Kab hai Dutta Purnima: धर्म ग्रंथों में भगवान दत्तात्रेय के बारे में बताया गया है। हर साल दिसंबर महीने में इनकी जयंती मनाई जाती है। देश भर में भगवान दत्त के अनेक मंदिर और मठ स्थापित हैं।
Koun Hai Bhagwan Dattatreya: हर साल अगहन मास की पूर्णिमा पर भगवान दत्तात्रेय की जयंती मनाई जाती है। इस बार ये तिथि 26 दिसंबर, मंगलवार को है। भगवान दत्तात्रेय से जुड़ी कईं कथाएं धर्म ग्रंथों में मिलती हैं। दत्त पूर्णिमा पर भगवान दत्त के जन्म की कथा सुनना बहुत ही शुभ माना जाता है। इससे जीवन की परेशानियां दूर होती हैं। आगे जानिए भगवान दत्त के जीवन से जुड़ी कथा…
ये है भगवान दत्तात्रेय की कथा (Bhagwan Dattatreya Ki Katha)
पौराणिक कथाओं के अनुसार, एक बार माता लक्ष्मी, पार्वती व सरस्वती को अपने पातिव्रत्य पर अत्यंत गर्व हो गया। ये तीनों स्वयं को महान पतिव्रता मानने लगीं। तब त्रिदेवों ने इनका अंहकार नष्ट करने के लिए लीला रची।
एक दिन नारदजी घूमते-घूमते देवलोक पहुंचे और तीनों देवियों को बारी-बारी जाकर कहा कि ‘ऋषि अत्रि की पत्नी अनुसूईया महान पतिव्रता हैं, उनके सामने आपका सतीत्व कुछ भी नहीं। ये बात सुनकर देवियों को आश्चर्य हुआ।
तब तीनों देवियों ने यह बात अपने पतियों यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश को बताई और कहा कि वे इसी समय जाकर अनुसूइया के पातिव्रत्य की परीक्षा लें। देवियों की बात मानकर त्रिदेव साधु वेश में अत्रि मुनि के आश्रम आए।
त्रिदेवों ने देवी अनुसूइया से भिक्षा मांगी मगर यह भी कहा कि आपको निर्वस्त्र होकर हमें भिक्षा देनी होगी। देवी अनुसूइया ये सुनकर चौंक गई लेकिन साधुओं का अपमान न हो ये सोचकर उन्होंने अपने पति का स्मरण किया।
पति अत्रि को याद कर देवी अनुसूइया ने संकल्प लिया कि ‘यदि मेरा पातिव्रत्य धर्म सत्य है तो ये तीनों साधु इसी समय छ:-छ: मास के शिशु हो जाएं। देवी के ऐसे संकल्प लेते ही तीनों देवता छोटे शिशु होकर रोने लगे।
माता अनुसूइया ने माता बनकर उन्हें गोद में लेकर स्तनपान कराया और पालने में झूलाने लगीं। काफी देर तक त्रिदेव वापस नहीं आए तो देवियां व्याकुल हो गईं। देवऋषि नारद को उन्हें पूरी बात बताई।
तीनों देवियां अनुसूइया के पास आईं और क्षमा मांगी। देवी अनुसूइया ने त्रिदेव को अपने पूर्व रूप में कर दिया। प्रसन्न होकर त्रिदेव ने उन्हें वरदान दिया कि हम तीनों अपने अंश से तुम्हारे गर्भ से पुत्ररूप में जन्म लेंगे।
तब ब्रह्मा के अंश से चंद्रमा, शंकर के अंश से दुर्वासा और विष्णु के अंश से दत्तात्रेय का जन्म हुआ। वहीं कुछ ग्रंथों में भगवान दत्तात्रेय को तीन देवताओं का सम्मिलित अवतार भी कहा जाता है।
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