
Anant Chaturdashi Vrat Katha In Hindi: धर्म ग्रंथों के अनुसार, हर साल भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी तिथि को अनंत चतुर्दशी का व्रत किया जाता है। इस व्रत में भगवान विष्णु के ही एक रूप की पूजा की जाती है। इस व्रत में अनंत सूत्र का विशेष महत्व माना जाता है, जिसे व्रत करने वाला अपने हाथ पर पहनता है। अनंत चतुर्दशी व्रत का पूरा फल तभी मिलता है, जब इसकी कथा सुनी जाए। आगे पढ़िए अनंत चतुर्दशी व्रत की पूरी कथा…
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प्रचलित कथा के अनुसार, जब पांडव वनवास भोग रहे थे तब एक दिन भगवान श्रीकृष्ण उनसे मिलने पहुंचें। यहां धर्मराज युधिष्ठिर ने भगवान श्रीकृष्ण से अपने संकटों के निवारण के लिए उपाय पूछा। तब श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत चतुर्दशी का व्रत करने को कहा और इसका कथा भी सुनाई।
श्रीकृष्ण ने पांडवों को बताया कि ‘किसी समय सुमंत नाम के एक धर्मनिष्ठ ब्राह्मण थे। उनकी पुत्री का नाम सुशीला था। विवाह योग्य होने पर ऋषि सुमंत ने अपनी पुत्री सुशीला का विवाह कौण्डिल्य नाम के ऋषि से करवा दिया। उचित समय आने पर कौण्डिल्य ऋषि अपनी पत्नी को विदा कराने आए।
जब कौण्डिल्य ऋषि पत्नी को साथ लेकर लौट रहे थे तो रास्ते में उनकी पत्नी सुशीला ने कुछ ऋषियों को किसी देवता की पूजा करते देखा। पूछने पर उन ऋषियों ने बताया कि वे भगवान अनंत की पूजा कर रहे हैं। सुशीला ने भी भगवान अनंत का व्रत लेकर पूजा का धागा अपने हाथ में बांध लिया।
जब कौण्डिल्य ऋषि ने अपनी पत्नी के हाथ में वह अनंत सूत्र देखा तो उसके बारे में पूछा। सुशीला ने उन्हें पूरी बात सच-सच बता दी। पूरी बात सुनकर ऋषि क्रोधित हो गये और उन्होंने हाथ में बंधे उस सूत्र को तोड़कर अग्नि में भस्म कर दिया। उनके ऐसा करने से भगवान अनंत का अनादर हो गया।
ऐसा करने से कौण्डिल्य ऋषि की सुख-सम्पदा का नाश हो गया। तब एक दिन सुशीला ने उनसे कहा कि ‘आपके द्वारा भगवान अनंत का अनादर हुआ, इसी कारण हमारी सुख-संपत्ति नष्ट हो गई है।’ ये बात सुनकर ऋषि को अपनी गलती का अहसास हुआ और वे पश्चात्ताप करने वन में चले गये।
ऋषि कौण्डिल्य वन-वन भटककर भगवान अनंत को खोजने लगे। एक दिन ऋषि को जंगल में एक वृद्ध ब्राह्मण मिले। उन्होंने ऋषि से कहा ‘ मैं स्वयं अनंत हूं। मेरा ही अपमान करने के कारण आपको ये कष्ट भोगने पड़े हैं। अब मैं आपके पश्चात्ताप करने के कारण आपसे प्रसन्न हूं। आप चौदह सालों तक अनन्त व्रत का पालन करें। इससे आपकी सभी परेशानी दूर हो जाएगी।’
ऋषि कौण्डिल्य ने ऐसा ही किया, जिससे उनकी परेशानी दूर होगी और सुख पूर्वक अपनी पत्नी के साथ रहने लगे। ये कथा सुनने के बाद पांडवों ने भी विधि पूर्वक अनंत व्रत किया, जिससे उन्हें अपना खोया राज्य वापस मिल गया और वे सुख पूर्वक हस्तिनापुर पर राज करने लगे।
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इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।