Dasha Mata 2023: 17 मार्च को करें दशा माता व्रत, जानें पूजा विधि, कथा और आरती, किसका रूप हैं ये देवी?

Dasha Mata 2023: हिंदू धर्म में देवी के अलग-अलग रूपों की पूजा करने की परंपरा है। दशा माता भी देवी के इन रूपों में से एक है। इस बार दशा माता का व्रत 17 मार्च, शुक्रवार को किया जाएगा। ये व्रत करने से घर-परिवार की दशा ठीक होती है।

 

उज्जैन. धर्म ग्रंथों के अनुसार, चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को दशा माता (Dasha Mata 2023) का व्रत किया जाता है। इस बार ये तिथि 17 मार्च, शुक्रवार को है। मान्यता के अनुसार, इस दिन दशा माता की पूजा करने से घर-परिवार में सुख-समृद्धि बनी रहती है और परेशानियां खत्म होती हैं। दशा माता कोई और नहीं बल्कि मां पार्वती का ही स्वरूप है। इस दिन वृक्षों की त्रिवेणी ( पीपल, नीम और बरगद) की पूजा करने का भी विधान है। आगे जानिए इस व्रत की पूजा विधि, कथा व अन्य खास बातें..

इस विधि से करें दशा माता की पूजा (Dasha Mata Puja and Vrat Vidhi 2022)
- 17 मार्च, शुक्रवार की सुबह स्नान आदि करने के बाद व्रत-पूजा का संकल्प लें। इसके बाद पीपल वृक्ष को भगवान विष्णु का स्वरूप मानकर पूजा करें। कच्चे सूत का 10 तार का डोरा बनाकर उसमें 10 गांठ लगाएं और इसकी पूजा करें।
- पीपल वृक्ष की 10 प्रदक्षिणा करते हुए भगवान विष्णु के मंत्रों का जाप करें। वृक्ष के नीचे दीपक लगाएं। अबीर, गुलाल, कुंकुम, चावल, फूल आदि चीजें चढ़ाएं। पूजा के बाद वृक्ष के नीचे बैठकर नल दमयंती की कथा सुनें।
- घर आकर द्वार के दोनों ओर हल्दी कुमकुम के छापे लगाएं। इस दिन व्रत रखें और शाम को बिना नमक का भोजन करें। इस प्रकार पूजा करने से घर में सुख-समृद्धि बनी रहती है और परेशानियां दूर रहती हैं।

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ये है दशा माता व्रत की कथा (Dasha Mata Vrat Katha 2023)
- किसी समय नल नाम के एक पराक्रमी राजा थे, उनकी पत्नी का नाम दमयंती था। एक दिन रानी दमयंती ने दशा माता का व्रत किया और डोरा अपने गले में बांधा। राजा ने किसी बात पर वो डोरा निकालकर फेंक दिया।
- उसी रात दशा माता बुढ़िया के रूप में राजा के सपने में आई और कहा कि “तेरा अच्छा समय जा रहा है और बुरा समय आ रहा है, क्योंकि तूने मेरा अपमान किया है।”इसके बाद कुछ ऐसा हुआ कि राजा को वन-वन में भटकना पड़ा।
- राजा के साथ रानी भी इधर-उधर भटकने लगी। राजा पर चोरी का भी आरोप लगा। एक दिन राजा को सपने वाली बुढि़या दिखाई दी तो वे बोले “माता मुझसे भूल हुई क्षमा। मैं पत्नी सहित दशामाता का पूजन करूंगा।”
- बुढि़या ने उन्हें पूजन की विधि भी बताई। राजा ने उसी विधि के अनुसार, दशामाता का पूजन किया और दशामाता का डोरा गले में बांधा। इस व्रत के प्रभाव से राजा की दशा सुधरी और उन्हें पुनः अपना राज्य मिल गया।


ये है दशा माता की आरती
आरती श्री दशा माता की |
जय सत-चित्त आनंद दाता की |
भय भंजनि अरु दशा सुधारिणी |
पाप -ताप-कलि कलुष विदारणी|
शुभ्र लोक में सदा विहारणी |
जय पालिनी दिन जनन की |
आरती श्री दशा माता की ||
अखिल विश्व- आनंद विधायिनी |
मंगलमयी सुमंगल दायिनी |
जय पावन प्रेम प्रदायिनी |
अमिय-राग-रस रंगरली की |
आरती श्री दशा माता की ||
नित्यानंद भयो आह्लादिनी |
आनंद घन आनंद प्रसाधिनी|
रसमयि रसमय मन- उन्मादिनी |
सरस कमलिनी विष्णुआली की |
आरती श्री दशा माता की ||



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