2016 में ऐसे 326 मामले सामने आए, 2021 में यह संख्या बढ़कर 1,050 हो गई। 2016 और 2021 के बीच सबसे ज्यादा बाल विवाह के मामले कर्नाटक में आए। यहां 757 बाल विवाह हुए। इसके बाद दूसरे नंबर पर असम-577, तीसरे नंबर पर तमिलनाडु-469 और चौथे नंबर पर -431 है। हालांकि देश के अन्य राज्यों में भी स्थिति अच्छी नहीं हैं। चोरी चुपके बाल विवाह हर जगह हो रहे हैं।

गौरतलब है कि एनडीए सरकार ने महिलाओं के लिए शादी की कानूनी उम्र 18 से बढ़ाकर 21 करने का प्रस्ताव दिया है। केंद्र का मानना ​​है कि इस तरह के कदम से महिलाओं को और सशक्त बनाया जाएगा और उनके करियर को बनाने में मदद मिलेगी। 

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