Janmashtami:कृष्ण के इस 7 'मंत्र' को कपल करेंगे फॉलो, तो बिगड़े रिश्ते में भर जाएगा प्यार

भगवान कृष्ण कभी भी किसी रिश्ते को निभाने में विफल नहीं रहें। खास कर प्यार का रिश्ता। राधा से मोहब्बत करना हो या फिर रुक्मिणी और सत्यभामा का पति बनकर उनका ख्याल रखना। हर रिश्ते को उन्होंने ईमानदारी से निभाया।
 

रिलेशनशिप डेस्क.  प्यार हो या परिवार, दिल से जुड़े जज्बात हों या दोस्ती की बात, इन तमाम पैमानों पर एक नाम की चर्चा सबसे ज्यादा होती है। वह नाम है धरती पर नारायण का अवतार माने जाने वाले भगवान श्रीकृष्ण (lord krishna)का। कहते हैं कि इकलौते कृष्ण ही थे जो इंसानी भावनाओं से जुड़े सभी 16 कलाओं में निपुण थे। धर्म-कर्म और ज्ञान-विज्ञान से लेकर दोस्ती-प्यार और परिवार-समाज तक कृष्ण हर कसौटी पर संपूर्ण साबित हुए। 

महानायक कृष्ण सबसे बड़े मिसाल 

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कुरुक्षेत्र के मैदान में हुए महायुद्ध के महानायक स्वयं भगवान कृष्ण थे। लेकिन यह भी जग-जाहिर है कि उन्होंने अंतिम वक्त तक युद्ध को टालने की हरसंभव कोशिश की थी। दरअसल कृष्ण तो प्रेम के मसीहा थे और उनका मानना था कि दुनिया का हर मतभेद आपसी बातचीत और प्रेमपूर्ण बर्ताव से दूर किया जा सकता है। निजी जिंदगी में कृष्ण और राधा की प्रेम कहानी भी यही सीख देती है। 

कृष्ण को अपनाइए, रिश्तों को बचाइए

आज के दौर में जबकि रिश्तों को संभालने और संवारने की चुनौती बढ़ती जा रही है, ऐसे में हम आपको कृष्ण की कामयाब जिंदगी के वे सात मंत्र बताने जा रहे हैं जिन्हें अपना कर आप अपने प्यार और परिवार को बिखरने से बचा सकते हैं। 

पहला कृष्ण मंत्र – भावनाओं का करें सम्मान

गोकुल की तमाम गोपियों के दिलों में बसने वाले कान्हा का दिल सिर्फ राधा के लिए ही धड़कता था। राधा के जीवन में भी कृष्ण से अनमोल कोई नहीं था। इस अमर प्रेम कहानी के सूत्रधार स्वयं कृष्ण ही थे जिन्होंने अवतारी पुरुष होने के बावजूद कभी भी राधा का अनादर नहीं किया। गोपियों को छेड़ने से लेकर उनकी गगरी फोड़ने तक कृष्ण की लीलाओं से जब भी राधा खीझती थी तो उन्हें मनाने के लिए कान्हा दिन-रात एक कर देते थे। जब तक राधा रानी मान नहीं जातीं तब तक कृष्ण हार नहीं मानते थे। प्रेमी-प्रेमिकाओं और पति-पत्नी के रिश्ते को कामयाब बनाने की यह सबसे बड़ी सीख है।

दूसरा कृष्ण मंत्र – पसंद-नापसंद का रखें ख्याल 

कान्हा को अपने दोस्तों की टोली बहुत पसंद थी। वे अक्सर गाय चराने और माखन चुराने के लिए अपनी टोली के साथ निकल जाया करते थे। राधा रानी को कृष्ण का यह फक्कड़ अंदाज बिल्कुल पसंद नहीं था। पर कृष्ण को दोस्ती के साथ-साथ प्यार निभाना भी खूब आता था। उन्हें जब भी समय मिलता वे अपनी बांसुरी लेकर यमुना के तट पर पहुंच जाते और फिर ऐसी सुरीली तान छेड़ते कि राधा उनके पास खिंची चली आती थीं। निजी जिंदगी में अपने हमसफर का दिल जीतने के लिए ऐसे जतन बेहद जरूरी हैं।

तीसरा कृष्ण मंत्र – प्यार को चाहिए प्रोत्साहन 

कृष्ण जब बांसुरी बजाते थे तो राधा मदहोश हो जाती थीं। और कृष्ण जब रास रचाते थे तो राधा सुध-बुध खोकर नाच उठती थीं। राधा-कृष्ण का एक दूसरे के प्रति प्रेम और समर्पण का भाव इसलिए इतना गहरा था कि क्योंकि दोनों एक दूसरे की कद्र करते थे। जिस तरह राधा रानी कृष्ण की कला की सराहना करती थीं उसी भाव में कृष्ण भी हमेशा उनका हौसला बढ़ाया करते थे। जब समाज ने दोनों के रिश्ते पर उंगली उठाई तब भी कृष्ण पूरी मजबूती से राथा के साथ खड़े रहे। कृष्ण तमाम गोपियों में राधा को ही सर्वश्रेष्ठ मानते थे और उनका कोई भी उत्सव राधा के बिना पूरा नहीं होता था। सीख यह है कि अगर प्यार के रिश्ते में एक-दूसरे का हौसला बढ़ाते रहें तो संबंधों की बुनियाद कभी नहीं हिलती। 

चौथा कृष्ण मंत्र – बात बिगड़े तो संभाल लें 

कहते हैं प्यार में तकरार न हो तो वह अधूरा है। कृष्ण और राधा का प्रेम भी इससे अछूता नहीं था। कई बार कृष्ण की बातें या बर्ताव राधा को चुभ जाया करती थीं। बाल लीला खत्म करने के बाद जब कृष्ण अपने माता-पिता को जेल से रिहा करवाने के लिए मथुरा जाने लगे तो राधा बिल्कुल तैयार नहीं थीं। वह जानती थीं कि कृष्ण को मथुरा में कंस से लड़ना है। ऐसे में कृष्ण ने अपना कर्तव्य याद दिलाते हुए राधा की उलझन दूर की और मथुरा के लिए रवाना हुए। यह प्रसंग सिखाता है कि प्यार और प्रोफेशन के बीच कैसे संतुलन बनाया जा सकता है।

पांचवां कृष्ण मंत्र – भरोसा मजबूत तो रिश्ता अटूट 

जिस रिश्ते में भरोसा न हो वहां प्यार नहीं टिकता। कृष्ण का प्रेम संबंध भरोसे की बुनियाद पर ही मजबूती से खड़ा रहा। राधा को पता था कि कृष्ण के जीवन का लक्ष्य कितना बड़ा है। यह भी मालूम था कि एक बार कृष्ण गोकुल से चले गए तो लौट कर नहीं आएंगे। बावजूद इसके दोनों के रिश्ते में कभी खटास नहीं आई। बाद में जब कृष्ण ने रुक्मिणी और सत्यभामा से विवाह कर लिया, तब भी दोनों का प्रेम खत्म नहीं हुआ। अपने वैवाहिक जीवन में कृष्ण ने पति और पिता का धर्म भी बखूबी निभाया। प्रेम संबंध से इतर दांपत्य जीवन में प्रवेश करने वालों के लिए कृष्ण का ये संदेश भी काफी मायने रखता है। 

छठा कृष्ण मंत्र – दूर रहकर भी दिल के करीब

प्रेम से भरे जीवन में पास-पास रहने से ज्यादा जरूरी होता है साथ-साथ रहना। कृष्ण का प्रेम दर्शन भी इसी पर आधारित है। मथुरा जाने के बाद कृष्ण भी राधा और अन्य गोपियां की विरह वेदना से अनजान नहीं थे। इसीलिए उन्होंने समझाने-बुझाने के लिए उद्धव को अपना दूत बनाकर गोकुल भेजा। पर राधा और गोपियों ने उद्धव को यह कहकर निरुत्तर कर दिया कि कृष्ण भले उनके साथ नहीं पर उनका प्रेम हमेशा उनके साथ रहेगा। 

सातवां कृष्ण मंत्र – जीवन का आधार जिम्मेदारी 

रिश्ता प्यार का हो या दोस्ती का, उसके प्रति अपनी जिम्मेदारी निभाने में भी कृष्ण का जीवन मिसाल है। जिस भाव से कृष्म ने राधा से प्रेम का रिश्ता निभाया उसी जिम्मेदारी के साथ सुदामा के साथ दोस्ती के रिश्ते का ख्याल रखा। मैया यशोदा और नंद के वात्सल्य का भी मान रखा। साथ ही माता देवकी और पिता वासुदेव के प्रति भी अपना कर्तव्य निभाया। भाई बलराम और बहन सुभद्रा अगाध स्नेह रहा तो अर्जुन और द्रौपदी के प्रति कृष्ण का सखा भाव का भी कोई सानी नहीं। गुरु सांदीपनी के प्रति कृष्ण का शिष्य भाव और भीष्म पितामह के प्रति श्रद्धा भाव का भी पूरी मर्यादा से पालन किया। मथुरा और द्वारिका के राजा बनकर प्रजा का ख्याल रखा और महाभारत युद्ध में गीता का ज्ञान देकर जगत कल्याण के लिए काम किया। जाहिर है, दुनिया को कर्म का अनमोल सिद्धांत देने वाले कृष्ण पथ पर चलकर ही जीवन को सार्थक बनाया जा सकता है।

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