Baglamukhi Jayanti 2023 Date: बगलामुखी जयंती 28 अप्रैल को, इस विधि से करें पूजा-आरती, हर संकट टल जाएगा

Baglamukhi Jayanti 2023: इस बार देवी बगलामुखी की जयंती 28 अप्रैल, शुक्रवार को मनाई जाएगी। देवी बगलामुखी दस महाविद्याओं में से एक है और तंत्र-मंत्र की सिद्धि के लिए इनकी पूजा विशेष रूप से की जाती है। इनका एक नाम पितांबरा भी है।

 

उज्जैन. हमारे धर्म ग्रंथों में 9 देवियों के अलावा 10 महाविद्याओं का वर्णन भी मिलता है। इन्हीं में से एक है देवी बगलामुखी। हर साल वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की नवमी तिथि को इनका जयंती पर्व मनाया जाता है। (Baglamukhi Jayanti 2023) इस बार ये तिथि 28 अप्रैल, शुक्रवार को है। मां बगलामुखी तंत्र-मंत्र की प्रमुख देवी हैं। विशेष कार्यों में सफलता पाने के लिए इनकी पूजा की जाती है। इन्हें शत्रुनाशिनी भी कहा जाता है। आगे जानिए देवी बगलामुखी की पूजा विधि, मंत्र, आरती आदि…

जानें देवी बगलामुखी की खास बातें…
मान्यता है कि देवी बगलामुखी की उत्पत्ति सौराष्ट्र के हरिद्रा नामक सरोवर से हुई है। धर्म ग्रंथों मे इनका रंग पीला बताया गया है और इन्हें पीले रंग की वस्तुएं ही विशेष रूप से चढ़ाई जाती हैं इसलिए इनका एक नाम पीतांबरा भी है। शत्रुओं से बचने और कोर्ट-कचहरी के मामलों में सफलता पाने के लिए देवी बगलामुखी की पूजा विशेष रूप से की जाती है।

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ये है देवी पीतांबरा की पूजा विधि (Goddess Baglamukhi Puja Vidhi)
- 28 अप्रैल, शुक्रवार की सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करने के बाद सबसे पहले व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके बाद पीले वस्त्र पहनें। ऐसा करने से देवी प्रसन्न होती हैं।
- घर में जहां पूजा करनी हो, उस स्थान को गंगाजल छिड़ककर पवित्र कर लें और वहां एक बाजोट यानी पटिया रखकर देवी बगलामुखी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करें।
- देवी बगलामुखी की प्रतिमा को पीले फूलों का हार पहनाएं, हल्दी से तिलक करें। शुद्ध घी का दीपक जलाएं। साथ ही पीले चावल भी अर्पित करें।
- इसके बाद पूजन सामग्री रोली, अबीर, गुलाल आदि चीजें एक-एक करके चढ़ाते रहें। पीले रंग की चुनरी अर्पित करें। धूप और अगरबत्ती लगाएं।
- पीली मिठाई या पीले फलों का भोग लगाएं। अंत में आरती करें। रात में पूजा स्थान के समीप बैठकर देवी बगलामुखी के मंत्रों का जाप करें। अगले दिन व्रत का पारणा करें।

देवी बगलामुखी की आरती (Devi Baglamukhi Ki Aarti)
जय जय श्री बगलामुखी माता, आरती करहुँ तुम्हारी ।
पीत वसन तन पर तव सोहै, कुण्डल की छबि न्यारी ॥
कर कमलों में मुदगर धारै, अस्तुति करहिं सकल नर नारी ।
चम्पक माल गले लहरावे, सुर नर मुनि जय जयति उचारी ॥
त्रिविध ताप मिटि जात सकल सब, भक्ति सदा तव है सुखकारी ।
पालत हरत सृजत तुम जग को, सब जीवन की हो रखवारी ॥
मोह निशा में भ्रमत सकल जन, करहु हृदय महँ, तुम उजियारी ।
तिमिर नशावहु ज्ञान बढ़ावहु, अम्बे तुम ही हो असुरारी ॥
संतन को सुख देत सदा ही, सब जन की तुम प्राण पियारी ।
तब चरणन जो ध्यान लगावै, ताको हो सब भव-भयकारी ॥

॥ दोहा ॥
बगलामुखी की आरती, पढ़ै सुनै जो कोय
विनती कुलपति मिश्र की, सुख संपत्ति सब होय


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