यौन इच्छा को दबाने के लिए इस समुदाय में महिलाओं के प्राइवेट पार्ट चलाया जाता है ब्लेड

कहने को हम 21वीं सदी में पहुंच गए हैं। लेकिन आज भी पुरानी परंपराओं को ढोते आ रहे हैं। क्रूर प्रथा के शिकार  आज भी हजारों लोग होते हैं। बोहरा समुदाय की बच्चियों के साथ भी ऐसी ही प्रथा निभाई जाती है। उनके प्राइवेट पार्ट पर बचपन में ही ब्लेड चला दिया जाता है।

Nitu Kumari | Published : Nov 15, 2022 5:06 AM IST

मुस्लिमों में खतना किया जाता है ये तो हम सभी जानते हैं। ज्यादातर लोगों को पता है कि खतना सिर्फ पुरुषों का होता है। लेकिन बोहरा मुस्लिम समुदाय में खतना लड़कियों का भी किया जाता है। बचपन में ही उन्हें वो दर्द दे दिया जाता है जिसे पढ़ने मात्र से सिहर उठेंगे। तो सोचिए कि उनपर क्या गुजरती होगी। उनसे पूछे बिना उनके प्राइवेट पार्ट पर ब्लेड चला दिया जाता है। इस पीड़ा को वो किसी के साथ बयान भी नहीं कर सकती हैं। लेकिन ताउम्र उस दर्द का एहसास उन्हें रहता है। खतना की गई कुछ महिलाओं का मानना है कि वो सेक्स लाइफ पूरी तरह एन्जॉय नहीं कर पाती हैं।

क्लिटोरिस हुड को धारदार चीज से काट दिया जाता है

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खतने में पुरुषों या महिलाओं के जननांगों के एक हिस्से को काट दिया जाता है। महिलाओं के खतने को अंग्रेजी में फीमेल जेनिटलम्यूटिलेशन यानी FGM कहते हैं। आमतौर पर इस प्रोसेस में वजाइना के क्लिटोरिस हुड को एक तीखे ब्लेड से अलग कर दिया जाता है। भारत में यही प्रोसेस बोहरा कम्युनिटी की महिलाएं अपनाती हैं। जितने भी मुस्लिम कंट्री हैं वहां पर खतना की प्रथा चल रही है।  हालांकि कई मुल्क में इसे बैन किया गया है, बावजूद इसके इस प्रथा को लोग चोरी चुपके निभा रहे हैं।  बीबीसी की रिपोर्ट की मानें तो साल 2008 में मिस्र में महिलाओं का खतना बैन कर दिया गया था।  लेकिन अभी भी इस देश में सबसे ज्यादा खतना होते हैं।

खतना के बाद लड़कियों को पवित्र माना जाता है

सेक्सुअल डिजायर को दबाने, पवित्रता और शादी के लिए तैयार होने के नाम पर खतना किया जाता है। मुस्लिम महिलाओं को तब तक अशुद्ध और शादी के लिए तैयार नहीं माना जाता है जब तक उनका खतना नहीं किया जाता है। दुनिया भर में हर रोज हजारों लड़कियों को इस दर्द से गुजरना पड़ता है। गैरकानूनी होने के बाद भी लोग प्लास्टिक सर्जरी के नाम पर इसे अंजाम देते हैं। हालांकि मिस्र जैसे देश में जो डॉक्टर खतना करता है उसे सात साल की सजा हो सकती है और जो फैमिली अपने बच्चियों के साथ इसे अंजाम दे रहा है उसे तीन साल की सजा हो सकती है। 

कानून भले ही बदल गए इंसाफ पाना आसान नहीं

इतना ही नहीं कई ऐसे संगठन है जो इसके खिलाफ काम कर रही है और बच्चियों को न्याय दिलाने का काम कर रही है। बीबीसी से मानवाधिकार वकील रेडा एल्डनबुकी जो काहिरा के विमन्स सेंटर फ़ॉर गायडेंस एंड लीगल अवेयरनेस यानी डब्लूसीजीएलए के अध्यक्ष हैं, उन्होंने बताया कि इस प्रथा का पालन अक्सर प्लास्टिक सर्जरी के आड़ में किया जाता है। महिलाओं की ओर से दायर तीन हजार मामलों में छह खतना से जुड़े मामले थे। जिसे जीते। उनका कहना है कि कानून भले बदल गए लेकिन इंसाफ पाना अभी भी आसान नहीं हैं।

भारत में बच्चियां होती हैं इस क्रूर प्रथा की शिकार

भारत की बात करें तो यहां भी बोहरा समुदाय में बच्चियों के साथ ये हैवानियत की जाती है।वी स्पीक आउट नाम की संस्था बनाने वाली मासूमा रानावली भी इस दर्दनाक पीड़ा से गुजर चुकी हैं। वो बताती हैं कि बचपन में दादी चॉकलेट दिलाने के बहाने उनका खतना कर दिया था। कई दिन तक दर्द झेली और रोती रही थी। इतना ही नहीं हमें किसी से बात नहीं करने की हिदायत भी दी गई थी। हम बहनें थे और सबका खतना हुआ था लेकिन किसी ने एक दूसरे से इस बारे में बात नहीं की।  मासूमा रानावली इस परंपरा के खिलाफ आवाज उठा रही हैं। 

उन्होंने अपना संस्था बनाया और मुस्लिम महिलाओं को जोड़ा। वो FGM को खत्म करने के लिए सामाजिक और कानूनी अभियान शुरू किया।

ऐसे होता है खतना

बचपन में बच्चियों का खतना कराया जाता है। मां या दादी उन्हें घुमाने के बहाने एक ऐसी जगह ले जाते हैं। जहां एक कमरे में दो लोग होते हैं। वे बच्ची के दोनों पैरों को पकड़ लेते हैं और तेज चाकू, रेजर या ब्लेड से क्लिटोरिस हुड को अलग कर दिया जाता है। अब तो काटने के बाद एंटीवायोटिक पाउडर या लोशन लगा दिया जाता है। लेकिन पहले ठंडी राख ला दी जाती थी। बच्चियों को चार से पांच दिन तक खेलने कूदने से मना किया जाता था। इतनी ही नहीं कई केस में तो लड़कियों के पैरों को बांधकर रखा जाता है। आज लोग डॉक्टर की मौजूदगी में खतना करा रहे हैं। कई केस में तो बच्चियों की जान भी चली जाती है।

खतना महिलाओं के मानवाधिकारों का उल्लंघन 

यूनाइटेड नेशन में दिसंबर 2012 में एक प्रस्ताव पेश किया गया था जिसमें FMG यानी महिलाओं के खतना को दुनिया भर से खत्म करना था। खतना महिलाओं के मानवाधिकार का उल्लंघन है। 6 फरवरी  को इंटरनेशनल डे ऑफ जीरो टॉलरेंस मनाया जाता है।

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