Jitiya Vrat 2025: पहली बार कैसे करें जितिया व्रत? जानें शुभ मुहूर्त, नियम और कौन से बन रहे विशेष योग

Published : Sep 05, 2025, 02:02 PM IST
Jitiya Vrat 2025

सार

Jitiya Vrat Puja Vidhi: जितिया व्रत 2025 14 सितंबर को मनाया जाएगा। महिलाएं अपनी संतान की लंबी आयु और सुख-समृद्धि के लिए यह व्रत रखती हैं। इस वर्ष व्रत पर सिद्धि योग और शिववास योग का संयोग है। जानें शुभ मुहूर्त, नहाय-खाय, पूजा विधि और कथा।

Jitiya Vrat 2025 Shubh Muhurat: जितिया व्रत को सबसे शुभ व्रतों में से एक माना जाता है। यह दिन मुख्य रूप से बिहार, झारखंड और उत्तर प्रदेश के अन्य हिस्सों में मनाया जाता है। जितिया व्रत को जीवित्पुत्रिका व्रत के नाम से भी जाना जाता है और यह व्रत आश्विन मास की अष्टमी तिथि से शुरू होता है और महिलाएं अगले दिन सूर्योदय के बाद इसका पारण करती हैं। इस वर्ष, जीवित्पुत्रिका व्रत 14 सितंबर, 2025 को मनाया जाएगा। अगजितर आप भी इस साल पहली बार जितिया व्रत करने वाली हैं तो आपको इस व्रत के बारे में पूरी जानकारी जुटा लेनी चाहिए। आइए जानते हैं जितिया व्रत का महत्व, शुभ मुहूर्त, नियम, नहाय-खाय और पारण से जुड़ी सभी महत्वपूर्ण जानकारी।

जितिया व्रत का शुभ मुहूर्त

वैदिक पंचांग के अनुसार, आश्विन माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि 14 सितंबर को प्रातः 05:04 बजे प्रारंभ होगी। वहीं, यह तिथि 15 सितंबर को प्रातः 03:06 बजे समाप्त होगी। इसके बाद नवमी तिथि प्रारंभ होगी। इस प्रकार, जितिया व्रत 14 सितंबर को मनाया जाएगा। जबकि 13 सितंबर को जितिया का नहाय-खाय पूरे नियम के अनुसार किया जाएगा। वहीं 15 सितंबर की सुबह पूजा पाठे के बाद पारण किया जाएगा।

जीवित्पुत्रिका व्रत का महत्व

जीवित्पुत्रिका व्रत का हिंदुओं में बहुत धार्मिक महत्व है। इस शुभ दिन पर, विवाहित महिलाएं यह व्रत रखती हैं और जीमूतवाहन और भगवान सूर्य की अगाध श्रद्धा और समर्पण के साथ पूजा करती हैं। यह दिन बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह व्रत सभी महिलाएं अपनी संतान की दीर्घायु और कल्याण के लिए रखती हैं। यह व्रत 24 घंटे का होता है।

जितिया व्रत शुभ योग

माना जा रहा कि इस साल आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को सिद्धि योग बन रहा है। इसके साथ ही रवि और शिववास योग भी बन रहे हैं। इन योगों में जगत के पालनहार भगवान कृष्ण की पूजा करने से व्रती की हर मनोकामना पूरी होगी।

क्या है शिववास योग

जितिया व्रत पर शिववास योग का संयोग पूरे दिन बना हुआ है। वहीं, शिववास योग 15 सितंबर को देर रात 03:06 बजे समाप्त हो रहा है। इस योग में भगवान श्री कृष्ण और जगत के पालनहार भगवान शिव की पूजा करने से भक्त को सभी प्रकार के सुखों की प्राप्ति होती है।

जीवित्पुत्रिका व्रत पूजा से पहले क्या करें?

जीवित्पुत्रिका व्रत भी छठ के समान ही है। जितिया व्रत का पुण्य प्राप्त करने के लिए महिलाओं को इस व्रत से एक दिन पहले नहाय-खाय की परंपरा का पालन करना होता है। इस दिन महिलाओं को सात्विक भोजन बनाकर सबसे पहले अपने पितरों को और फिर कौओं आदि को अर्पित करना होता है। जितिया व्रत के दिन महिलाओं को सूर्योदय से पहले उठकर स्नान-ध्यान करना चाहिए और पूरे दिन निर्जल व्रत रखना चाहिए।

ये भी पढ़ें- Anant Chaturdashi 2025: 6 या 7 सितंबर, कब है अनंत चतुर्दशी? जानें मंत्र-मुहूर्त

जीवित्पुत्रिका व्रत पूजा की विधि ?

जितिया व्रत की पूजा करने के लिए घर में किसी पवित्र स्थान पर मिट्टी और गोबर से लीपकर एक छोटा सा तालाब बनाएं और उसमें कुशा की सहायता से भगवान जीमूतवाहन की स्थापना करें। इसके साथ ही मिट्टी और गोबर की सहायता से चील और सियार की मूर्ति बनाकर उनकी भी साथ में पूजा करें। भगवान जीमूतवाहन को धूप-दीप, माला-फूल, रोली-सिंदूर, मिठाई-फल आदि अर्पित करके जितिया व्रत की कथा पढ़ें या सुनें। व्रत के अगले दिन शुभ मुहूर्त में व्रत तोड़ें और भगवान जीमूतवाहन से संतान की लंबी आयु का आशीर्वाद मांगें। इसके बाद लाल, पीले और हरे रंग के धागे भगवान को समर्पित किए जाते हैं और बच्चों की रक्षा के लिए उन्हें पहनाए जाते हैं। ये धागे बच्चों की लंबी उम्र और सुख की कामना करते हैं।

जीवित्पुत्रिका व्रत कथा

हिंदू मान्यता के अनुसार, कलियुग के आरंभ में जितिया व्रत की शुरुआत हुई थी। ऐसा माना जाता है कि एक बार जीमूतवाहन नामक राजा कहीं जा रहे थे, तभी उन्हें एक महिला के रोने की आवाज़ सुनाई दी। उसके पास जाने पर उन्हें पता चला कि आज भगवान विष्णु का वाहन गरुर उस महिला के पुत्र को को ले जाएगा जो उसका भोजन बनेगा। तब राजा ने उस महिला को आश्वासन दिया कि वह खुद उसके पुत्र के बजाय गरुड़ का भोजन बनेगा। जब वह उस महिला के पुत्र के स्थान पर उपस्थित हुए, तो गरुड़ ने राजा की दानशीलता से प्रसन्न हुए और उन्हें वैकुंठ जाने का आशीर्वाद दिया और बाकी बच्चों को भी पुनर्जीवित कर दिया। ऐसा माना जाता है कि तभी से महिलाएं अपनी संतान की सुरक्षा और सौभाग्य के लिए इस दिन जीमूतवाहन देवता का व्रत और पूजा करने लगीं।

ये भी पढ़ें- पीरियड्स में महिलाएं श्राद्ध कार्य सकती हैं या नहीं? जानिए धार्मिक और वैज्ञानिक दृष्टिकोण

Disclaimer इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।

PREV
Read more Articles on

Recommended Stories

Akhurath Chaturthi 2025: अखुरथ संकष्टी चतुर्थी कब, 7 या 8 दिसंबर? जानें मुहूर्त-मंत्र सहित पूरी विधि
Religious Story: भगवान विष्णु की कितनी पुत्रियां हैं, क्या हैं इनका नाम? जानें रोचक कथा