25 अक्टूबर से शुरू होकर यह चार दिनों तक मनाया जाएगा। नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उदय अर्घ्य के अनुष्ठानों के साथ, यह पर्व अनुशासन, भक्ति और आत्मशुद्धि का प्रतीक है। सूर्य देव और छठी मैया की आराधना जीवन में सुख, समृद्धि और आरोग्य प्रदान करती है।
बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल के कुछ हिस्सों में बड़ी श्रद्धा और भक्ति के साथ मनाया जाता है। हालांकि, अब यह पूरे भारत में बड़े हर्ष और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व सूर्य देव और छठी मैया की पूजा को समर्पित है और कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि (नहाय-खाय) से शुरू होकर चार दिनों तक चलता है। चारों दिनों के दौरान, भक्त नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उदय अर्घ्य की रस्में निभाते हैं, जो उन्हें अनुशासन, संयम और भक्ति की शिक्षा देती हैं। यह त्योहार तन और मन को शुद्ध करने और परिवार व समाज में प्रेम, सहयोग और विश्वास को बढ़ावा देने का भी एक साधन है।
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छठ पूजा का महत्व
छठ सूर्य देव और छठी मैया की पूजा को समर्पित एक अत्यंत महत्वपूर्ण त्योहार है। इस अनुष्ठान को करने से न केवल स्वास्थ्य, समृद्धि और दीर्घायु की प्राप्ति होती है, बल्कि परिवार में सुख और संतोष भी बढ़ता है। चारों दिनों के अनुष्ठान भक्तों को अनुशासन, संयम, भक्ति और आत्मनिरीक्षण का संदेश देते हैं। व्रत और पूजा के दौरान तन, मन और आत्मा की शुद्धि होती है। यह पर्व न केवल व्यक्तिगत आध्यात्मिक लाभ प्रदान करता है, बल्कि समाज और परिवार में आपसी प्रेम, सहयोग, विश्वास और एकता को भी मजबूत करता है। छठ पर्व भक्ति और विश्वास का प्रतीक है।
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नहाय-खाय (पहला दिन: 25 अक्टूबर)
छठ पर्व के पहले दिन को 'नहाय-खाय' के नाम से जाना जाता है।
इस दिन, भक्त स्नान करके शुद्ध और सात्विक भोजन ग्रहण करते हैं।
भोजन में आमतौर पर सादा चावल, दाल और फल शामिल होते हैं।
इसका उद्देश्य तन और मन को शुद्ध करना और व्रत की सही शुरुआत करना है।
यह दिन भक्त के लिए आत्म-निरीक्षण और आत्म-संयम सीखने की दिशा में पहला कदम है।
इस दिन व्रती अपने मन और कर्मों की शुद्धि पर ध्यान केंद्रित करते हैं।
नहाय-खाय व्रती को अगले दिनों के व्रत के लिए मानसिक और शारीरिक रूप से तैयार करता है।