
September 2025 Pradosh Vrat Date: धर्म ग्रंथों के अनुसार, हर महीने के दोनों पक्षों की त्रयोदशी तिथि पर भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए व्रत-पूजन किया जाता है, इसे प्रदोष व्रत करते हैं। इस व्रत का महत्व अनेक धर्म ग्रंथों में बताया गया है। मान्यता है कि ये व्रत सबसे पहले चंद्रदेव ने किया था। इस व्रत को करने से जीवन में सुख-शांति और समृद्धि बनी रहती है। आगे जानिए सितंबर 2025 में कब करें प्रदोष व्रत…
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पंचांग के अनुसार, भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि 5 सितंबर, शुक्रवार की सुबह 04 बजकर 08 मिनिट से शुरू होगी, जो रात 03 बजकर 13 मिनिट तक रहेगी। चूंकि त्रयोदशी तिथि का सूर्योदय 5 सितंबर, शुक्रवार को होगा इसलिए इसी दिन प्रदोष व्रत किया जाएगा। शुक्रवार को प्रदोष व्रत होने से ये शुक्र प्रदोष कहलाएगा।
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5 सितंबर, शुक्रवार को प्रदोष व्रत पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 06 बजकर 38 मिनिट से शुरू होकर रात 08 बजकर 55 मिनिट तक रहेगा। यानी इस दिन आपको पूजा के लिए पूरे 02 घण्टे 12 मिनट का समय मिलेगा। इस दिन सर्वार्थसिद्धि, धाता और शोभन नाम के 3 शुभ योग दिन भर रहेंगे, जिससे इस व्रत का महत्व और भी बढ़ गया है।
- 5 सितंबर, शुक्रवार की सुबह स्नान करने के बाद हाथ में जल, चावल और फूल लेकर व्रत-पूजा का संकल्प लें। दिन भर कुछ खाएं नहीं, यदि ऐसा करना संभव न हो तो फल या दूध ले सकते हैं। पूरे दिन मन ही मन में ऊं नम: शिवाय मंत्र का जाप करते रहें। पूजा की सामग्री एक स्थान पर रख लें।
- शुभ मुहूर्त में पूजा शुरू करें। सबसे पहले शिवलिंग का अभिषेक शुद्ध जल से करें, फिर गाय के दूध से और फिर पुन: शुद्ध जल से। शिवलिंग पर फूल चढ़ाएं, शुद्ध घी का दीपक जलाएं। इसके बाद बिल्व पत्र, धतूरा, रोली, अबीर, जनेऊ, आंकड़े के फूल आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाएं।
- भगवान को भोग लगाएं और आरती करें। संभव हो तो कुछ देर रुद्राक्ष की माला से ऊं तत्पुरुषाय विद्महे महादेवाय धीमहि तन्नो रुद्रः प्रचोदयात् नम: मंत्र का जाप करें। इसके बाद भोजन करें। इस विधि से जो व्यक्ति प्रदोष व्रत करता है, उसके घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है।
जय शिव ओंकारा प्रभु हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा प्रभु हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
एकानन चतुरानन पंचांनन राजे स्वामी पंचांनन राजे
हंसानन गरुड़ासन हंसानन गरुड़ासन
वृषवाहन साजे ओम जय शिव ओंकारा
दो भुज चारु चतुर्भूज दश भुज ते सोहें स्वामी दश भुज ते सोहें
तीनों रूप निरखता तीनों रूप निरखता
त्रिभुवन जन मोहें ओम जय शिव ओंकारा
अक्षमाला बनमाला मुंडमालाधारी स्वामी मुंडमालाधारी
त्रिपुरारी धनसाली चंदन मृदमग चंदा
करमालाधारी ओम जय शिव ओंकारा
श्वेताम्बर पीताम्बर बाघाम्बर अंगें स्वामी बाघाम्बर अंगें
सनकादिक ब्रह्मादिक ब्रह्मादिक सनकादिक
भूतादिक संगें ओम जय शिव ओंकारा
करम श्रेष्ठ कमड़ंलू चक्र त्रिशूल धरता स्वामी चक्र त्रिशूल धरता
जगकर्ता जगहर्ता जगकर्ता जगहर्ता
जगपालनकर्ता ओम जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव जानत अविवेका स्वामी जानत अविवेका
प्रणवाक्षर के मध्यत प्रणवाक्षर के मध्य
ये तीनों एका ओम जय शिव ओंकारा
त्रिगुण स्वामीजी की आरती जो कोई नर गावें स्वामी जो कोई जन गावें
कहत शिवानंद स्वामी कहत शिवानंद स्वामी
मनवांछित फल पावें ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा प्रभू जय शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
ओम जय शिव ओंकारा प्रभू हर शिव ओंकारा
ब्रह्मा विष्णु सदाशिव ब्रह्मा विष्णु सदाशिव
अर्धांगी धारा ओम जय शिव ओंकारा
Disclaimer
इस आर्टिकल में जो जानकारी है, वो धर्म ग्रंथों, विद्वानों और ज्योतिषियों से ली गईं हैं। हम सिर्फ इस जानकारी को आप तक पहुंचाने का एक माध्यम हैं। यूजर्स इन जानकारियों को सिर्फ सूचना ही मानें।